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इस्तीफ़ा और भ्रष्टाचार

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता भुवन चन्द्र खंडूरी ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पीएम मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग करने को समस्या का समाधान नहीं बताया है उनका कहना बिलकुल ठीक ही है कि एक के हटने के बाद जो दूसरा आएगा उससे यह आशा कैसे की जा सकती है कि वह भी भ्रष्टाचार नहीं करेगा ? इस बात से एक बात यह भी स्पष्ट हो रही है कि भ्रष्टाचार पर अभी तक देश के नेताओं की जो राय है वह पूरी तरह से सही नहीं है और अब भ्रष्टाचार के दोषियों की बात करने के स्थान पर उन कारणों पर विचार करने की आवश्यकता है जिनके कारण भ्रष्टाचार पनपता है. खंडूरी सेना से जुड़े रहे हैं और आज भी भारतीय सेना से जुड़े अधिकांश लोग सही बात कहने में विश्वास करते हैं इसलिए ही उन्होंने अपने पार्टी के रुख से अलग हटकर इस तरह की बात कहने की हिम्मत दिखाई है. यह सही है कि हर राजनैतिक दल यही चाहता है कि उसकी सरकार हमेशा ही चलती रहे पर यह काम वह अपने अच्छे कार्यों के स्थान पर विपक्ष की कमज़ोरी के दम पर करना चाहता है जिसका लोकतंत्र में अब कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि अच्छे काम के लिए सभी को एकमत होने की आवश्यकता है और इसके बिना कुछ भी सही नहीं किया जा सकता है.
भारतीय लोकतंत्र में जिस स्तर पर सुधार होना चाहिए वह कहीं से भी दिखाई नहीं देता है जबकि लोकतंत्र की मजबूती के लिए हर दल को एक स्पष्ट नीति पर काम करने की आवश्यकता है. ऐसी स्थिति में आख़िर तंत्र की कमियों को दूर किये बिना किसी भी समस्या का हल कैसे निकला जा सकता है ? देश को जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता है आज भी वह कहीं नहीं दिखाई देती है केवल विरोध के नाम पर ही विरोध होने लगा है. शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में आन्दोलन करने वाले संगठन केवल इसी बात पर क्यों ध्यान देते हैं कि केंद्र सरकार ने क्या किया भ्रष्टाचार किसी भी जगह हो उसको एक सामान माना जाना चाहिए क्योंकि हर जगह पर होने वाले किसी भी भ्रष्टाचार से अंत में केवल जनता की ही हार होती है. शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार का जो स्वरुप हमें दिखाई दे रहा है ज़मीनी स्तर पर वह कहीं और ही घातक है. किसी भी राज्य या केंद्र सरकार के किसी भी कार्यालय में आज कितने नियमों से बिना पैसे लिए हुए काम हो रहा है यह सभी जानते हैं पर इन बातों को सबूत के तौर पर इकठ्ठा नहीं किया जा सकता है क्योंकि बेईमानी का यह धंधा बहुत ही ईमानदारी से किया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से आने वाली विभिन्न योजनाओं में स्थानीय स्तर पर जितनी अनियमितता की जाती है उसमें कौन लगा हुआ है हम आप जैसे लोग ही इस तरह की भ्रष्टाचार युक्त प्रणाली को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं.
किसी भी राज्य में जाकर किसी भी विभाग में देखा जाये तो एक जैसा सीन ही दिखाई देता है क्योंकि भ्रष्टाचार करने के नियमों का बहुत अच्छे से पालन किया जाता है जिस कारण ही यह तंत्र पूरी तरह से फल फूल रहा है. आज भी हम में से कोई इस बात पर ध्यान क्यों नहीं देना चाहता है कि आख़िर ऐसा क्या हो गया कि पिछले कुछ दशकों में देश के नेताओं ने भ्रष्टाचार के नए नए आयाम गढ़ दिए और हम देखते ही रह गए ? अगर देखा जाये तो इसके लिए पूरा भारतीय समाज ही दोषी है क्योंकि हर माँ बाप अपने बच्चे को उच्च अधिकारी देखना चाहता है और किसी के मन में भी यह नहीं आता है कि हमारा बेटा या बेटी राजनीति के माध्यम से देश की सेवा करने का काम करे ? जब समाज के अच्छे और मेधावी बच्चों को हम राजनीति में जाने ही नहीं दे रहे हैं तो राजनीति में समाज के बचे हुए कूड़ा करकट की भरमार हो रही है जिससे किसी भी स्तर पर अच्छे लोग अच्छी नीतियों के निर्धारण के लिए आगे आने का काम करना ही नहीं चाहते हैं ? देश को केवल अच्छे अधिकारियों, वैज्ञानिकों आदि की ही ज़रुरत नहीं है बल्कि देश को मजबूती से आगे लाकर दुनिया के सामने खड़ा करने की भी ज़रुरत है पर आज पूरा देश केवल समस्या का फौरी हल तलाशने में ही लगा हुआ है और उसके पास पूरी व्यवस्था होने के बाद भी जिस तरह से समस्या की अनदेखी कि जाती रही है आज का भ्रष्टाचार उसी का परिणाम है. भ्रष्टाचार का केवल काम चलाऊ उपचार करना है या फिर इसे जड़ से उखाड़ना है हमारे नेता अभी तक यह ही तय नहीं कर पाए हैं तो उनसे किसी और की क्या आशा की जा सकती है ?

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