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निजी जानकारी और सोशल मीडिया

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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नई दिल्ली में युवाओं के एक समूह ने जिस तरह से लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग फेसबुक से कर्नल राजीव गौड़ के बारे में पूरी जानकारी हासिल करके उनके बैंक खाते से ६ लाख रूपये निकले उससे यही लगता है कि जानकारी इन स्थानों पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक कर देने से कभी कभी कितना बड़ा नुकसान हो सकता है. इस तरह की सभी सोशल मीडिया वेब साइटों पर आम लोग अपनी अधिकतम जानकारियां साझा करते हैं जिससे उनके जानने वाले उन्हें यहाँ पर आसानी से खोज सकें. यह सही है कि इसके माध्यम से लोगों को अपने उन पुराने साथियों मित्रों के बारे में जानकारी मिल जाती है जिनके बारे में वे किसी अन्य माध्यम से कुछ भी नहीं जान पाते थे पर अब इस सुविधा के इस तरह के दुरूपयोग होने के बाद यह सभी के लिए सोचने का विषय हो गया है कि अपनी इस सुविधा के लिए वे क्या अपनी मेहनत की कमाई को दांव पर लगाने को तैयार हैं ? आज के युग में जिस तरह से तकनीक ने हमें बहुत सारी सुविधाएँ दी हैं वहीँ उनसे उत्पन्न होने वाले ख़तरे भी बढ़ गए हैं.
ऐसा नहीं है कि इस मामले में नेट सुरक्षा विशेषज्ञ समय समय पर लोगों को विभिन्न माध्यमों से आगाह नहीं करते हैं पर हम आम हिन्दुस्तानियों का यह सोचना कि हमारी जानकारी से भला किसी को क्या लाभ हो सकता है हमें इस ख़तरे के बहुत करीब लाकर खड़ा कर देता है. यदि हम इस तरह के किसी भी साधन का उपयोग कर रहे हैं तो हमें केवल अपनी निजी जानकारियों को उनसे ही साझा करने की अनुमति सार्वजनिक रूप से देनी चाहिए जिनको हम अच्छे से जानते हैं और साथ ही किसी भी अनजान के मित्रता निवेदन को स्वीकार करने से पहले हज़ार बार सोचना चाहिये कि कहीं वह कोई ऐसा अपरचित व्यक्ति तो नहीं है जो किसी समय हमारे लिए इस तरह का कोई ख़तरा उत्पन्न कर सकता है ? आज इन जगहों पर अधिक मित्र होना एक प्रतिष्ठा का विषय माना जाने लगा है जो इस तरह के ख़तरे को बढ़ा देता है. अपने बारे में कुछ भी लिखते समय उनकी गोपनीयता के बारे में पहले से सुनिश्चित हो जाएँ क्योंकि एक बार जानकारी सार्वजनिक हो जाने पर उससे होने वाले ख़तरे को रोकना मुश्किल हो जाता है.
हमें इस बारे में गंभीरता से सोचते हुए काम करना चाहिए क्योंकि यह दिल्ली का मामला था जहाँ पर पुलिस के पास बाकायदा एक साइबर सेल होती है पर देश के दूर दराज़ के इलाकों में जहाँ आज भी पुलिस की उपस्थिति न के बराबर है वहां पर इस तरह की रिपोर्ट करवाने के लिए कोई सुनिश्चित स्थान भी नहीं है ऐसे में अपनी सुरक्षा के बारे में हमें खुद ही सचेत रहने की ज़रुरत है. पूरे देश में दिल्ली की तरह की सविधाएं नहीं उपलब्ध हैं और ऐसे में किसी भी तरह के किसी भी ख़तरे से अपने को बचा पाना केवल हमारे हाथों में ही है क्योंकि यह हमारी ही ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी जानकारियों को किस हद तक साझा करें कि हम सुरक्षित रह सकें यह और कोई नहीं जान सकता है. फिर भी यदि किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी कहीं पर भी दिखाई दे तो उसके बारे में पुलिस को सूचित करने से हिचकना भी नहीं चाहिए क्योंकि चुप रहने से इस तरह का काम करने वालो के हौसले बढ़ते ही जाते हैं और वे आज किसी और को तो कल हमें भी निशाने पर ले सकते हैं. इन साधनों का अपने हितों के लिए उपयोग करना सीखना चाहिए न कि इसे अपने लिए ख़तरा उत्पन्न करने वाले एक साधन के रूप में छोड़ देना चाहिए.

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