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मोदी और बहिष्कार की राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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पश्चिमी देशों और यूरोपीय संघ द्वारा गोधरा कांड और उसके बाद के घटनाक्रम के चलते गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी का राजनयिक बहिष्कार अब अपने अंतिम दौर में पहुंचा हुआ सा लगता है क्योंकि जिस तरह से देश में उस समय घटनाओं ने मोड़ लिया था और केंद्र में भाजपा नीत राजग की सरकार और अटल बिहारी जैसे निर्विवाद व्यक्ति के पीएम रहते हुए पूरा घटनाक्रम घटा था उसके बाद मानवाधिकारों की पैरवी में लगे रहे वाले और दोहरे मानदंडों को अपनाने वाले इन देशों का रुख एक तरह से भारतीय मामलों में सीधा हस्तक्षेप ही था पर उस समय भाजपा जिस तरह से अपने अच्छे नेता के बाद भी निचले ग्राफ की तरफ जा रही थी तो इन देशों ने अपने स्तर से जो भी करना चाहा किया पर अब जब गुजरात उन्हें निवेश का अच्छा मौका दे रहा है तो यूरोपीय संघ ने मोदी के इस बहिष्कार को स्वतः ही समाप्त कर दिया है और जिस तरह से जर्मनी के भारतीय राजदूत ने ब्रिटेन के पीएम के बाद भारतीय राजनीति के बदलाव और भारतीय राजनीति के स्थायित्व को समझा है वह आने वाले दिनों में भारत के महत्व को ही दर्शाता है.
गुजरात की जनता ने नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता में भेजकर यह दर्शा दिया कि वह पुरानी बातों से आगे बढ़कर सोचने की पहल कर चुकी है तो उस स्थिति में स्वार्थी पश्चिमी देशों के पाला बदलने में बिलकुल भी देर नहीं लगने वाली है क्योंकि उनका हर फैसला केवल तात्कालिक नीतियों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है. आने वाले समय में यदि भारत में सत्ता परिवर्तन होता है तो उसको देखते हुए इन देशों ने अभी से अपने सम्बन्धों को खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है क्योंकि भारत जैसे किसी भी जीवंत लोकतंत्र में जनता की इच्छा का सम्मान न करके इन देशों को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है फिर भी जिस तरह से आज इसे भी मुद्दा बनाया जाता है वह देश के लिए दुर्भाग्य का विषय है. कल को यदि आम चुनावों के बाद भाजपा सत्ता में आती है और नरेंद्र मोदी को पीएम पद मिलता है तो वे भारत के पीएम होंगें न कि भाजपा के तो उस स्थिति में इन देशों के सामने बड़ा सवाल यह होगा कि वे व्यक्ति आधारित फैसले करें या राष्ट्र आधारित ?
इतिहास में यदि देखा जाये तो अनावश्यक रूप से दुनिया में संघर्ष को बढ़ावा देने में आज अमेरिका और अपनी आतंक समर्थक विस्तारवादी नीतियों के चलते पाकिस्तान सबसे बुरे देश कहे जा सकते हैं पर जिस तरह से अमेरिका की ज़रुरत सभी देशों को है तो वे उसके किसी भी कदम का खुलकर विरोध करना ही नहीं चाहते हैं तो उसके चलते दुनिया में क्या बदला जा रहा है और पाकिस्तान आज विश्व भर में इस्लामिक चरमपंथियों का सबसे बड़ा ठिकाना है यह जानकर भी क्या किसी देश ने उससे अपने सम्बन्धों को तोड़ने के बारे में सोचा है ? बल्कि अमेरिका अपने खाड़ी और मध्यपूर्व के उद्देश्यों कि पूर्ति के लिए आज भी पाकिस्तान का दुरूपयोग करने में लगा हुआ है इस स्थिति में यदि देखा जाये तो भारत के साथ किसी भी देश के सम्बन्ध इस तरह से नहीं हैं कि वे भारत की आसानी से अनदेखी भी कर सकें. सम्भवतः भारत के जीवंत और प्रभावी लोकतंत्र के चलते ही पश्चिमी देश चुनाव से पूर्व अपने सभी विकल्प खुले रहना चाहते हैं क्योंकि आने वाले दिनों में जो भी सरकार होगी उसकी आवश्यकता सभी को पड़ने वाली है और भारत का बड़ा बाज़ार किसी को भी आसानी से बैठने नहीं देगा और उनकी कथित नैतिकता को एक ही पल में आइना दिखा देगा.

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