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सहिष्णुता, सद्भाव और हम

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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यूपी में मथुरा जिले के कोसी कलां कस्बे में जिस तरह से पानी में हाथ डालने के विवाद ने इतना बड़ा स्वरुप ले लिए कि वहां पर दो लोगों की जाने चली गयीं और कस्बे में कर्फ्यू भी लगाना पड़ गया है उससे यही लगता है कि हमने सहिष्णुता और सद्भाव को बहुत पीछे छोड़ दिया है और इतनी सी बात पर भी हमारे संयम का बाँध इस तरह से टूटने लगता है कि हम इसे भी धार्मिक चश्में से ही देखना पसंद करते हैं ? अगर देखा जाये तो क्या यह मामला इतना बड़ा था कि इस तरह से किसी के पानी में हाथ डाल देने मात्र से ही इस तरह से दंगा हो जाये पर जिस तरह से अराजक तत्वों ने आगे आकर पूरा मसला अपने हाथों में ले लिया और स्थिति इतनी बिगड़ गयी उससे यही लगता है कि कोसी कलां में कुछ और भी पहले से ही पक रहा था और किसी अन्य मामले पर वहां के माहौल में तनाव ज़रूर था और उसने इस तरह से लोगों के दिलों से बाहर आने का रास्ता चुन लिया जो कि किसी भी सभी समाज में उचित नहीं कहा जा सकता है. इस तरह के तनाव का अन्दाज़ लगाने की लिए पुलिस में एक यूनिट हुआ करती है पर लगता है कोसी में यह काम ही नहीं कर रही थी या फिर किसी अन्य कारण से इसने अपनी रिपोर्ट में कुछ भी नहीं कहा ? इस तरह के मामलों में प्रदेश की पुलिस हमेशा से ही दबाव में काम करती है और जब भी उसे खुले हाथों से कानून का अनुपालन कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है तो वह जल्दी ही स्थिति पर काबू कर लेती है.
जैसा की आम तौर पर होता है कि इस तरह के मामलों को पहले स्थानीय स्तर पर निपटा जाता है और जब तक कड़े कदम उठाये जाते हैं तब तक बहुत देर हो जाया करती है फिर भी प्रदेश पुलिस के पास आज भी इस तरह की कोई योजना नहीं होती है कि इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में आख़िर किस तरह से स्थिति को नियंत्रित किया जाये ? पुलिस की इस कमी का लाभ हमेशा से ही अराजक तत्व उठाते रहे हैं और कल भी उन्होंने अराजकता फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से प्रदेश में विकास की बातें होती रही है और इस तरह के दंगे दिखाई देने लगभग बंद ही हो गए थे तो अब अचानक इस तरह की इस घटना के बारे में अखिलेश सरकार को कुछ ठोस करना ही होगा क्योंकि जिस तरह से वह प्रदेश में विकास की गंगा बहाने की बातें कर रहे हैं उसमें प्रदेश की कानून व्यवस्था की अच्छी स्थिति के बिना कोई भी उद्योगपति यहाँ आने से पहले सैकड़ों बार सोचने वाले हैं. इसलिए अब सरकार को इस बारे में कुछ ठोस योजना बनानी ही होगी जिससे सपा सरकारों के समय होने वाली अराजकता के आरोप के स्थान पर वास्तविक सुशासन और परिवर्तन दिखाई भी दे.
जिस तरह से सपा पर अराजक तत्वों को बढ़ावा देने के आरोप हमेशा ही लगते रहते हैं उस स्थिति में अब यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए पुलिस को प्रशिक्षित करे और इतने छोटे मामले के इतना अधिक तूल पकड़ने तक पुलिस के निष्क्रिय होने के बारे में भी कुछ सोचना चाहिए. हो सकता है कि इस तरह की घटनाओं में अचानक ही बढ़ोत्तरी हो जाये और सरकार इनसे निपटने में कोई प्रभावशाली तरीका न अपना पाए इसलिए अब दंगाइयों से निपटने के लिए पुलिस और प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए जिसमें किसी भी तरह के राजनैतिक हस्तक्षेप को बर्दाश्त न किया जाये. जिस तरह से सपा पर आरोप लगते हैं कि उसके शासन में सामाजिक सद्भाव में कमी आ जाती है तो इस स्थिति को गलत साबित करने की ज़िम्मेदारी अब अखिलेश सरकार पर ही है ? कानून व्यवस्था को जब तक किसी एक के नज़रिए से ही देखना जारी रहेगा तब तक सरकार, पुलिस और प्रशसा अपने काम को कानून सम्मत तरीके से नहीं कर पायेंगें. लखनऊ में गृह विभाग में एक ऐसी सेल बनाई जानी चाहिए जिसमे इस तरह की किसी भी परिस्थिति में थाने या कोतवाली स्तर की पुलिस के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाये कि वह जिला पुलिस मुख्यालय को सूचित करने के साथ ही वहां पर भी इस बात की सूचना दर्ज कराएँ और इसे लखनऊ से ही गृह विभाग के स्तर से उचित देख रेख में निपटा भी जाए तब जाकर किसी भी तरह के दंगाइयों के मन में कानून का भय होगा और माहौल अच्छा रह सकेगा.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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