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वर्मा समिति और हम

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ जघन्य अपराधों को अंजाम देने के बाद भी खुलेआम बच जाने वाले लोगों और इन अपराधों में शामिल लोगों के लिए कड़ी सज़ा की सिफारिश करने के लिए गठित वर्मा समिति ने जिस तत्परता से केवल २९ दिनों में प्राप्त ८०,००० सुझावों पर विचार करके ६३० पेज की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है उसके लिए वह बधाई की पात्र है क्योंकि अभी तक देश में किसी भी मसले पर गठित समिति या आयोग ने इतने कम समय में पूरा विचार करके कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी है. जिस तरह से आम लोग दिल्ली की घटना से आहत हुए और उन्होंने इस समिति को खुलकर अपने विचार भी भेजे उससे पता चलता है कि देश में जागरूक लोगों की कोई कमी नहीं है अब उनको इस तरह से समाज के हित में केवल आवाज़ देने की ज़रुरत है और वे जनहित में बिना किसी नेतृत्व के भी आगे आने को तैयार हैं. समिति ने जिस तरह से एक तरफ महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में शामिल लोगों के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान सुझाया है वहीं उसने गैंग रेप के आरोपियों के लिए आजीवन सज़ा की बात भी की है. देश में अंग्रेजों के समय के पुलिस नियमों में बदलाव करके पूरे देश में पुलिस सुधारों की तरफ़ ध्यान दिए जाने पर भी समिति ने ज़ोर दिया है क्योंकि विवेचना का अधिकार पुलिस के पास होने के कारण जब तक उसका मानवीय चेहरा सामने नहीं आता है तब तक कोई भी सुधार सफल नहीं हो सकेगा ?
समिति का यह भी मानना सही ही है कि देश के कानून में कोई कमी नहीं है पर जिस तरह से उनके अनुपालन में कोताही बरती जाती है उस स्थिति को अब बदलने की ज़रुरत है. केवल कानून से काम करने की मानसिकता में बदलाव नहीं लाया जा सकता है इसलिए अब हर हाल में अपराधों की विवेचना और शिकायतों से जुड़े मसलों पर तेज़ी से काम करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. शिकायतों पर ध्यान न देने वाले सरकारी कर्मचारियों को भी लापरवाही के आरोप में सज़ा अवश्य ही दी जानी चाहिए जिससे ये अधिकारी और कर्मचारी भी महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराधों पर मानवीयता के साथ विचार कर काम काम करने के लिए बाध्य किये जा सकें. न्याय की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए जजों की संख्या को समयबद्ध तरीके से बढ़ाये जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए जिससे मुकदमों की सुनवाई तेज़ी से की जा सके. राजनेताओं के बारे में जो सबसे महत्वपूर्ण सुझाव उन पर ही छोड़ दिया गया है कि अपराध के आरोपी नेताओं को खुद ही अपना पद छोड़ देना चाहिए जिससे संसद की गरिमा भी बची रहे पर क्या नेता इतने बड़े त्याग के लिए राज़ी होंगें वह भी तब जब पिछले ३ दशकों में अपराधी पृष्ठभूमि से जुड़े लोग तेज़ी से राजनीति में घुसने लगे हैं ?
सबसे महत्वपूर्ण सुझाव जो अशांत क्षेत्रों के लिए आया है कि वहां पर किसी भी अपराध की सुनवाई नियमित कोर्ट में की जाये सबसे अधिक विवादित हो सकता है क्योंकि इन क्षेत्रों में अक्सर महिलाओं से बलात्कार की बातें सामने आती हैं और उनका निर्णय कोर्ट मार्शल द्वारा ही किया जाता है. सैन्य कोर्टों की विश्वसनीयता पर कोई सवाल नहीं उठाये जा सकते हैं पर जब सेना के मनोबल की बात आती है तो कहीं न कहीं से इन क्षेत्रों में अलगाववादियों द्वारा भविष्य में कुछ ऐसा किया जा सकता है जो पूरी तरह से झूठ ही हो और तब सैनिकों को इस तरह से सिविल अदालतों में लाया ले जाना मुश्किल भी हो सकता है क्योंकि स्थानीय लोगों को भड़काकर अराजकता का माहौल बनाया जा सकता है. इसलिए भारतीय परिदृश्य में ऐसी बाते अभी नहीं संभव हैं फिर भी इन क्षेत्रों में सेना को और भी जवाबदेही के साथ काम करने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरे सुरक्षा परिदृश्य को नहीं समझा जायेगा तब तक स्तरीय प्रयास से कुछ नहीं हो सकता है. कुल मिलाकर वर्मा समिति ने अधिकतर सुझाव ऐसे दिए हैं जिन पर सरकार को अमल कर तुरंत ठोस बदलाव करने चाहिए जिससे आने वाले समय में ऐसा कुछ होने पर उससे गंभीरता से निपटा जा सके.

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