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कश्मीर के बाद पंजाब भी ?

***.......सीधी खरी बात.......***
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पहले कश्मीर में अफज़ल की फाँसी रोकने के लिए जिस तरह से जम्मू कश्मीर सरकार ने अपनी राजनीति करनी शुरू की थी अब लगता है पंजाब भी उसी राह पर जाता हुआ दिख रहा है क्योंकि देविंदर पाल सिंह भुल्लर की फाँसी का रास्ता साफ़ हो जाने के बाद जिस तरह से अब पंजाब के अकाली नेता केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की नीति पर चल रहे हैं उसका कोई मतलब नहीं है. भुल्लर ने चाहे जिन भी परिस्थितियों में आतंकी हमलों की योजनायें बनाई हों और उन पर अमल किया हो पर जिस तरह से देश के कानून द्वारा मौत की सज़ा पाए हुए आतंकियों के पक्ष में अभियान चलाने का एक नया दौर शुरू हो गया है उससे देश में घटिया राजनीति की दिशा का ही पता चलता है. इन आतंकियों द्वारा जिस तरह से मानवता को तार-तार किया जाता रहा है और उनके इस तरह के कामों से जिन निर्दोष लोगों की जानें चली गईं हमारे अवसरवादी नेता उन मुद्दों पर कुछ नहीं बोलते हैं शायद इसलिए कि इन हमलों में इन नेताओं के किसी रिश्तेदार या परिवार वाले की मौत नहीं हुई है यदि ऐसा होता तो भी क्या ये इस तरह से आतंकियों के पक्ष में खड़े होते दिखाई देते ?
देश को सही सोच वाले और कड़े निर्णय लेने वाले नेताओं की आवश्यकता है न कि अब्दुल्लाह और बादल जैसों की जिनको आज के दौर में यह लगता है कि यदि दुर्दांत आतंकियों को फाँसी दी जाती है तो उससे हालात और बिगड़ जायेंगें ? देश के संविधान के अनुसार किसी सज़ा प्राप्त व्यक्ति को यदि सज़ा दिलाने से किसी राज्य का सीएम अक्षम है तो उसे अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि अपने पद और गोपनीयता की शपथ लेते समय ये नेता केवल विधि द्वारा स्थापित भारतीय संविधान की रक्षा करने की बात करते हैं तो क्या आज ये आतंक समर्थक नेता अपने को कानून से ऊपर समझने लगे हैं ? पंजाब का इतिहास निर्दोषों की रक्षा करने में अपनी जान लुटाने का रहा है क्योंकि वहां पर उस सिख परंपरा का सदियों से निर्वाह किया जा रहा है जो निर्दोषों के पक्ष में बिना अपने पराये का भेद किये हुए सत्य के साथ खड़ी होना जानती है और जिसके बाजुओं में इतना दम आज भी है कि वह किसी भी बलिदान के लिए तैयार है तो इन बादल जैसे नेताओं को उनका अपमान करने का हक किसने दे दिया है ?
धर्म के नाम पर इस तरह से एक बार फिर से लोगों की भावनाओं से खेलने की कोशिशें जारी हैं क्योंकि जब तक हमारे नेता धर्म की इस अफ़ीम को अपने लाभ के लिए जनता को चटाते रहेंगें तब तक किसी अफज़ल या भुल्लर के समर्थक देश में कम नहीं होंगें. भाजपा जो अभी तक अफज़ल और कसाब के मामले पर केंद्र सरकार को लगातार घेरने का काम किया करती थी वह आज चुप क्यों है ? केंद्र की राजनीति में ताल ठोंककर आने को तैयार बैठे मोदी की ज़बान पर इस मुद्दे पर ताला क्यों है ? साबरमती की बोगियों में जलने वाले तो उन्हें धर्म के चश्में से अपने दिखाई देते हैं पर लालडू में बस से खींचकर मारे जाने वाले निर्दोष पंजाबी हिन्दुओं से शायद गुजरात में उन्हें वोट नहीं मिल सकते हैं तभी उनके पास शब्द नहीं हैं ? अच्छा हो कि राजनीति करते समय देश के सभी दल इस बात का धयान रखें कि इस तरह से लाशों की राजनीति से दूर ही रहें क्योंकि पंजाब ने बेअंत सिंह की शहादत और केपीएस गिल की विवादित सख्ती के बाद जो शांति पाई है उसे इस तरह से थोड़े से लाभ के लिए गंवाना ठीक नहीं होगा. अस्सी के दशक में जो ग़लती इंदिरा गाँधी ने भिंडरावाले को शह देकर की थी वह ग़लती आज भाजपा भी अकालियों को चुप रहकर कर रही है.

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