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यूपी के गाँव और बिजली

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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यूपी में बहुत दिनों के बाद कुछ ठोस सरकारी कवायदों के कारण इस बार दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने भी दीपावली के त्यौहार पर अपने क्षेत्र में बिजली की रौशनी देखी जिससे यही लगता है कि यदि समय रहते थोड़े प्रयास कर लिए जाएँ और प्रबंधन इस तरह की तैयारी के साथ आगे आये तो संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. अभी तक जिस भी जगह पर देखा जाये बिजली का रोना ही रहता है और यूपी जैसे बड़े प्रदेश में जहाँ सार्वजनिक संसाधनों की खुलेआम लूट करना एक आदत बन चुका है इस तरह के प्रबंधन से वास्तव में बहुत कुछ सुधारा जा सकता है. जब पूरे प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का बंटवारा करने के मानक ही नहीं सही हैं तो इनके अनुपालन को किस तरह से तर्क संगत बनाया जा सकता है ? आज तक कभी भी प्रदेश में बिजली की समस्या पर कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनाई गयी जिसका असर आज उत्पादन, पारेषण और वितरण में साफ तौर पर दिखाई देता है. यह सही है कि इस तरह की किसी भी योजना को पलक झपकते ही नहीं बनाया जा सकता है पर इसको बनाने की कोशिश तो की ही जा सकती है. प्रदेश में नौकरशाही ने जिस तरह से नेताओं के सामने घुटने टेकने शुरू कर दिए उसने भी प्रदेश का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और जो काम पहले सुचारू रूप से हो जाया करते थे अब उनके होने में भी लाले लगने लगे हैं.
पूरे देश में इस तरह की तकनीकी व्यवस्था को सँभालने का ज़िम्मा आम तौर पर तकनीकी विशेषज्ञों के हवाले ही रहा करता है पर हमारे इस उलटे प्रदेश में राजनैतिक तंत्र हर काम आईएएस अधिकारियों से ही करवाना चाहता है जिससे आवश्यक प्रशासन के लिए प्रदेश में इन अधिकारियों की कमी होती जा रही है और विभागीय तकनीकी समझ न होने के कारण उनके द्वारा विभागों की कोई ख़ास मदद नहीं हो पा रही है. अखिलेश सरकार ने जिस तरह से बिजली विभाग में काफी हद तक फैसले लेने का भार विद्युत् अभियंताओं पर छोड़ दिया है जिससे भी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है पर यह इतना नहीं है कि इससे सब कुछ सुधारा जा सके ? अब भी समय है कि प्रशासनिक अधिकारियों से उनके क्षेत्र के काम लिए जाये और उनकी प्रशासनिक क्षमता का सही तरह से उपयोग किया जाये और तकनीकी विशेषज्ञों को उनके क्षेत्र में तैनाती दी जाये. प्रदेश में सामान्य प्रशासन में भी जिस तरह से अधिकारी नहीं है उससे यही पता चलता है कि प्रदेश में राज करने वाले दल प्रशासन का ककहरा भी नहीं जानते हैं. विभागीय प्रोन्नति एक तरह से ठप हैं जिससे रिटायर होने वाले कर्मचारियों के स्थान को भरने के लिए कुशल लोगों की कमी होती चली जा रही है फिर भी किसी भी सरकार के पास इस बात के लिए समय ही नहीं होता है कि वह इस समस्या के बारे में भी विचार करे और प्रदेश के लिए केंद्र से अधिक संख्या में अधिकारियों के कैडर को बढ़ाने के लिए बात करे .
बिजली व्यवस्था में जितने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है उसे दूर करने के लिए अभी जिस दृढ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है वह अभी भी दिखाई नहीं दे रही है क्योंकि अनियमितताएं जिस स्तर पर हैं उस स्तर पर सुधार नहीं हो पा रहे हैं जिससे भी किसी भी सुधार का क्षणिक प्रभाव तो दिख जाता है पर वह लम्बे समय तक कारगर नहीं हो पाता है ? अब किसी भी सुधार को शुरू करने के साथ उसकी नियमित समीक्षा की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अभी तक जो कुछ भी किया गया है उससे यह पता चलता है कि सुधार और प्रबंध के बारे में सोचा जाये तो सब कुछ सुधारा भी जा सकता है. बिजली विभाग में कर्मचारियों की भर्ती भी करनी होगी क्योंकि संविदा पर काम करने वाले लोगों से विभाग को बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है और वे विभाग में न रहते हुए भी बहुत बड़े भ्रष्टाचार के खेल को खेलने में लगे हुए हैं. इन संविदा कर्मियों ने जिस तरह से बिजली वितरण और पैसे वसूलने की सामानांतर व्यवस्था खड़ी कर ली है उसको देखकर भी सभी देखना नहीं चाहते हैं पर यदि विद्युत् क्षेत्र में वास्तव में कुछ सुधार करने हैं तो आने वाले समय के लिए खुद के साथ पूरे तंत्र को भी तैयार करना ही होगा क्योंकि तभी पूरी क्षमता से संसाधनों का दोहन किया जा सकेगा और वास्तव में परिवर्तनों को जनता तक पहुँचाया जा सकेगा वर्ना बड़े नेताओं के क्षेत्र में बिजली तो आती ही रहेगी और जनता के लिए यह एक बुरा सपना ही बनी रहेगी.

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