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संसद की राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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कोयला आवंटन मामले पर जिस तरह से भाजपा ने एक तरह से संसद को बंधक बनाकर रख दिया है उससे यही लगता है कि देश के सामने मौजूद और आने वाली चुनौतियों का सामना करने के स्थान पर उसने एक बार फिर से बोफोर्स जैसा माहौल बनाने के बारे में सोच रखा है. यह सच है कि कैग ने जिस तरह का आंकलन किया है अगर उसको अपनाया जाता तो देश के राजस्व में भारी वृद्धि होती पर देश के महत्वपूर्ण मामलों पर राय करने के लिए जनता द्वारा संसद में भेजे जाने वाले ये दल और इनके नेता उस समय तो हंगामे में लगे रहते हैं जब वे अपने कुछ सुझाव देकर देश का भला कर सकते है और बाद में नीतियों में समय रहते संशोधन न हो पाने के लिए सत्ताधारी दल को कोसते हैं ? यह मामला केवल कोयले का ही नहीं है क्योंकि देश के साथ दुनिया भी उन बदलावों का इंतज़ार कर रही है जो भारत में नीतिगत स्तर पर किये जाने हैं पर इस तरह के हंगामे के कारण जनता के पैसे का जमकर दुरूपयोग किया जा रहा है. जो लोग कोयला मामले पर इतना हंगामा कर रहे हैं उनमें क्या इतनी लज्जा बची है कि वे अपने काम न करने के दिनों का वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएँ काम न करने के कारण स्वेच्छा से वापस कर देंगें ?
क्या किसी भी दल के माननीय लोग देश को यह बताने का काम करेंगें कि जिस काम के लिए जनता उन्हें ग़लती से स्थानीय समीकरणों के कारण चुनकर संसद तक पहुंचा देती है उसके प्रति उनकी क्या ज़िम्मेदारी बनती है ? क्या वे जनता की उस उम्मीद पर खरे उतर पाते हैं जो उनसे लगायी जाती है ? संसद में जिस तरह से सभी सांसदों को अपनी बात रखने का हक़ मिला हुआ है क्या वे उसका उपयोग देश के भले के लिए कर कर पाते हैं ? देश के साथ काम न करने के जुर्म के लिए उनको किस तरह की और क्या सज़ा दी जानी चाहिए ? कोयला मामले में निश्चित तौर पर कांग्रेस और प्रधानमंत्री की तरफ़ से कमी रही है फिर भी क्या भाजपा का यह रवैया ठीक है जबकि देश के अधिकांश दल इस मसले पर बहस के पक्ष में हैं तो भाजपा इससे बचना क्यों चाह रही है ? देश के सामने सरकार की गलतियों को उभारने का काम भाजपा को मुख्य विपक्षी दल होने के कारण करना ही चाहिए और जब इस तरह के मसले पर जब संप्रग के कई घटक दल भी कांग्रेस पर ग़लती करने के आरोप लगा रहे हैं तो बहस कराने से संसद में कांग्रेस को घेरने में भाजपा को और भी आसानी होने वाली थी.
कोयला कांड में कुछ न कुछ तो ऐसा अवश्य है कि अगर उसको सबके सामने लाया जाये तो हो सकता है कि भाजपा के लिए भी असहज स्थिति उत्पन्न हो जाये शायद इसलिए भी भाजपा अपने संघर्ष को सदन के स्थान पर सड़क पर लाने की मंशा रखती है. आज जनता की स्थिति वह नहीं रही है कि वह अपने नेता की हर तरह की हरकत बर्दाश्त कर ले क्योंकि जनता में जागरूकता भी बढ़ी है. जिस आरोप को लेकर भाजपा कांग्रेस पर चढ़ाई करना चाहती है और इतनी आक्रामक हो रही है बहस न करने की दशा में यह क़दम उसके विरुद्ध भी जा सकता है. संसद का सत्र को एक दिन समाप्त ही होना है भले ही काम हो या न हो पर भाजपा के इस मुद्दे पर आक्रामक होने के कारण जनता के सामने सच लाने के लिए कांग्रेस श्वेत पत्र भी जारी कर सकती है या फिर भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों के द्वारा किये गए पत्राचार को भी सार्वजनिक रूप से सबके सामने ला सकती है जो अभी सदन चलने के कारण तकनीकी तौर पर केवल सदन में ही रखे जा सकते हैं ? उस स्थिति में भाजपा के लिए क्या स्थिति बनेगी यह कोई नहीं जानता पर जिस सरकार विरोधी लहर पर भाजपा सवारी करना चाह रही है कहीं वह उसके ख़िलाफ़ ही न चली जाये ? कांग्रेस के पास इस मुद्दे पर पाने के लिए क्या बचा है पर भाजपा इस मुद्दे पर अपनी २०१४ की संभावनाओं पर बहुत कुछ खो भी सकती है.

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