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रडार और भारतीय आकाश

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के आकाश की निगरानी और सुरक्षा के अनुसार सुरक्षित करने के उद्देश्य से लगाये जा रहे ‘गगन’ तंत्र के बाद भारतीय आकाश पूरी तरह से नज़र में आ जाने वाला है. जिस तरह से भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ती जा रही हैं और आने वाले समय में आकाश मार्ग से होने वाले किसी भी संभावित हवाई हमले के लिए देश को तैयार करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इस बात को ध्यान में रखते हुए २००७ में केंद्र सरकार ने एक महत्वकांक्षी परियोजना गगन शुरू की जिसके तहत ३० हज़ार फीट की ऊंचाई तक आकाश में होने वाली गतिविधियों पर भी निगरानी रखी जा सकेगी जिससे भारतीय आकाश और समुद्री सीमा में अधिक ऊंचाई पर देश का मज़बूत नियंत्रण हो जायेगा जो एक तरफ़ नागरिक हवाई यातायात को नियंत्रित करने में सहायक होगा वहीं दूसरी तरफ़ इससे वायु सेना और थल सेना के लिए देश के आकाश में किसी भी मिसाइल को देखना आसान हो जायेगा. इस तरह की परियोजनाओं की देश को आवश्यकता है जिससे पूरे देश में सुरक्षा सम्बन्धी ख़तरों से समय रहते निपटने में हम सक्षम हो सकें.
देश ने इस परियोजना के लिए ३० हज़ार फीट की ऊंचाई पर ९ मोनो पल्स सेकेंडरी सर्विलांस रडार लगाने का काम शुरू किया है जिसके चालू हो जाने के बाद देश के ३८ प्रमुख हवाई अड्डे भी इस रडार के साथ स्वचालित प्रक्रिया से जोड़ दिए जायेंगें जिससे देश के आकाश में किसी भी विमान की स्थिति के बारे में कहीं से भी जानकारी ली जा सकेगी इससे जहाँ देश में हवाई यातायात सुगम हो जायेगा और हवाई अड्डों पर अधिक ट्रैफिक होने की दशा में हवा में विमानों को अधिक समय तक रखने की बाध्यता भी समाप्त हो जाएगी और कोहरे के साथ मौसम की किसी समस्या के समय भी हवाई यातायात को सुचारू ढंग से चलाने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी तरफ़ सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी देश के आकाश में होने वाली किसी भी गतिविधि पर नज़र रखने में भी आसानी हो जाएगी. देश में हवाई यातायात जिस तेज़ी से बढ़ रहा है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में इस तरह के अत्याधुनिक तंत्र के बिना आकाश में काम करना बहुत मुश्किल होने वाला है.
इस परियोजना के प्रथम चरण में चेन्नई स्थित केंद्र को इस तंत्र से जोड़ दिया गया है और आने वाले समय में बाकी बचे मुंबई, दिल्ली और कोलकाता को भी इससे जोड़ दिया जायेगा जिसके बाद काफी हद तक हवाई यातायात को सुगम और सुरक्षित बनाया जा सकेगा. इस पूरी परियोजना के लिए जिस तरह से दक्ष लोगों की आवश्यकता होगी उसके लिए भी सरकार ने २०१६ तक व्यवस्था करने की योजना बनाई है. देश के लिए भविष्य में आवश्यक इस तरह की परियोजनाओं को स्वीकृति देने में सरकार को किसी भी तरह का विलम्ब नहीं करना चाहिए क्योंकि जब भी इस तरह के किसी भी काम को कम महत्व दिया जाता है उसका असर देश के अन्य क्षेत्रों पर दूसरी तरह से पड़ता है. देश की ज़रूरतों और भविष्य में आवश्यक संसाधनों को जुटाने के बारे में अब सरकारों को सोचना ही पड़ेगा क्योंकि जिस तरह से हमारे पास विश्व की सबसे युवा शक्ति आने वाले समय में होने वाली है उसका कोई मुकाबला नहीं कर पायेगा बस आवश्यकता केवल इस बात की है कि उस युवा शक्ति के सही इस्तेमाल करने के लिए हमारे पास कोई सटीक परियोजनाएं भी हों.

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