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माही, मिसाइल और देश

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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आम नागरिक की लापरवाही का शिकार एक और मासूम बच्ची हो गयी और इस बारे में विभिन्न लोगों ने जिस तरह से अपने विचार व्यक्त किये हैं उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा अवश्य है जो हमें स्व-अनुशासन में बाँध नहीं पाता है और हम इस तरह की घटनाओं पर केवल उस समय बहुत चिंतित हो जाते हैं जब कुछ ऐसा हो जाता है पर प्रिंस के बचने से लगाकर आज तक जितनी भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं उनमें किसी न किसी स्तर पर हम आम नागरिक के रूप में पूरी तरह से विफल हो गए हैं ? आख़िर क्या कारण है कि हम के देश के रूप में बहुत सफल हैं और एक अच्छे नागरिक के रूप में भारतीयों को हर जगह सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है पर जब बात हमारे अपने देश में हमारी जिम्मेदारियों की आती है तो हम पूरी तरह से विफल हो जाया करते हैं और हमारी यह विफलता कई बार माही जैसे किसी बच्चे की जान भी ले लेती है ? इस पूरे प्रकरण से हमें जो सीख लेनी चाहिए वह हम आज तक नहीं ले पाए हैं और फिर से किसी घटना के इंतज़ार में हम उतने ही लापरवाह हो जाया करते हैं.
ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया में अमिताभ बच्चन ने लिखा कि हम मिसाइल तो दाग़ सकते हैं पर बच्ची को नहीं बचा सकते हैं ? हाँ बिलकुल सही कहा उन्होंने क्योंकि मिसाइल बनाना प्रतिभा और मेधा की बात है और किसी बच्ची के किसी खुले बोरवेल में गिर जाना हमारी हद दर्ज़े की लापरवाही का नतीज़ा है. किसी भी बड़े काम को करने के लिए जिस अनुशासन की आवश्यकता होती है आज वह हम आम भारतीयों में से कहीं खोती सी जा रही है सभी जानते हैं कि किन जगहों पर किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए पर यह जानते हुए भी हम उन सावधानियों पर ध्यान नहीं देते हैं जिसका परिणाम अधिकतर आंसुओं को देकर जाता है. आख़िर यह अनुशासन आम नागरिकों में कहाँ से आये या इसे किस तरह से लोगों में लाया जाये आज तक यह कोई नहीं जान पाया है क्योंकि हम अपने घरों में जो कुछ बचपन से देखते और सीखते हैं वही बाद में हमारी आदत बन जाया करता है और आम भारतीय घरों में बच्चों को कितना अनुशासन सिखाया जाता है यह सभी जानते हैं ?
इस तरह की लापरवाहियों को रोकने और अपनी जिम्मेदारियों से भागने की आदतों के कारण हम कहीं न कहीं अपनी और दूसरों की जिंदगियों को ख़तरे में डालते जाते हैं जबकि कुछ अनुशासन में रहकर अपने काम को अंजाम देने की छोटी सी आदत ही हमें हमेशा अच्छाई की तरफ़ लेकर जा सकती है पर इसके लिए जिस ट्रेनिंग की ज़रुरत होती है वह किसी के कहने से नहीं आती है क्योंकि इसके लिए एक विशेष तरह का जज्बा होना चाहिए जिसकी हम सबमें बहुत कमी हमेशा ही रहती है. इस बारे में आम नागरिकों में अनुशासन बढ़ाने के लिए प्राथमिक शिक्षा में ही इस तरह की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे उनमें केवल अपने से आगे बढ़कर सोचने और समझने की शक्ति विकसित हो जाये और आवश्यकता पड़ने पर वे इस तरह की किसी भी परिस्थिति में खुद को भविष्य में अच्छे नागरिक के रूप में ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए दिखा सकें. जिस तरह से हम प्रिंस से लगाकर माही के बचाव अभियान से खुद ही जुड़ गए और माही की मौत ने हम सभी को कुछ समय के लिए झकझोर दिया फिर समय के साथ हम अपनी भूल जाने की बीमारी से सब भूल जायेंगें और अपने आस पास इस तरह से मौत के कुँए फिर से खोदना शुरू कर देंगें और फिर किसी मासूम को इसका शिकार बन जाने पर उसके लिए प्रार्थना करना शुरू कर देंगें….

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