Menu
blogid : 488 postid : 974

टीम अन्ना और भीड़

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
  • 2165 Posts
  • 790 Comments

जिस तरह से इस बार जंतर मंतर पर लोकपाल और अन्य मुद्दों को लेकर टीम अन्ना के सदस्यों द्वारा किये जा रहे अनशन के प्रति जनता का रुझान कम होता दिखाई दे रहा है वह एक साथ कई संदेशों की तरफ इशारा करता है. इससे जहाँ अन्ना और टीम अन्ना के अन्य लोगों की स्वीकार्यता के बारे में फैले हुए भ्रम भी स्वतः ही टूटे हैं क्योंकि जब भी अन्ना ने खुद अनशन किया तो उस समय युवाओं समेत समाज के सभी वर्गों ने खुलकर इसमें भाग लिया पर इस बार जब अरविन्द और मनीष जैसे नाम मैदान में हैं तो जनता उनके प्रति बेरुखी क्यों अपना रही है ? ऐसा नहीं है कि अन्ना या टीम अन्ना द्वारा उठाये जा रहे मुद्दे कमज़ोर पड़ गए हैं और ऐसा भी नहीं है कि किसी और के कहने या करने से यहाँ पर जन समर्थन में पहले जैसा उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है ? देश में आज युवाओं का वर्चस्व हो रहा है और जिस तरह से युवा आज वास्तविकता में जीना पसंद करते हैं शायद उसे भांपने में टीम अन्ना के लोगों से चूक हो गयी है. आन्दोलन से सोयी हुई सरकारों को जगाया जा सकता है पर केवल आन्दोलन करते रहने से किसी कानून को बदलवाया नहीं जा सकता है.
जब पिछले वर्ष सरकार और टीम अन्ना के बीच बातचीत शुरू हुई थी तो दोनों ही पक्ष किसी अच्छे नतीज़े पर पहुँच सकते थे पर बाबा रामदेव ने अपने आन्दोलन को बीच में लाकर सरकार और टीम अन्ना के बीच के संवाद के पुल को ध्वस्त कर दिया था जिसके बाद से आज तक वह दौर वापस नहीं लौट पाया है. देश में जिस तरह से राजनैतिक तंत्र में जुगाड़ की संस्कृति से धन बटोरने का काम शुरू हो चुका है उस स्थिति में आज कोई भी नेता या दल लोकपाल जैसे कड़े कानून का हिमायती नहीं रह गया है क्योंकि कहीं न कहीं सभी नेता और दल किसी न किसी स्तर पर इसमें लगे हुए हैं ? नेताओं का दोमुहांपन हम कई बार देख चुके हैं क्योंकि जब ये अन्ना के मंच पर होते हैं तो बिलकुल अलग तरह की बातें करते हैं पर जब ये देश की संसद में पहुँच जाते हैं तो इनके राग और सुर अचानक ही बदल जाते हैं ? इस सबके बाद भी टीम अन्ना केवल दिल्ली में कांग्रेस पर ही दबाव बनाने की कोशिश में लगी रहती है जबकि इसके लिए आन्दोलन के समर्थक दलों के नेताओं से राज्य स्तर पर भी समर्थन जुटाने की आवश्यकता है जिससे यह कहा जा सके कि इतने राज्य अब इस आन्दोलन के साथ खड़े हैं.
सरकार चाहे जिस भी दल की हो या कोई भी गठबंधन कहीं पर भी काम कर रहा हो उसके लिए लोकपाल को महत्वपूर्ण बनाने का काम अब टीम अन्ना को करना चाहिए बार बार इस तरह से दिल्ली में दबाव की राजनीति ने ही इस आन्दोलन के प्रति लोगों के मन के जोश को ठंडा कर दिया है. आज भी लोग कड़े लोकपाल के पक्ष में हैं पर जिस तरह से इसे माँगा जा रहा है उस स्थिति में किसी निर्णय तक पहुँचने में बहुत समय लगने वाला है ? अब सरकार को भी अपने स्तर से प्रयास करने चाहिए और कुछ निष्पक्ष लोगों को बीच में डाल कर टीम अन्ना के साथ एक बार फिर से बातचीत शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए जिससे लोकपाल को किसी ठोस कानून का रूप दिया जा सके. अभी तक जितने भी प्रयास किये जा रहे हैं वे अधूरे और अनमने ढंग से किये जा रहे हैं केवल अन्ना को ही जन लोकपाल की चिंता है बाकी अन्य का ध्यान अब भ्रष्ट मंत्रियों और अन्य बातों की तरफ़ घूम चुका है. इतने महत्वपूर्ण काम को करते समय भी टीम अन्ना जिस तरह से मतभेद और दिशाहीनता का शिकार रहती है उससे भी जनता में ग़लत सन्देश जाता है. अब यह टीम को ही तय करना है कि वह क्या चाहती है क्योंकि जनता के सब्र का बाँध शायद अब टूट गया है और उसे भी अन्ना के मंच पर खड़े टीम अन्ना के लोग अपनी व्यक्तिगत खुंदक निकलते हुए ही दिखाई देने लगे हैं और केवल अन्ना ही लोगों को आज भी स्वीकार्य हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh