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टीडीएस और केंद्रीयकृत व्यवस्था

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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तेज़ी से आगे बढ़ते तकनीकी युग में आज देश में बहुत सारी ऐसी कोशिशें भी जारी हैं जिनसे आने वाले समय में सामान्य सरकारी काम काज को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने में बहुत मदद मिलना शुरू हो जाएगी. गाज़ियाबाद के वैशाली में इनफ़ोसिस द्वारा तैयार किये गए टीडीएस केंद्रीयकृत प्रसंस्करण केंद्र की सेवाएं आयकर विभाग के लिए शुरू करते समय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला. उनके अभी तक देश में लगभग २८ लाख टीडीएस के मामले होते हैं जिनमें से केवल आधे ही अपने रिटर्न के बारे में विभाग को सूचित करते हैं जबकि आयकर विभाग इन सभी को रिटर्न भरने के दायरे में लाने की कोशिशों में लगा हुआ है. इस तरह की आधुनिक तकनीक के माध्यम से अब पूरे देश में कहीं से भी किये गए बड़े वित्तीय लेन देन की सूचना अब आयकर विभाग के पास मौजूद रहेगी जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि इस माध्यम से सरकार को कितना टैक्स मिल रहा है और जिन लोगों ने विभाग के पास अपने रिटर्न दाखिल कर दिए हैं उनको तेज़ी से कर स्रोत से कटौती के बाद धनराशि की वापसी भी की जा सकेगी.
अभी तक जिस काग़ज़ी प्रक्रिया को अपनाकर यह काम किया जाता था उसमें काफी देर भी लगा करती थी और अनावश्यक काम का बोझ भी बढ़ता जाता था साथ ही कई स्थानों पर वित्तीय क्रिया कलापों में लगे हुए संस्थानों और समूहों के लिए भी टैक्स से जुडी समस्याएं आती रहती थी. अब इस तरह की व्यवस्था के शुरू हो जाने से आयकर विभाग में काफी तेज़ी दिखाई दे सकती है वैसे भी देश के सभी विभागों में आज काम का जिस तरह से रोज़ ही नया बोझ बढ़ता जा रहा है उस परिस्थिति में भी इस तरह की आधुनिक तकनीक पर तेज़ी से काम किए जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि देश में कर दाताओं की संख्या बढ़ने के साथ ही उन पर नज़र रखना और भी कठिन होता जा रहा था. आज भी जिस स्तर पर लोगों को आयकर देना चाहिए वे नहीं दे रहे हैं जिससे एक तरफ किसी न किसी तरह से कर चोरी को बढ़ावा मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ आयकर विभाग में भ्रष्टाचार भी बढ़ता जा रहा है. सरकार को इस तरफ भी पूरी तरह से ध्यान देना ही होगा क्योंकि जब तक सरकारी कार्यालयों में काम करने की संस्कृति विकसित नहीं हो पायेगी कोई भी काम सही ढंग से नहीं चल पाएगा.
इसके साथ ही आज की मंहगाई और मुद्रा स्फीति की दर को देखते हुए सरकार को इस बात पर विचार करने की ज़रुरत है कि आयकर पूरी तरह से इसके अनुकूल भी हो क्योंकि आज जिस तेज़ी से मंहगाई बढ़ रही है सरकार उस तेज़ी से आयकर की सीमा को नहीं बढ़ा रही है फिर भी सरकार को यह लगता है कि आम लोग कर नहीं दे रहे हैं. आज की परिस्थिति में जब सामान्य मध्यम परिवार का गुज़ारा ही २० हज़ार रु में नहीं हो सकता है तो सरकार का आयकर की सीमा २ लाख पर रोकने का क्या मतलब बनता है. जो भी लोग किसी सरकारी या निजी क्षेत्र में काम कर रहे हैं उनके वेतन से कटौती हो जाती है पर अन्य क्षेत्रों से सरकार को कर नहीं मिल पाता है क्योंकि अनावश्यक कागजों के झमेले और कर जमा करने की कठिन प्रक्रिया के कारण भी बहुत से लोग इसे अपनाना ही नहीं चाहते हैं जबकि लम्बे समय में आयकर देना उनके ही हित में अच्छा साबित होता है. सरकार के कर ढांचे और आयकर कानूनों के जन सामान्य के लिए स्वीकार्य होने के लिए अब काम किए जाने की ज़रुरत है क्योंकि आने वाले समय में सही दिशा में काम न किए जाने से ही जहाँ कर चोरी करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है वहीं सरकार को भी बड़ा कर का नुकसान होता रहेगा.

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