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रेल और बिजली बचत

***.......सीधी खरी बात.......***
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उत्तर रेलवे के मुरादाबाद मंडल द्वारा जिस तरह से बिजली बचाने के लिए पुणे की एक कंपनी के साथ मिलकर एक सफल प्रयोग किया है उससे रेलवे जैसे बड़े उपभोक्ता बहुत बड़ी मात्रा में बिजली की बचत कर सकते है जिससे एक तरफ रेलवे को करोड़ों के बिल की बचत होगी वहीं ऊर्जा संकट से जूझते हुए देश में इस तरह के प्रयोग से कुछ हद तक बिजली की उपलब्धता को बढ़ाये जाने में सफलता भी मिलेगी. इस प्रयोग में स्टेशन की बिजली व्यवस्था को प्लेटफार्म और सिग्नल के अनुसार जोड़ा गया है जिससे जिस भी प्लेटफार्म पर ट्रेन आने वाली होगी उसको सिग्नल मिलते ही उस की सभी लाइटें अपने आप जल जायेंगीं और अन्य प्लेटफार्मों पर केवल कुल क्षमता की ३० % लाइटें ही जलती रहेंगीं जिससे पूरे स्टेशन पर उजाला भी रहेगा पर साथ ही बिजली की बचत भी होती रहेगी. ट्रेन के प्लेटफार्म से जाने के बाद सिग्नल लाल होते ही फिर से उस जगह की भी केवल ३०% लाइटें ही जलती रह जायेंगीं. इस अभिनव प्रयोग को अभी मुरादाबाद के स्टेशन पर ही लागू किया गया है और इसके सफलता पूर्वक काम करने से यह रेलवे के बिजली बचत का बहुत बड़ा साधन बन सकता है.
यहाँ पर सवाल यह नहीं है कि आख़िर इन बातों को किस तरह से लागू किया जाये क्योंकि जब तक इसके पीछे मज़बूत इच्छाशक्ति नहीं होती है इस तरह के नए और परिवर्तन कर सकने वाले काम आसानी से नहीं किये जा सकते हैं. जिस तरह से मुरादाबाद में इस तरह का प्रयोग सफल हो गया है और इसे वहां पर जल्द ही १० और स्टेशनों पर लगाने की बात की जा रही है वह निश्चित तौर पर बहुत ही अच्छी बात है क्योंकि छोटे स्टेशनों पर तो बिजली की उपलब्धता है ही नहीं और बड़े स्टेशनों पर इस तरह से इसका दुरूपयोग होता रहता है जिससे रेलवे का बिल तो बढ़ता है है साथ ही बिजली की कमी वाले हमारे देश में आधारभूत संरचना पर भी अत्यधिक दबाव पड़ता है. मुरादाबाद मंडल मुख्यालय स्टेशन को बिजली बचत में फाइव स्टार रेटिंग पहले से ही मिली हुई है और उससे भी अच्छा यह है कि वह आज भी बिजली बचाने की नयी जुगत में लगा हुआ है और इससे पूरे देश ही नहीं दुनिया भर की रेलों को इस तरह के नए प्रयोगों का लाभ मिलना तय ही है.
जब इस तरह के प्रयोग से बिजली को बड़े पैमाने पर बचाया जा सकता है तो इसके लिए रेल मंत्रालय स्तर से क्यों लागू नहीं करवाया जाता है क्योंकि इससे जो भी बचत होगी उससे कहीं न कहीं रेलवे का ही बहुत भला होने वाला है पर पता नहीं किस तरह से बड़े स्तर पर निर्णय लिए जाते हैं की इस तरह के छोटे छोटे कामों से मिलने वाले लाभ को भी लेने का प्रयास नहीं किया जाता है जिसमें बहुत कम खर्चे पर ही काफी हद तक बचत की जा सकती है. अब समय आ गया है कि इस तरह के किसी भी प्रयास को तेज़ी से लागू करने की तरफ काम किया जाना चाहिए. साथ ही इस काम को करवाने के लिए रेलवे को खुद अपने विद्युत् विभाग के लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि जब इस व्यवस्था को सिगल सिस्टम से जोड़ा जा रहा है तो इसमें किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. सिग्नल सिस्टम में किसी भी तरह की कमी या ख़राबी होने से दुर्घटना की सम्भावना भी बढ़ जाती है इसलिए इस अभिनव प्रयोग के लिए रेलवे को अपने मज़बूत विद्युत् विभाग का साथ पूरी तरह से लेना चाहिए और एक अभियान की तरह इसे लगवाने का काम करना चाहिए.

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