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अयुद्ध अयोध्या का द्वन्द

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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एक बार फिर से देश में राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए जिस तरह से धर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है वह आने वाले समय में किसी के लिए भी अच्छे संकेत लेकर नहीं आने वाला है क्योंकि धार्मिक उन्माद से ग्रस्त विश्व का कोई भी समाज किसी भी परिस्थिति में सही क़दम नहीं उठा सकता है उस उन्माद में वह यह भूल जाता है कि उसका अपने पड़ोसियों और अपने शहर के मोहल्लों में रहने वालों से कितनी पीढ़ियों का साथ है और वह किसी उस ग़लती का बदला किसी भी उस व्यक्ति से लेने के लिए उतारू हो जाता है जिसके लिए वह ज़िम्मेदार ही नहीं होता है ? भारतीय संविधान ने देश में सभी नागरिकों को हर तरह की स्वतंत्रता दे रखी है जिससे कोई भी अपनी धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं के अनुसार किसी भी तरह के आयोजनों को करने के लिए स्वतंत्र है पर साथ ही राज्यों को यह अधिकार भी दे रखे हैं कि वे कानून व्यवस्था की स्थितियों को बनाये रखने के लिए उचित क़दम भी उठाने से परहेज़ नहीं करेंगें.
राजनीति में धर्म का घालमेल किस तरह से समाज के लिए विभाजनकारी हो सकता है यह इस बार की यात्रा से स्पष्ट हो रहा है क्योंकि एक ऐसी यात्रा जिसको लेकर अभी संत ही एक मत नहीं है उसे निकालने पर आमादा राजनैतिक लगाव वाले संतों के लिए भले ही भविष्य में कुछ मिल जाए पर इससे आम संतों और धर्म का जिस तरह से उपहास किया जाता है उसका किसी को भी अधिकार नहीं है क्योंकि धर्म करने और धर्म के नाम पर इस तरह की किसी भी गतिविधि को करने से किसी भी तरह से धर्म का भला नहीं हो पाता है. देवशयनी एकादशी के बाद से चातुर्मास आरंभ होने की वैदिक परंपरा के कारण इन चार महीनों में किसी भी तरह के ऐसे आयोजनों को किए जाने का कोई शास्त्रीय विधान नहीं है फिर भी कुछ राजनैतिक लगाव वाले संतों के माध्यम से इस यात्रा का आयोजन किया जा रहा है जिसके पक्ष में कोई शास्त्रीय सम्मति नहीं हो सकती है ? इसलिए ही बड़े संतों ने प्रारंभ में इस यात्रा का विरोध किया था और अब सरकार के यात्रा रोकने के दबाव के कारण वे इसे संत समाज की प्रतिष्ठा से जोड़ने में लगे हुए हैं.
इस मामले में राजनीति के चतुर खिलाड़ी मुलायम भी गच्चा खा गए क्योंकि जब संतों का प्रतिनिधिमंडल उनसे और अखिलेश से मिलने लखनऊ आया था तो उन्हें किसी भी दल या संगठन के स्थान पर इन्हीं संतों को विश्वास में लेकर उनकी सीमित संख्या में यात्रा निकालने के आश्वासन के बाद इस यात्रा की अनुमति दे देनी चाहिए थी जिससे यह इतना बड़ा मुद्दा ही नहीं बन पाता ? यात्रा करने के किसी के भी अधिकार को सिर्फ इस बहाने से नहीं रोका जा सकता है कि उससे सद्भाव बिगड़ता है कुछ संतों की इस यात्रा को यदि सरकार समुचित शर्तों के साथ अनुमति और सुरक्षा देने का काम कर देती तो यह कोई बड़ी बात नहीं होती पर सरकार ने सपा की उसी मानसिकता को एक बार फिर से दर्शा कर विहिप को इसे आम हिन्दुओं की अस्मिता और भी न जाने क्या क्या कहने के लिए प्रेरित ही किया है. इस मामले में सरकार को जिस संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए था उसने उसका परिचय नहीं दिया क्योंकि यदि सरकार कड़ी शर्तों के साथ यात्रा की अनुमति देती तो शायद विहिप और भाजपा के हाथों एक बड़ा मुद्दा ही नहीं आ पाता पर यह देश का दुर्भाग्य है कि यदि भाजपा को अपने हिन्दू वोटों की चिंता है तो सपा को मुसलमान वोटों की और इन लोगों की इस लड़ाई में अयोध्या फैज़ाबाद के आम नागरिक एक बार फिर से मोहरा बनने और परेशानी उठाने को मजबूर हैं ?

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