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हिंदी और आईआईटी

***.......सीधी खरी बात.......***
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झारखण्ड हाई कोर्ट ने देश के प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान आईआईटी को निर्देश देते हुए उससे झारखण्ड के निवासी तौसीफ रज़ा को उसके हिंदी में प्राप्त प्रमाणपत्रो के साथ ही प्रवेश देने का आदेश दिया है. असल में आईआईटी ने झारखण्ड के निवासी तौसीफ़ रज़ा के अच्छे अंकों से चयन के बाद उनसे झारखण्ड शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी किये गए प्रमाण पत्र के हिंदी में होने के कारण इसे अंग्रेजी में लाने के लिए कहा था जिस पर रज़ा ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था और राज्य सरकार को भी इस मुद्दे पर घसीटा था. कोर्ट ने दो टूक निर्णय में यह कहा है कि हिंदी देश की आधिकारिक भाषा है और इसमें जारी किये गए किसी भी प्रमाणपत्र को देश में कहीं भी लेने से इनकार नहीं किया जा सकता है साथ ही कोर्ट ने तौसीफ़ को भी यह कहा कि वे भाषा विशेष में दिए गए किसी भी प्रमाणपत्र के आधार पर किसी राज्य सरकार को वादी नहीं बना सकते हैं. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि किसी भी राज्य के किसी भाषा में दिए गए प्रमाणपत्र के लिए उससे कोर्ट में नहीं लड़ा जा सकता है क्योंकि यह राज्य का अधिकार है कि वह किसी भी भाषा में कोई भी प्रमाणपत्र जारी कर सकता है.
इस मामले में सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि क्या इससे पहले झारखण्ड से कोई छात्र आईआईटी तक पहुंचा ही नहीं या फिर पहले हिंदी में प्रमाणपत्र के होने को लेकर इस तरह की संवेदन शून्यता नहीं दिखाई गयी ? देश के संविधान ने बहुत सारी भारतीय भाषाओँ को यह अधिकार दिया हुआ है कि वे पूरे हक़ के साथ आगे बढ़ सकें फिर इस तरह का मामला सामने आना ही दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि किसी एक व्यक्ति की इस हरकत के कारण तौसीफ़ रज़ा को कोर्ट तक जाने की आवश्यकता पड़ गयी जिसने यदि थोड़ी सी संवेदन शीलता दिखाई होती तो यह मुद्दा ही नहीं बन पाता ? इस तरह का आधिकारिक निर्णय क्या आईआईटी द्वारा लिया गया था कि हिंदी में जारी प्रमाणपत्रों को नहीं स्वीकार किया जायेगा या फिर यह किसी व्यक्ति विशेष की ज़िद के कारण ही उत्पन्न होने वाला विवाद था ? इस मामले में जांचकर जो भी दोषी हो उसके विरुद्ध पूरी नियमपूर्वक कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे आने वाले समय में इस तरह के अनावश्यक विवादों से बचा जा सके और किसी भी छात्र या अन्य किसी को इस तरह की बातों के लिए कोर्ट तक जाने की नौबत न आने पाए ?
देश के संविधान में दिए गए इस तरह के अधिकारों के बारे में या तो लोगों को जानकारी ही नहीं है या फिर कुछ लोग अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए इस तरह की हरकतों से बाज़ नहीं आते हैं ? देश में भाषा के नाम पर इस तरह के विवाद खड़े करना कुछ लोगों की मानसिकता में आ चुका है इसलिए तौसीफ़ ने जो कुछ भी बिलकुल सही किया और उसने देश के किसी भी संस्थान में मान्य भारतीय भाषा में प्रमाणपत्र होने की दशा में एक स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करवाने में महत्वपूण भूमिका निभाई. आज जब पूरे विश्व में धीरे धीरे हिंदी अपने विस्तार पर गर्व कर रही है तो उसकी उत्पत्ति स्थल में इस तरह की घटनाओं से यही लगता है कि कुछ लोग कभी भी नहीं बदल सकते हैं और उनके द्वारा किये जाने वाले अधिकांश काम विवादों से परे नहीं हो सकते हैं. दक्षिण अफ्रीका में जब विश्व हिंदी सम्मलेन किया जाता है तो पूरे विश्व में रहने वाले भारतीय उससे पुलकित होते हैं पर देश के अन्दर ही इस तरह से भाषा का निरादर करने वाली यह स्थिति आख़िर कैसे आ जाती है ? कहने के लिए देश में एक राजभाषा विभाग भी है जिसके काम भारतीय भाषाओँ के विकास पर ध्यान देना ही है फिर इस मामले में उसने तौसीफ़ की क्या मदद की यह अभी स्पष्ट नहीं है पर अब कोर्ट के इस निर्णय के बाद इस विभाग को इस बात के आदेश जारी कर देने ही चाहिए जिससे आने वाले समय में किसी को इस तरह से कोर्ट से न्याय न मांगना पड़े ?

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