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बाबा और अन्ना

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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दिल्ली में एक दिन के अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के सामूहिक सांकेतिक उपवास के समय जिस तरह के संकेत दिखाई दिए वे निश्चित तौर पर देश को इस मसले पर किसी समाधान की तरफ़ ले जाने का काम कर सकते हैं. पहली बार जिस तरह से बाबा रामदेव ने व्यक्तियों के ख़िलाफ़ बोलने से परहेज़ करते हुए समस्या पर जोर दिया वह उनकी बदली हुयी रणनीति को दर्शाता है. बाबा और अन्ना जो भी चाह रहे हैं वह देश की आवश्यकता है पर अभी तक जिन विरोधी स्वरों के साथ वे अपनी बात कहा करते थे उससे माहौल में तनाव ही बढ़ता था और मुख्य समस्या से लोगों का ध्यान हटकर बेकार की बयान बाज़ियों और स्पष्टीकरण में उलझ जाया करता था. इस बात से सभी सहमत हैं कि आने वाले समय में देश को इस मसले पर कुछ ठोस करना ही होगा क्योंकि आज जो स्थिति चल रही है उसे अब जनता और देश बहुत दिनों तक बर्दाश्त करने वाली नहीं है. ऐसी स्तिति में अब धरातल पर विमर्श करके ही कुछ पाया जा सकता है क्योंकि पिछले एक वर्ष में तनातनी के बाद भी इस मसले पर ठोस कानून से देश आज भी बहुत दूर है तो साथ बैठकर एक बार फिर से अगर हल को तलाशने का काम किया जाये तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है.
यह बिलकुल सही है कि आज भी अंग्रेजों के बनाये हुए बहुत सारे कानून देश में अपनी जगह बनाये हुए हैं और उनकी आज के समय में कोई आवश्यकता नहीं है फिर भी उन पर ठीक तरह से ध्यान न दिए जाने और देश की आज की परिस्थितियों को नज़र अंदाज़ करने के कारण ही वह सब उसी तरह से चलता चला आ रहा है. इस बार बाबा रामदेव ने जिस तरह से बातचीत के रास्ते को आज़माने की बात कही है वह निश्चित तौर पर देश को मज़बूत और आज के समय के अनुसार काम आने वाले सही कानून की तरफ़ लेकर जा सकती है क्योंकि जब तक दोनों पक्ष साथ बैठकर बात नहीं करेंगें तब तक किसी भी मुद्दे पर एकमत कैसे हुआ जा सकता है ? सबसे अच्छी और सकारात्मक बात जो बाबा की तरफ़ से की गयी है की वे अब सभी दलों के अध्यक्षों से मिलने की बात कर रहे हैं वह भी इस समस्या को सुलझाने में काफी हद तक मदद कर सकती है. देश को आज के समय के हिसाब से कानूनों की ज़रुरत है यह सभी मानते हैं पर जब भी इनको बनाने और लागू करने की बात की जाती है तो सभी अपने अपने राग अलापने लगते हैं जिससे समस्या का समाधान होने के स्थान पर उसमें और उलझाव हो जाता है इस मसले पर अब देश को साथ में मिलकर सोचना ही होगा और इस बात का किसी को भी राजनीति लाभ नहीं उठाने देना चाहिए क्योंकि हमारे नेता हर बात में अपने लाभ को खोज लेने में बहुत माहिर हैं ?
अन्ना और बाबा की तरफ़ से की गयी इस पहल का देश के सभी राजनैतिक दलों को स्वागत करते हुए नयी पहल करनी चाहिए और देश के संवैधानिक ढांचे के अन्दर देश के लिए जिन मज़बूत कानूनों की आवश्यकता है उन्हें बनाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए. लोकपाल और जन लोकपाल के बारे में दोनों पक्षों के बीच जो भी गतिरोध है उस पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए क्योंकि जब तक दोनों पक्ष अपने अपने रुख और चिंताओं के एक दूसरे के सामने नहीं रखेंगें तब तक किस तरह से जनता को दोनों के पक्षों के बारे में पता चल पायेगा ? देश को मज़बूत कानूनों की आवश्यकता है और जिस तरह से अब बाबा के रुख में परिवर्तन है और वे इस मुद्दे पर सोनिया गाँधी से भी मिलने की इच्छा दिखा रहे हैं तो उनके इस रुख का पूरी तरह से स्वागत होने ही चाहिए क्योंकि जब वे सभी दल के अध्यक्षों से मिलकर दलों के आधिकारिक रुख के बारे में जान पायेंगें तो संसद में वे दल क्या कर रहे हैं इस पर भी नज़र रखी जा सकेगी. बाबा और अन्ना के मंचों पर नेता कुछ कहते हैं और संसद में जाते हैं उनके सुर बदल जाते हैं तो यह सब अब नहीं चलने वाला है. देश के राजनैतिक तंत्र को इस सामाजिक परिवर्तन की आवाज़ को पूरे मनोयोग से सुनना चाहिए तभी देश के हित के लिए किये जाने वाले ऐसे प्रयास सफल हो पायेंगें. अगर इस तरह से बात शुरू होती है तो उसमें किन्हीं कारणों से गतिरोध भी आ सकते हैं पर अब इस बात को अधिक महत्त्व देना चाहिए की गतिरोधों की परवाह न करते हुए बातचीत चालू रखी जाएगी और कानून में सुधर करने तक इस दिशा में प्रयास किये जाते रहेंगें.

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