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केरोसिन या एलपीजी ?

***.......सीधी खरी बात.......***
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ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने की कोशिशों में लगी दिल्ली सरकार की नयी कोशिश से जहाँ एक तरफ दिल्ली को केरोसिन मुक्त करने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी तरफ़ ज़रुरतमंद गरीबों को आसानी से उपलब्ध होने वाले घरेलू ईंधन की आपूर्ति भी हो सकेगी. दिल्ली शायद देश का पहला ऐसा राज्य है जहाँ की मुख्यमंत्री ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि गरीबों के लिए दिए जाने वाले केरोसिन में व्यापक पैमाने पर धांधली की जाती है और इससे निपटने के लिए ही उन्होंने गरीबों के लिए वैकल्पिक और सुलभ ईंधन एलपीजी उपलब्ध कराने की एक महत्वाकांक्षी योजना भी बनाई है. पूरा देश जानता है कि जिन गरीबों के नाम पर केरोसिन को बाज़ार में सब्सिडी देकर लाया जाता है उससे उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता है और उसका अधिकांश हिस्सा कालाबाज़ारी के माध्यम से खुले बाज़ार में पहुँच जाता है फिर भी आज तक केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार ने इसे रोकने या इसके वैकल्पिक रूप के बारे में कुछ भी नहीं सोचा है. आज केरोसिन पर किसी भी तरह की सब्सिडी की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पीडीएस के माध्यम से यह पूरी तरह से बाज़ार में पहुँच जाता है वहां से इसका दुरूपयोग शुरू होता हैं और इसे डीज़ल में मिलाने का काम करके भ्रष्ट लोग गरीबों के हक़ों को मारने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं.
देश में आज की सबसे बड़ी समस्या केवल यही है कि किसी भी सरकार या किसी अन्य संगठन को यह नहीं पता है कि वास्तव में देश में वंचितों की संख्या कितनी है और इस कारण से ही उनके बारे में नीतियां बनाने में बहुत बड़े पैमाने पर हेर फेर की संभावनाएं बनी रहती हैं ? इस तरह ग़लत आंकड़ों पर आधारित किसी भी योजना में भ्रष्ट लोगों के लिए खाने पीने के बहुत सारे साधन निकल कर सामने आ जाते हैं. देश के गरीबों के लिए अच्छी योजनायें बनाई जाएँ इससे किसी को भी आपत्ति नहीं है पर जिस तरह से इन नीतियों को वास्तविक संख्या के अनुमान के बिना ही बनाया जाता है उससे देश के आर्थिक संसाधनों का बेहतर उपयोग नहीं हो पाता है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच झूलते सही ग़लत आंकड़ों के बाद भी यह स्थिति और भी विकट हो जाती है क्योंकि अलग अलग दलों की सरकारें होने का नुकसान केवल गरीबों को ही होता है और वे किसी भी अच्छी योजना से वंचित ही कर दिए जाते हैं ?
आज देश में आंकड़े जुटाने का काम सही ढंग से हो पाए तो सारी समस्याओं का हल बहुत आसानी से निकाला जा सकता है फिर भी कोई सरकार आज तक इस काम को करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई है. शायद इस काम को करने के लिए जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है वह अभी तक किसी भी राजनैतिक दल में विकसित नहीं हो पाई है जिस कारण से जिस मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए वहां भी बड़े पैमाने पर राजनीति होती रहती है ? यदि केवल एक बार इन आंकड़ों को सुधार लिया जाये तो आने वाले दिनों में देश के गरीबो और वंचितों के लिए वास्तव में काम करने वाली योजनायें बनाकर सही स्तर तक पहुंचाई जा सकती है पर इस काम को करने में क्या किसी को कोई दिलचस्पी है ? आज भी विकास और अन्य योजनाओं के नाम पर जाने वाला पैसा कहाँ गायब हो जाता यह कोई नहीं जनता है क्योंकि जब तक इसे ईमानदारी से ढूँढने का प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक कोई भी योजना सही नहीं चल सकती है. अब देखना यह है कि दिल्ली सरकार की केरोसिन मुक्त दिल्ली की योजना किस हद तक सफल हो पाती है क्योंकि अगर यह योजना सफल हो गयी तो कम से देश के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों के लिए केरोसिन पर दी जाने वाली सब्सिडी से तो देश और सरकार को राहत मिल ही सकती है.

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