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दो दिन में ५ बार पिटाई

***.......सीधी खरी बात.......***
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यूपी में जिस तरह से प्रदेश के विभिन्न इलाकों में पिछले दो दिनों में पुलिस की पिटाई की गयी उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं से कुछ ऐसा ज़रूर हो रहा है जिससे असामाजिक तत्वों को पुलिस पर हावी होने का अवसर मिल रहा है ? पिछली माया सरकार में कुछ लोगों ने जिस तरह से पुलिस प्रशासन पर हावी होने की कोशिश की थी और कम नैतिक बल वाले अधिकारी जिस तरह से विधायकों के आगे पीछे घूमते रहते थे तो अब सपा की सरकार आने पर सपा के छोटे स्तर के नेता भी अपना उसी तरह का रसूख दिखाने के लिए कुछ भी करने पर आमादा है जिसका सीधा असर कानून व्यवस्था पर पड़ रहा है. जब स्थानीय नेताओं को पुलिस और प्रशासन पर इतना हावी होने की छूट लखनऊ से दी जाती रहेगी तब निचले स्तर के पुलिस और प्रशासन से सही ढंग से काम करने की उम्मीद आख़िर कैसे की जा सकती है ? मथुरा के कोसी कस्बे में जिस तरह से छोटे से विवाद ने दंगे का स्वरुप ले लिए वह पुलिस की कार्य शैली को ही दर्शाता है क्योंकि ७ घंटे तक पुलिस कुछ भी नहीं कर सकी जिससे वहां कर्फ्यू तक लगाना पड़ गया ? क्या यूपी पुलिस इतनी निकम्मी हो गयी है कि वह एक छोटे से कस्बे के मामूली विवाद को भी अपने स्तर से न सुलझा सके ? नहीं आज भी अगर पुलिस को नियम पूर्वक काम करने की छूट दे दी जाये तो प्रदेश में कानून व्यवस्था एकदम से सुधर सकती है पर शायद नेताओं को पुलिस ही ऐसा तंत्र लगती है जो उनका काम आसानी से करवा सकती है ?
पुलिस से जिस तरह के काम की उम्मीद की जाती है वह निष्पक्ष होने वाली नहीं है क्योंकि सत्ताधारी दल के सभी नेताओं को अपने सही या ग़लत काम किसी भी तरीके से पुलिस के माध्यम से ही करवाने होते हैं और इस काम के लिए उन्हें पुलिस का रसूख़ ही सबसे आसान लगता है क्योंकि आम आदमी आज भी जिस तरह से पुलिस से दूर रहने की कोशिश करता है उस स्थिति में इन लोगों के लिए पुलिस के माध्यम से लोगों को धमकाना आसान हो जाता है ? जब तक किसी भी जगह पर पुलिस से इस तरह से काम करवाए जाते रहेंगें तब तक पुलिस भी किस तरह से निष्पक्ष होकर काम कर सकती है ? अभी तक तो जो कुछ भी अनैतिक काम हो रहे हैं उनमें पुलिस को भी शामिल किया जा रहा है जिससे स्थानीय स्तर पर कानून व्यवस्था की समस्या और भी अधिक गहराती जा रही है. अखिलेश के लखनऊ में बैठकर केवल चेतावनी देने से अब काम नहीं चलने वाला है क्योंकि वैसे भी अब यह कहा जाने लगा है कि इस सरकार में ४ मुख्यमंत्री हैं और इस पर भले ही बाहरी दबाव न हो पर यह सरकार खुद अपनों के ही दबाव में चल रही है.
पुलिस से आख़िर कोई भी सरकार कितना और किस स्तर का काम करवाना चाहती है क्योंकि आज के समय में पुलिस के पास जितना काम है उसके अनुसार संख्या बल नहीं है फिर भी उससे पूरी ईमानदारी से काम करने की उम्मीद की जाती है ? आख़िर इस तरह के दबाव में कोई भी आदमी कब तक काम कर सकता है और यूपी में तो थानों कोतवालियों की नीलामी होने की बात भी सभी जानते हैं कि यहाँ पर पैसे लेकर ही मलाईदार थानों और कोतवालियों में पोस्टिंग दी जाती है और जिस अधिकारी को पैसे लेकर पोस्ट किया गया है तो उससे किसी भी तरह के न्याय और सही काम की आशा करना कहाँ तक उचित है ? ऐसी परिस्थितयों के कारण ही आज प्रदेश में पुलिस काम नहीं कर पा रही है. पिछली सरकार में पुलिस का जिस स्तर पर दुरूपयोग अपने विरोधियों को दबाने में किया गया उसके बाद अब यही गति बसपा ने नेताओं की बन रही है और अधिकतर जगहों पर जीते हुए बसपा विधायकों पर उनसे हारे हुए सपा प्रत्याशी भारी पड़ रहे हैं. अखिलेश को एक पूर्णकालिक गृह मंत्री की नियुक्ति करनी चाहिए और उसके नीचे कम से कम ४ गृह राज्य मंत्री भी होने चाहिए तब जाकर प्रदेश की पुलिस को नेताओं के चंगुल से छुड़ाया जा सकेगा और यह मंत्रालय ऐसे व्यक्ति के पास होना चाहिए जिसका सपा में अपना अलग ही रुतबा हो और जिसकी ईमानदारी और समाजवाद में विश्वास पर कोई संदेह न कर सके तभी अखिलेश इस उलटे प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना पाने में सफल हो पायेंगें.

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