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दंगें और तबादले

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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आख़िर में वही हुआ जिसका अंदेशा था यूपी सरकार ने फैज़ाबाद दंगों के सम्बन्ध में अधिकारियों पर स्थिति पर नियंत्रण न कर पाने पर अक्षमता का आरोप लगाकर तबादले की पुरानी नीति पर चलने का काम किया है. क्या देश के नेताओं को यह बात नहीं पता है कि किसी भी उपद्रव में शामिल लोगों के लिए सबसे बड़ी बात यही होती है कि उन्हें कहीं न कहीं से कुछ राजनैतिक संरक्षण अवश्य ही मिला होता है जिसके दम पर ही वे पुलिस और प्रशासन से अनावश्यक रूप से उलझने की ज़ुर्रत करते रहते हैं. प्रदेश सरकार के लिए उस समय काम करना उतना आसान भी नहीं होता है जब उसकी पार्टी के कुछ नेता ही अराजक तत्वों के लिए संरक्षक की भूमिका निभाने लगते हैं. सरकार को सही ग़लत की परवाह हमेशा करनी चाहिए और अधिकारियों को कानून के अनुसार काम करने की पूरी छूट भी देनी चाहिए जिससे प्रदेश का माहौल और ख़राब न हो सके. अधिकारियों को यह निर्देश होने चाहिए कि इस तरह की महत्वपूर्ण गिरफ्तारियों के समय उसकी रेकार्डिंग भी करने के निर्देश होने चाहिए
क्या कारण है कि किसी मस्जिद के आस पास अराजक तत्वों कि खोज करते समय पुलिस पर हमेशा ही यह आरोप लगा दिया जाता है कि उसने धर्म स्थल की पवित्रता को भंग किया है ? क्या प्रदेश के पुलिस अधिकारी इतने अनजान हैं कि उन्हें नहीं पता है कि सपा के शासन में किसी भी तरह से किसी भी मुसलमान को प्रताड़ित करने से उनकी नौकरी पर बन सकती है फिर सभी धर्मों का सम्मान करने वाले आम भारतीय हिन्दू अधिकारियों द्वारा प्रशासन के रूप में किसी मस्जिद में गड़बड़ी करना क्या इतना आसान है ? सरकार को यह दिखाई नहीं देता है कि कुछ अराजक तत्व केवल अपने हितों को साधने के लिए इस तरह के आरोपों का सहारा लिया करते हैं जिससे केवल सरकार की छवि ख़राब होती है और अधिकारियों के लिए संकट उत्पन्न हो जाता है. इस तरह से तो कोई भी प्रशासन पर धर्म स्थल की पवित्रता भंग करने का आरोप लगा सकता है और माहौल को ख़राब कर सकता है ? क्या किसी धर्म स्थल में घुसने वाले किसी भी संदिग्ध का बचाव उस समुदाय द्वारा किया जाना चाहिए या फिर सच को सामने आने देने तक आरोपियों को पुलिस के हवाले किया जाना चाहिए ?
घटिया राजनीति ने देश का पहले से ही बहुत नुकसान कर रखा है और अब जब यूपी में पिछले कई वर्षों से धार्मिक दंगें नहीं होते थे अब सपा की सरकार बनने के साथ वे एक बार फिर से शुरू हो चुके हैं इससे यही पता चलता है कि कहीं न कहीं सपा द्वारा धर्म का इस्तेमाल कर अराजकता फ़ैलाने वाले तत्वों का संरक्षण किया जा रहा है ? अखिलेश के शिक्षित होने के बाद भी प्रशासन उसी तरह से काम कर रहा है जैसे वह पहले की सपा सरकारों के समय किया करता था जिससे पूरे प्रदेश का माहौल ख़राब हो रहा है. दंगों की इस आंच में २०१४ के आम चुनावों के लिए सपा अपने लिए कुछ वोटों का जुगाड़ करना चाहती है वहीं भाजपा सपा के इस कारनामे का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करना चाहती है और सपा सरकार यदि इसी तरह काम करती रही तो आने वाले चुनावों तक धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है. सपा और भाजपा इसका लाभ उठाने की कोशिश करते हुए प्रदेश को एक बार फर से पुरानी तरफ धकेलने की कोशिश करने के प्रयास में हैं जबकि पिछले दो चुनावों से प्रदेश की जनता ने विकास को महत्त्व देकर एक दल को सत्ता सौंपने का काम शुरू किया है पर विकास में फिसड्डी रहने वाले दल अपने लिए निर्दोषों के खून से कुछ वोटों का जुगाड़ करना शुरू कर चुके हैं.

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