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बिहार और विकास

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने जिस तरह से मुख्यमंत्री ग्राम संपर्क योजना के तहत अगले ५ वर्षों में पूरे बिहार के २५० से अधिक आबादी वाले गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ने की महत्वकांक्षी योजना शुरू करने की पहल की है उससे निश्चित तौर पर बिहार में दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहने वालों की जिंदगी में कुछ आसानी अवश्य ही होने वाली है. इस तरह की ज़मीन से जुडी परियोजनाओं में जो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है कि इनके लिए जितना धन आवंटित किया जाता है अगर वह निचले स्तर तक पहुँचाने में सरकार कामयाब हुई तो पूरे बिहार के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदल सकती है. नितीश सरकार ने जिस तरह से अपने पहले कार्यकाल में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून राज को स्थापित करने की एक शुरुवात की थी आज भी वह उस पर चल रही है जिससे बिहार का भविष्य आने वाले वर्षों में बहुत अच्छा हो सकता है. बिहार के लोगों के लिए आवागमन के लिए अच्छी सड़कें और यातायात साधन उपलब्ध करने के लिए आज तक किसी भी सरकार ने इस तरह की कोई योजना शुरू नहीं की थी और जो कुछ भी अनमने मन से कभी किया भी गया भ्रष्टाचार के कारण उसके परिणाम कभी भी दिखाई नहीं दिए. अब बिहार और देश के लिए इस तरह की परियोजनाओं को ईमानदारी से चलाये जाने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसी बड़ी योजनायें रोज़ नहीं बना करती है.
बिहार ने लम्बे समय से पूरे देश को कुशल कामगार मुहैया कराये हैं और जब से मनरेगा जैसी योजनायें शुरू हुई है बिहार के लोगों को अपने घर के पास ही काम मिलने लगा है जिससे इन लोगों के रोज़गार से संबधित पलायन पर भी असर पड़ा है. देश के किसी भाग में पिछड़ेपन के कारण इस तरह का पलायन आज़ादी के बाद से ही देखा जा रहा है जबकि बिहार कभी प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण हुआ करता था पर सरकारों की चुप्पी और माफिया ठेकेदारों के हाथों में इन संसाधनों की बागडोर रहने के कारण नक्सली आन्दोलन को बिहार में पैर ज़माने का मौका दिया गया. आज यह बहस का विषय नहीं है कि किस सरकार ने क्या किया बल्कि इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि अब उन ग़लतियों को सुधार कर बिहार को कैसे राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करके उसके मानव और प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग किया जाये ? वैसे तो देश में कोई भी कहीं पर जाकर काम करने के लिए स्वतंत्र है पर जब आर्थिक स्तर पर पलायन की बात आती है तो बिहार के लोग सबसे अधिक संख्या में पूरे भारत में जाकर काम करते दिखाई देते हैं ? कई बार तो इसके पीछे यह कारण भी काम करता है कि गाँवों में कानून का राज था ही नहीं तो कभी स्थानीय दबंग लोग या फिर कभी नक्सली इस स्थानों पर लोगों कि परेशान किया करते थे पर गाँवों तक महत्वपूर्ण संपर्क मार्गों के बन जाने से जहाँ आम लोगों के लिए आना जाना आसान होने वाला है वहीँ आवश्यकता पड़ने पर सरकारी तंत्र के लिए सुरक्षा बलों के साथ कहीं भी पहुंचना सरल हो जाएगा.
इस पूरी परियोजना को एक अभियान की तरह करने की आवश्यकता है क्योंकि जब भी हम इस तरह के कामों को शुरू करते हैं तो उसमें भ्रष्टाचार की संभावनाएं बहुत बढ़ जाती है और इनकी निगरानी करने के लिए जिस स्तर पर प्रयासों की आवश्यकता होती है वह नहीं हो पाने से यहाँ पर भ्रष्टाचार अपने पैर आसानी से जमा लेता है और जो धन इस तरह के विकास में खर्च होना चाहिए वह ठेकदारों की जेब में पहुंचकर नेताओं और अधिकारियों तक हिस्से के रूप में पहुँच जाता है. विकास की परियोजनाओं का अपना स्थान है पर जो धन खर्च किया जा रहा है अगर उसे सही तरह से सही जगह पर लगाया जाये तो बिहार क्या देश का कोई भी दुर्गम इलाक़ा विकास की बयार से अछूता नहीं रह सकता है. देश में सरकारों के पास धन का रोना हमेशा ही बना रहता है और वे अपने स्तर से संसाधनों को जुटाने के स्थान पर कहीं से मिली सहायता पर निर्भर रहना अधिक पसंद करते हैं ? बिहार ने अपने दम पर बहुत काम किया है और वहां पर प्रशासन में सुधार और भ्रष्टाचार में कमी होने से कर संग्रह बढ़ने के साथ विकास की योजनायें चलाना आसान होने वाला है फिर भी उसके पिछड़ेपन के कारण उसकी योजनाओं में केंद्र सरकार को भी अपना अंशदान करना चाहिए और मनरेगा अदि अन्य योजनाओं के मामले में वहां की स्थानीय ज़रूरतों के अनुसार काम किये जाने की छूट भी दी जानी चाहिए. विकास की गति बाधित न हो इसका ध्यान रखने के साथ ही विकास के लिए आवश्यक धन जुटाने के मामले में सरकार को अधिक ध्यान देना होगा तभी जाकर सही मायने में योजनायें सफल हो पाएंगीं और बिहार तथा देश का समग्र विकास हो सकेगा.

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