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अरविन्द के नाम पाती

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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प्रिय अरविन्द,
देश की राजनीति में शुचिता और मूल्यों आधारित चुनाव लड़ने और सम्मानजनक जीत पर आप और आम आदमी पार्टी को देश की शुभकामनाएं. जैसा कि चुनाव के बाद स्पष्ट हो ही चुका है कि जनता ने सभी दलों को खंडित जनादेश देकर एक ऐसा माहौल बना दिया है जिसमें कोई भी दल आज बहुमत की सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं है और जब भाजपा यह जान चुकी है कि कॉंग्रेस के लिए उसकी दिल्ली में सरकार एक चुनौती से कम नहीं होगी तो वह किसी भी स्थिति में कोई भी अस्थिर सरकार चलाने के पक्ष में नहीं है. अब जब आज आप दिल्ली के उप राज्यपाल से मिलने जाने वाले हैं तो आप पर यह चुनौती और ज़िम्मेदारी भी अधिक आ जाती है कि दिल्ली को एक साफ़ और स्वच्छ सरकार दिलाने में आप अपनी भूमिका का निर्वहन करें. आप की पार्टी के कुछ नेताओं ने जिस तरह से बयानबाज़ी करके माहौल को ख़राब करने का काम करना शुरू किया है उसका भी कोई औचित्य नहीं है क्योंकि जब आप संघर्ष करते हैं तो आप को केवल सरकार की नीतियों का विरोध ही करना पड़ता है पर जब आप सत्ता में आते हैं तो आप पर ही उन नीतियों को बनाने की ज़िम्मेदारी आ जाती है जिनके माध्यम से विपक्षी भी आप का विरोध कर सकते हैं ?
देखिये अरविन्द जी सड़कों पर आंदोलन खड़ा करना दिल्ली जैसे शहर में बहुत आसान है पर जब भी किसी नीति के तहत समाधान की बात होती है तो उसमें पूरे समाज की मानसिकता जुड़ जाया करती है और समाज को सुधारने की दिशा में आप ने जो कदम उठाया है उससे पीछे हटने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप राजनीति में शुचिता लेकर आने का प्रयास कर रहे हैं पर साथ ही देश की वर्तमान राजनीति में शुचिता जिस स्तर पर पहुंची हुई है उसको सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता पड़ेगी और जब आप के पास एक अवसर आया है और भले ही अल्पमत की ही सही पर आप सरकार बना पाने और उसे चलने की स्थिति में भी हैं तो उससे पलायन करने का कोई मतलब भी नहीं बनता है ? लोकसभा चुनावों से पहले आप के पास जो समय है यदि उसमें आप अपनी नीतियों के निर्धारण के लिए प्रयासरत हो जाते हैं तो आपको अपने दल की सम्भावनाओं के बारे में भी पता चल जायेगा वर्ना जिस कॉंग्रेस से दिल्ली को मुक्त करने की बातें आपने दिल्ली की जनता से की थीं सत्ता अपरोक्ष रूप से उसी कॉंग्रेस के हाथों में ही रहने वाली है तो फिर इस तरह से शुरुवात करने में आपको किस तरह की झिझक है ?
समझाइये अपने नेताओं को कि वे अब सड़कों पर नहीं सदन के अंदर जाने की स्थिति में आ चुके हैं और जिस तरह से उनका व्यवहार पल पल बदल रहा है उससे कहीं न कहीं आप के उन विरोधियों को आप के ख़िलाफ़ बातें करने का अवसर भी मिल रहा है यदि कॉंग्रेस अपनी तरफ़ से बना शर्त समर्थन मिल रहा है जो वे जहाँ तक आपका मुद्दों आधारित समर्थन किसी भी तरह से करती है तो आप को उसे स्वीकार करना चाहिए क्योंकि जब आप सड़कों पर थे तो कुछ भी कह और कर सकते थे पर जब आप सत्ता के प्रतिष्ठानों तक दस्तक देने लगते हैं तो आप को पहले से स्थापित संवैधानिक परम्पराओं का निर्वहन भी करना पड़ता है. कॉंग्रेस का समर्थन लोकसभा चुनावों तक सिर्फ इसलिए भी पक्का ही है क्योंकि उसे भाजपा विरोधी मतों को आप तक बनाये रखना है तो यदि आप इस बीच में कुछ परिवर्तन के साथ सत्ता को चलाते हैं तो आने वाले समय में उससे आप और दूसरे राजनैतिक दलों में अंतर देखने का अवसर भी जनता के पास होगा. यह सही है कि जनता को आप और आम आदमी पार्टी से बहुत आशाएं हैं पर दिल्ली जैसी पढ़ी लिखी जनता ने औसत से बहुत अच्छा काम करने वाली शीला दीक्षित को भी नहीं बख्शा है तो आप को कोई मुग़ालता भी नहीं पालना चाहिए. आगे आइये और उन वास्तविक धरातलीय चुनौतियों का सामना कीजिये और जो धन अगले चुनाव में खर्च हो सकता है उससे आम आदमी को राहत देने की कोशिशें शुरू कीजिये वर्ना ये जनता किसी को भी माफ़ नहीं करती है सभी जानते हैं.
शुभकामनाएं.

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