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मूत्र या नियम विसर्जन

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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केवल पैसों के दम पर ही खेल के नाम पर चलने वाले दुनिया के सबसे बड़े सट्टे और घोटाले आईपीएल में पानी को लेकर चल रहा विवाद अभी थम ही नहीं पाया था कि महाराष्ट्र से एक खबर और आ गयी कि शाहरुख़ खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के लिए सतारा के मुगाँव में सिंचाई विभाग ने खुलकर पानी का दुरूपयोग किया और फिल्म की शूटिंग में पूरा सहयोग भी दिया. देश में जिस तरह से हर जगह पर राजनीति खुलकर अपना खेल खेलती है और उससे होने वाले नुकसान का आंकलन कर पाना किसी के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती होती है तो उस परिस्थिति में देश को किस तरह से अपनी नीतियों का निर्धारण करना चाहिए यह अभी तक किसी की समझ में नहीं अ पाया है. महाराष्ट्र में सूखे के कारण जब अजित पवार जैसे ज़िम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोग इतने घटिया बयान देकर फिर दबाव में माफ़ी मांगने में नहीं चूकते हैं तो उस स्थित में पानी पर राजनीति होने को किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता है.
यह सही है कि किसी भी तरह के उद्योग और किसानों को साथ लेकर चलने की ज़िम्मेदारी हर सरकार पर होती है और कोई भी सरकार चाहे वह केंद्र की हो या राज्य की वह अपने यहाँ खेल और फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न तरह की योजनाएं बनाती ही रहती हैं जिसके लिए उन्हें किसी तरह की अनुमति आदि की आवश्यकता नहीं होती है पर आज राजनीति का जो स्वरुप हमें दिखाई पड़ रहा है उसमें केवल आर्थिक हितों को ही प्राथमिकता दी जा रही है जिससे आम किसानों की ज़रूरतों आदि पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. मुगाँव मामले में सिंचाई विभाग ने जांच के आदेश दिए हैं और प्राथमिक स्तर पर यह पता चला है कि उक्त फिल्म की शूटिंग के लिए पूरी धनराशि का अग्रिम भुगतान किया गया था और साथ ही पूरी तरह से कानून का अनुपालन किया गया. हम सभी जानते हैं कि इस तरह की शूटिंग वगैरह के लिए अब सख्त नियम होने के कारण कुछ जगहों पर कुछ लोग अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर आगे के काम निकाल लिया करते हैं जिसका असर समाज पर इस तरह से ही पड़ता है.
सिंचाई विभाग का कहना है कि उसने इस मामले में पूरी तरह से कानून का अनुपालन किया है और फिल्म की शूटिंग के लिए वही पानी छोड़ा गया है जो मानकों से अधिक था. हो सकता है कि विभाग पूरी तरह से सच ही बोल रहा हो पर जब पानी को बिना किसी पूर्व सूचना के छोड़ा जाना था या फिर इसके लिए कोई समय निर्धारित कर लिया गया था तो डैम से पानी छोड़े जाने से पहले उसके फिल्म की शूटिंग से बचकर आगे जाने के मार्ग पर किसानों को सूचित कर उसका एक बार फिर से प्रयोग किया जा सकता था ? कम्पनी रेड चिली का कहना है कि पूरी शूटिंग के लिए पानी टैंकरों से लाया गया और जो भी पानी इस्तेमाल हुआ उसका पूरा भुगतान भी किया गया था जबकि किसानों का आरोप है कि इस मामले में पानी को टैंकरों से नहीं लाया गया था. अब जांच में क्या सामने आएगा या तो समय ही बता सकता है पर आज जिस तरह से यह सब चल रहा है उसका असर किसानों पर तो पड़ ही रहा है साथ ही रोज़ रोज़ की समस्याओं से बचने के लिए फिल्म उद्योग भी अपने सामने उपलब्ध अन्य विकल्पों पर विचार करने के बारे में सोचना शुरू कर सकता है. पूरे मामले में दोषियों को सज़ा दिलवाने के स्थान पर इस तरह से आरोप प्रत्यारोप से किसी को कुछ हासिल नहीं होने वाला है पर घटिया राजनीति का एक और नमूना देखने के लिए हमारे सामने पट कथा लिखी ही जा चुकी है.

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