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जय हो पर राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में इस समय सलमान खान को लेकर सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है क्योंकि सलमान की गलती सिर्फ इतनी ही है कि उन्होंने लोकतान्त्रिक तरीके से चुने हुए गुजरात के सीएम के साथ पतंग उड़ाई और उनकी तारीफ भी की ? दुनिया में यह सामान्य प्रक्रिया और शिष्टाचार में ही आता है कि जब आप किसी से भी मिलते हैं तो लाखों मतभेद होने के बाद भी आप उस व्यक्ति की कमियों पर उंगली उठाने के स्थान पर उसकी सामान्य योगयताओं की तारीफ ही करते हैं क्योंकि वहाँ पर किसी भी तरह की आलोचना का कोई मतलब ही नहीं होता है. सलमान के मामले में देश के मुस्लिम और कुछ अन्य बुद्धिजीवियों को ऐसा लगता है कि सलमान को मोदी से मिलना ही नहीं चाहिए था क्योंकि मुस्लिम समाज आज भी गुजरात दंगों के घाव से उबर नहीं पाया है और दंगों के घाव ऐसे होते हैं कि जिन पर बीती होती है वे उसे आजन्म कैसे भूल जाएँ पर किसी की गलती की सजा किसी और को कैसे दी जा सकती है आज यह कोई विचार ही नहीं कर रहा है ?
सलमान क्या आज देश के हर फिल्मी कलाकार के लिए यह मुश्किल दौर होता जा रहा है क्योंकि पहले की तरह मुम्बई में बैठकर केवल एक पार्टी कर देने से अब लोगों तक शायद बात नहीं पहुँचती है इसलिए देश के बड़े शहरों में फ़िल्म का प्रमोशन लगातार ही किया जाता है और उसी क्रम में सलमान ने भी अपनी फ़िल्म के प्रमोशन के लिए अहमदाबाद में मोदी के साथ पतंग उड़ाई और उनकी तारीफ भी कर दी जो कि अपरोक्ष रूप से गुजरात के विकास की उसी कहानी की तारीफ थी जिसे आज देश का मीडिया और उद्योग जगत बहुत अच्छा कहता रहता है. सलमान के इस तरह से बोलने के कारण ही आज उन्हें यह दिन देखने पड़ रहे हैं और वैसे भी उनकी फिल्में शुद्ध रूप से पूर्ण व्यवसायिक ही हुआ करती हैं जिससे भी उनकी सेहत पर किसी बात का कोई अंतर नहीं पड़ता है. हाँ यह अवश्य है कि कुछ लोगों की राजनीति के कारण मुस्लिम समाज की तरफ से सम्भवतः जय हो का बहिष्कार ही किया जा रहा है पर उससे समाज को क्या मिल सकता है यह तो कोई नहीं बता सकता पर चुनावी माहौल में कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनैतिक दलों द्वारा इसी बहाने से गुजरात दंगों की कड़वी यादों को फिर से कुरेदने का प्रयास किया जा रहा है ? क्या सलमान की फिल्मों के प्रमोशन के कारण अब आमिर खान का भी इसी तरह से विरोध किया जायेगा क्योंकि वे अब सलमान के साथ अधिक दिखायी दे रहे हैं ?
सलमान ने भी जिस तरह से वापस यह सवाल पूछकर उन पर हमला करने वालो को असहज कर दिया है कि जब देश के बड़े उद्योगपति, फिल्मी कलाकार, क्रिकेटर और समाज के जाने माने लोग गुजरात जाकर मोदी से मिलते रहते हैं और उनकी तारीफ करते रहते हैं तो क्या उन सभी का भी इस तरह से ही बहिष्कार किया जाता है ? सम्भवतः ऐसा नहीं किया जायेगा क्योंकि रतन टाटा से लगाकर अम्बानी जैसे उद्योगपति भी मोदी के विकासपरक माहौल की तारीफ कर चुके हैं तो क्या मुस्लिम समाज ने टाटा और अम्बानी समूहों के उत्पादों का पूर्णतः बहिष्कार कर दिया है या राजनीति से इतर गुजरात हज़ कमिटी से भेजे जाने मुस्लिम क्या मोदी के सीएम होने के कारण ही हज़ जाने से मना कर देते हैं क्योंकि उनकी सरकार ही स्थानीय स्तर पर यात्रा का प्रबंध करती है ? राजनीति में समाज को इस तरह से घसीटना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है और देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में कब कौन किस पद तक पहुँच जाये यह कोई नहीं जनता है तो इस तरह से शुद्ध मनोरंजन में आवश्यक रूप से राजनीति का घालमेल किया जाना किसी भी तरह से फिल्मों और राजनीति दोनों के साथ समाज का भी नुक्सान ही करने वाला होने वाला है.

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