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कश्मीर, केबीसी और रैना

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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कौन बनेगा करोड़पति के छठे संस्करण में जम्मू कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडित मनोज कुमार रैना पहले करोड़पति बन गए हैं. रैना के हॉटसीट पर बैठने के बाद उनके जीवन परिचय को दिखाया गया उसे देखकर कितने दर्शकों को यह पता चला की वास्तव में कश्मीर घाटी से किस तरह से वहां के मूल निवासियों को ही निर्वासित कर दिया गया ? कश्मीरी पंडितों को किस तरह से एक योजना के तहत पूरी घाटी से बाहर किया गया यह तथ्य भी लोगों के सामने आ पाया. केवल मनोरंजन, ज्ञान परीक्षण और आर्थिक लाभ के लिए चलाये जाने वाले इस कार्यक्रम केबीसी से इस बात का संदेश उन भारतीयों तक अवश्य ही पहुंचा है कि जड़ों से उखड़ने का दर्द क्या होता है और अपनी मातृभूमि को इस तरह की परिस्थितियों में छोड़ना कितना दु:खद होता है ? मनोज के परिवार के चेहरे पर वह दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था जो उन्हें सदियों से साथ रहने वाले पड़ोसियों से मिला था. जिस बेबाकी और साहस से मनोज ने यह कहा कि अगर वह बड़ी धनराशि जीतते हैं तो उनका सपना अपने पैतृक गाँव में एक घर बनाने का है और वापस अपने गाँव जाने का है वह उनकी इच्छा शक्ति को दिखता है पर आज भी कश्मीर में जो तत्व सक्रिय हैं वे किसी भी यह नहीं चाहते हैं कि कोई भी कश्मीरी पंडित वापस जाकर घाटी में अपने घरों में फिर से रहना शुरू करे ? दिल्ली और कश्मीर में बैठी सरकारें चाहे कुछ भी करती रहें पर इस तरह की वापसी अभी भी घाटी में संभव नहीं हो पायी है.
कश्मीर की खूबसूरती को किसने नज़र लगायी है यह सभी जानते हैं और घाटी से कश्मीर पंडितों को भगाने का काम करते समय कश्मीरी मुसलमानों ने यह नहीं सोचा कि आने वाले समय में इन कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर कैसा हो जायेगा ? इन निर्दोषों को बेघर करने की सजा आज भी आम कश्मीरी भुगत रहा है क्योंकि संपन्न परिवारों को जिस तरह से टेंट और छोटे छोटे घरों में रहना पड़ रहा है और उनके सामने जीविका का संकट पैदा हो गया है उससे किसी के लिए भी उनके दिल से दुआएं नहीं निकलने वाली हैं ? आज भी आम कश्मीरी मुसलमान या तो आतंकियों के इस तरह के प्रयासों से सहमत हैं या फिर वह जानबूझकर अपनी मजबूरियों को दिखाते हुए चुप रहना चाहता है. किसी छोटी सी घटना पर श्रीनगर में हजारों की भीड़ इकठ्ठा करने में माहिर कश्मीरियों के लिए इतना समय आज तक नहीं निकला है कि वे अपने उन कश्मीरी पंडितों की भी परवाह करें जिन्होंने मजबूरी में अपनी जान बचाने के लिए आँखों में आँसू लेकर भारी मन से घाटी को छोड़ा था ? आख़िर कश्मीरियत का राग अलापने वाले वो लोग इस मसले पर चुप क्यों हैं जिन्हें अपने कश्मीरी होने पर फख्र होता है ? हो सकता है कि वहां के किन्हीं लोगों को भारत सरकार से कोई दिक्कत रही हो पर इन कश्मीरी पंडितों ने उनका क्या बिगाड़ा था जो उनको घरों से बेघर कर दिया गया ?
रैना जैसा हर कश्मीरी आज भी अपने घर वापस लौटना चाहता है पर साथ ही वह यह भी चाहता है कि सरकार के बजाय उन आम कश्मीरी मुसलमानों की तरफ़ से यह पहल की जाये जिससे आने वाले समय में उनके लिए कोई और समस्या न खड़ी हो जाये. उनको भी कश्मीर में रहने का बराबरी से हक़ मिले और किसी भी परिस्थिति में उनके वहां रहने को कोई भी आतंकी समूह फिर से सवालों के घेरे में न खड़ा कर पाए ? क्या आज आम कश्मीरी मुसलमान में यह इच्छाशक्ति और साहस बचा है कि वह घाटी से बाहर किये गए इन कश्मीरी पंडितों के घावों पर मरहम लगा सके या फिर वो आतंकियों के भरोसे ही इस्लाम की विस्तारवादी नीति का समर्थन करना चाहते हैं जिसमें पूरी दुनिया में ईमान वाले ही रहें ? इस्लाम के कुछ कट्टरपंथी आज भी नयी नयी जगहों पर इस तरह के हथकंडे अपनाने में लगे हुए हैं जबकि जहाँ से इस्लाम धर्म और इस्लामी सभ्यता की शुरुआत हुई आज उस अरब क्षेत्र की स्थिति किसी से भी छिपी नहीं है ? अगर इस्लाम के भाईचारे से दुनिया का भला होने वाला होता तो कुछ उदार विचारधारा के लोग कम से कम अरब में शांति तो बनाये रख पाते ? आज विश्व में सबसे विस्फोटक स्थिति मध्यपूर्व और अरब देशों की ही है इससे यही पता चलता है कि इस्लामी चरमपंथी कहीं न कहीं इस्लाम की मूल भावना से दूर हो गए हैं तभी उनमें खुद में ही भाईचारे की इतनी कमी हो गयी है. फिलहाल केबीसी के बहाने कश्मीरी पंडितों के दर्द को देश के सामने रैना ने एक बार फिर से उभर कर रख ही दिया है.

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