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अगस्ता वेस्टलैंड सौदा

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के रक्षा सौदों के इतिहास में सम्भवतः यह पहली बार ही हुआ है कि दलाली के आरोपों के चलते सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड से वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे को रद्द करने जैसा बड़ा कदम उठा लिया है. यह अच्छा ही है कि इस सौदे में घोटाले और घूस दिए जाने की खबर के समय एके एंटोनी जैसे व्यक्ति के पास रक्षा मंत्रालय था जिन्होंने बिना कोई देर किये जिस तेज़ी से इस मसले की जाँच और निपटाने को प्राथमिकता दी वह अभी तक भारतीय रक्षा सौदों के इतिहास में नहीं दिखायी देती थी. यह खरीद चूंकि इटली से की जा रही थी इसलिए सबसे पहले विपक्षी दलों ने इस पूरे मसले में सोनिया गांधी के परिवार की संलिप्तता की तरफ संदेह जारी करना शुरू कर दिया. जैसा कि स्पष्ट था कि इस डील को सीधे वायुसेना के स्तर पर देखा जा रहा था और भारत की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप होने के कारण इस कम्पनी को प्राथमिकता दी गयी थी पर जब घूस का मामला सामने आया तो पूरे सौदे का यही भविष्य होना तय ओ चुका था क्योंकि चुनावी वर्ष में सरकार भी किसी तरह के ऐसे आरोप को अपने पर लगवाने से बचना भी चाह रही थी.
सबसे महत्वपूर्ण बात जो अभी तक देश के रक्षा सौदों में नहीं दिखायी देती थी कि किसी भी तरह की पारदर्शिता से जुड़े मसले को उनमें शामिल नहीं किया जाता था और किसी भी स्तर पर कुछ गड़बड़ी होने की स्थिति में जहाँ देश की तैयारियों पर बुरा असर पड़ता था वहीं इसमें शामिल लोग आसानी से बच निकलते थे पर इस बार सौदे में इंटिग्रिटी सौदे को किये जाने से जहाँ अगस्ता वेस्टलैंड से यह आशा की गयी थी कि वह इस सौदे में पूरी पारदर्शिता रखेगी वहीं उसको स्पष्ट कर दिया गया था कि किसी भी तरह की गड़बड़ी सामने आने अपर उसे हर्ज़ाना भी देना होगा और उसकी ज़मानत राशि भी ज़ब्त कर ली जायेगी. सरकार की तरफ से ये सारे कदम एक साथ ही उठाये जाने से जहाँ कम्पनी का सौदा रद्द हो चुका है वहीं पूरी दुनिया में रक्षा और सामरिक महत्व के उपकरण बनाने वाली कम्पनियों के लिए यह संदेश भी स्पष्ट रूप से चला गया है कि अब भारत में इस तरह के किसी भी सौदे में यदि गड़बड़ी पायी जाती है तो पूरा सौदा भी रद्द हो सकता और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
दुनिया भर में रक्षा सौदों में इस तरह से कमीशन एजेंट नियुक्त करने का चलन आज भी चल रहा है जिससे कम्पनी की तरफ़ से इसे अपने उत्पाद की प्रमोशन कहा जाता है पर अधिकांश बार सौदा पटाने के लिए ज़िम्मेदार लोगों को उपकृत करके सौदे करवाये जाते हैं. अच्छा ही है कि इस बार भारत के इस कदम से जहाँ पूरी दुनिया में यह संदेश चला गया है कि अब इस तरह के महत्वपूर्ण सौदों में किसी भी तरह की दलाली पाये जाने पर पूरे सौदे को भी रद्द कर जुर्माना लगाने के बारे में भारत से सोचना शुरू कर दिया है तो उतने से ही पूरा मामला सुधार की तरफ बढ़ सकता है. देश अभी भी जिस तरह से रक्षा आवश्यकताओं में आत्म निर्भर होने से बहुत ही दूर है तो खरीद तो करनी ही होंगी पर अब कोई भी खरीद किसी भी स्तर पर देश के आर्थिक संसाधनों को चोट पहुंचाकर नहीं की जा सकेगी. इस बार जिस तरह से इंटिग्रिटी समझौते को महत्वपूर्ण तरीके से उपयोग में लाया गया है वह अब सभी विदेशी खरीदों में लागू किया जाना चाहिए जिससे आने वाले समय में इस तरह के सौदों को निरापद ढंग से संपन्न किया जा सके. साथ ही अब समय आ गया है कि हम अपने यहाँ निजी क्षेत्र के लिए रक्षा उत्पादों के दरवाज़े खोलना शुरू कर दें जिससे देश में इनका उत्पादन भी शुरू हो सके और कम समय में देश की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके.

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