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लोकायुक्त और कानून

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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नई दिल्ली में देश भर के लोकायुक्तों के ११ वें सम्मलेन में भाग लेते हुए विभिन्न वक्ताओं ने जिस तरह से भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अपने सुझाव दिए और देश की विभिन्न मौजूदा संस्थाओं को ही मज़बूत किये जाने की वक़ालत की उससे यही लगता है कि अब आने वाले समय के लिए देश कहीं न कहीं से खुद को तैयार कर रहा है. देश में आज जिस तरह से आम जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ी होने की कोशिश में है उससे आने वाले समय में बहुत कुछ सुधर सकता है पर हम आम नागरिक नेताओं और अधिकारियों पर आरोप लगाने से पहले यह कभी नहीं सोचते हैं कि आखिर यह स्थिति कैसे आ गयी कि देश में भ्रष्टाचार आज सब जगहों पर अपनी जड़ें ज़माने में सफल हो गया है और इससे निपटने के सभी उपाय भले ही वे किसी भी स्तर पर किये जा रहे हैं निष्फल साबित होते जा रहे हैं ? आख़िर ये नेता और अधिकारी कहाँ से आते हैं ये भी हमारे देश का ही हिस्सा हैं और इनके बिना देश कैसे चल सकता है पर आज इनमें जिन मूल्यों और नैतिकता की आवश्यकता है वह इनमें कहीं भी दिखाई नहीं देती है.
आज देश की सबसे बड़ी आवश्यकता उन ईमानदार लोगों को सामने लाने की होनी चहिये जिनके भरोसे वास्तव में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ प्रभावी और निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सके केवल बातें करके अपने हितों को साधने वाले बहुत से लोगों को देश आते और जाते देखा चुका है पर सारी परिस्थितियां वहीं पर अटक कर रह जाती हैं जहाँ से इन्हें शुरू किया जाता है क्योंकि हमारे अन्दर ही वह इच्छा शक्ति नहीं बची है जो इस तरह के अनैतिक कामों को करने वालों पर दबाव बनकर उन्हें सही रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर सके ? देश के सभी विभागों के भ्रष्टाचार निवारक संगठनों को एक सूत्र में बाँधा जाना चाहिए क्योंकि जब तक भ्रष्टाचार से जुड़ी सभी सूचनाओं को एक जगह पर एकत्रित करके उनके ख़िलाफ़ अभियान नहीं चलाया जायेगा तब तक छुट-पुट अभियानों के कारण भ्रष्टाचारियों के बच निकलने की संभावनाएं पनपती ही रहेंगीं. यह सही है कि आम जनता में जागरूकता आई है पर वह आज भी स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचारियों से लड़ने के बजाय किसी मसीहा के इंतज़ार में है कि वो आकर सब ठीक कर दे ?
देश में भ्रष्टाचार से निपटने के कानूनों में कमी लायी जानी चाहिए और सरकारी काम काज में पारदर्शिता को बढ़ाया जाना चाहिए जिससे नेताओं और अधिकारियों पर जनता का दबाव बन सके. देश को अब भ्रष्टाचार से निपटने के लिए बहुत सारे कानूनों के स्थान पर संख्या में कम और प्रभावी कानून पर जोर देना ही होगा क्योंकि जब तक इस तरह के काम करने वालों को यह डर नहीं होगा कि वे भी कानून के शिकंजे में आ सकते हैं तब तक भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकेगा. बड़े नीतिगत परिवर्तनों से लाभ उठाकर उद्योग जगत हमेशा से ही देश के विकास की दुहाई देता रहता है जिससे भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार पनपता है पर देश के निचले स्तर के कार्यालयों में जिस तरह से रोज़ ही हजारों रूपये का भ्रष्टाचार किया जाता है वह पूरे देश की अर्थ व्यवस्था और सभी भ्रष्टाचारों को मात कर देता है. तहसील, ब्लॉक, अस्पताल और थाने के स्तर के अनैतिक धनोपार्जन को अगर जोड़ दिया जाये तो देश में अब तक हुए सभी घोटालों को वह रोज़ ही पीछे छोड़ देता है ? पर इस पर प्रहार करके वो सुर्खियाँ नहीं मिल सकती है जो देश के राजनैतिक तंत्र पर हमला करके मिलती हैं बस इसीलिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध हर लड़ाई दिल्ली से शुरू होकर राज्यों की राजधानियों तक दम तोड़ दिया करती है.

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