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सिलेंडर और नीति

***.......सीधी खरी बात.......***
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जब से केंद्र सरकार ने पूरे वर्ष में सब्सिडी वाले घरेलू गैस के सिलेंडरों की संख्या ६ तक सीमित करने की घोषणा की है तभी से इस मसले को लेकर उपभोक्ताओं, गैस वितरकों और राजनैतिक दलों के बीच भारी असमंजस बना हुआ है. सरकार ने जिस तरह से यह कहा है कि ६ सिलेंडर लेने के बाद उपभोक्ता को बाज़ार के दामों पर ही गैस उपलब्ध होगी वह देश की वर्तमान तेल विपणन नीति के अनुसार सही हो सकता है पर उपभोक्ताओं को यह बहुत ना इंसाफी लग रही है. इस मसले पर कहीं न कहीं से केंद्र सरकार भी दोषी है क्योंकि जिस तरह से उसने राजनैतिक दबाव के चलते पिछले कुछ समय से पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती क़ीमत के बाद भी कृत्रिम तरीके से इसका बोझ केवल पेट्रोल उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं पर डालने की नीति अपनाई तो एक दिन यह तो होना ही था क्योंकि केरोसिन, डीज़ल और गैस के दामों को नियंत्रित करने के लिए आख़िर यह कब तक चल सकता था ? पिछले कुछ समय से रूपये के अवमूल्यन से भी तेल के आयात बिल पर भारी बोझ पड़ा है. अब यह सही समय है कि केंद्र सरकार अपनी इस नीति को पूरी तरह से स्पष्ट करे और जनता तथा गैस डीलरों के पास एक पारदर्शी तंत्र पहुँच पाए. आज किसी को भी यह नहीं पता है कि ६ सिलेंडर जनवरी से जोड़े जायेंगें या इनकी गणना वित्तीय वर्ष के अनुसार की जाएगी जिससे भी लोगों में भ्रम की स्थिति बन रही है.
राष्ट्रीय पहचान पत्र प्राधिकरण आधार के आंकड़ों के अनुसार ८०% भारतीय परिवार पूरे वर्ष में ८ से १० सिलेंडर ही उपयोग में लाते हैं इसलिए सरकार को इन आंकड़ों पर विश्वास करते हुए सब्सिडी वाले सिलेंडरों की सीमा को ६ से बढ़ाकर ८ से १० के बीच करने पर भी विचार करना चाहिए. इससे जहाँ आम घरेलू गैस उपभोक्ताओं को राहत मिल सकेगी वहीं दूसरी तरफ़ गैस की कालाबाज़ारी करने वालों के लिए सब्सिडी वाले सिलेंडरों के ग़लत इस्तेमाल पर भी रोक लगायी जा सकेगी. सरकार ने इस कोटे के निर्धारण में एक बात का और भी ध्यान नहीं कि समान संख्या वाले परिवारों के निवास स्थल के अनुसार भी इन सिलेंडरों की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए थी क्योंकि तमिलनाडु, केरल जैसे गर्म इलाक़ों में रहने वाले उपभोक्ता के मुकाबले पहाड़ी क्षेत्रों में ठण्ड अधिक पड़ने के कारण उपभोक्ताओं की गैस की खपत में लगभग २५ % का इजाफा हो जाता है तो इस तरह से इस ऊर्जा आवश्यकता को एक समान कैसे निर्धारित किया जा सकता है ? अगर सरकार इस तरह के किसी भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार गैस आपूर्ति निर्धारण पर विचार करे तो देश के किसी भी उपभोक्ता को सरकारी नीति से कोई परेशानी नहीं होगी और अनावश्यक रूप से जो राजनैतिक कीचड़ फैलाया जाता है संभवतः उस पर भी रोक लग जाएगी. एक संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या पर विचार किये बिना ही उनको भी सीमित संख्या वाले परिवारों के अनुसार गैस आपूर्ति कैसे की जा सकती है और जब एक कनेक्शन से काम नहीं चलता है तो परिवार के अन्य सदस्य भी अपने नाम से अन्य कनेक्शन लेने के विकल्प पर चलने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि उसे यह पता ही नहीं है कि देश के लोगों की वास्तविक आर्थिक स्थिति क्या है आने वाले समय में इसके निर्धारण के लिए हर परिवार के मुखिया के आधार संख्या से उसके सभी दस्तावेजों को जोड़ना अनिवार्य किया जाना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि गैस और डीज़ल के लिए हाय तौबा मचाने वाले परिवारों में मोबाइल आदि अन्य सुविधाओं के उपयोग पर कितना खर्च किया जाता है ? कोई भी व्यक्ति मोबाइल कम्पनी के बारे में शिकायत नहीं करता है कि उन्होंने अधिक पैसे वसूल लिए है और उसका धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है तेल कम्पनियां आज सरकारी नियंत्रण में हैं और इस कारण से हर दल और नेता इस पर राजनीति करके अपने वोट बढ़ाने का जुगाड़ करने में लगा रहता है. पूरी तेल विपणन नीति की आज के समय के अनुसार फिर से समीक्षा होनी चाहिए और देश की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों के अनुसार उसे बनाया जाना चाहिए इस तरह के छोटे छोटे और कम समय तक काम करने वाले उपायों पर अब विचार करने की ज़रुरत भी नहीं है. आम जनता को बाज़ार के मूल्य चुकाने में कोई दिक्कत नहीं है पर यहाँ पर पारदर्शिता का अभाव है जिस कारण से भी सरकारें कुछ भी करने लगती हैं और जनता को यही समझाया जाता है कि यह सारे क़दम देशहित में लिए जा रहे हैं. संसद में बैठकर इस तरह की ख़ामी भरी सारी नीतियों की एक बार आज के समय के अनुसार समीक्षा किये जाने की आवश्यकता से अब बचा नहीं जा सकता है.

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