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राजनैतिक पाठ्यक्रम ?

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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बंगाल में मार्क्सवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स और फेडरिक एंगेल्स के साथ रुसी क्रांति को पाठ्यक्रमों से हटाये जाने पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है क्योंकि ममता के नेतृत्व वाली सरकार ने पूरे पाठ्यक्रम की समीक्षा करने का मन बनाया है और इसके बारे में एक समिति भी बना दी है जो इतिहास के पाठ्यक्रम पर अपनी राय सरकार को सौंपेंगी. इस तरह के विवादों के बाद एक बार फिर से देश के संघीय ढांचे के बारे में सवाल उठने लगते हैं कि क्या संविधान में राज्यों को दिए गए किसी भी अधिकार का इस तरह से दुरूपयोग करने की छूट किसी भी सरकार को दी जा सकती है ? अधिकारों पर बहस चलाने वाले राजनैतिक दल इस बात को भूल जाते हैं कि जिस संविधान ने उन्हें जो भी अधिकार दिए हैं उसके साथ उनके लिए कुछ कर्तव्यों की बात भी कही है. आज राजनैतिक विरोध के कारण वाम दल ममता सरकार के इस फैसले के ख़िलाफ़ जा रहे हैं तो उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि ३३ वर्षों तक उन्होंने इतिहास के नाम पर जो मार्क्सवाद बंगाल में पढ़ाया उसको कभी न कभी तो यह दिन देखने ही थे ? सरकारें बदलने से पिछला इतिहास तो नहीं बदलता है हाँ आने वाले इतिहास में यह अवश्य लिखा जा सकता है.

देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता परिवर्तन के साथ इस तरह के कदम लगभग सभी सरकारों द्वारा उठाये जाते हैं और विपक्षियों के चिल्लाने का सरकार पर कोई असर नहीं होता और वह अपनी मनमानी करके ही मानती है जिसका सीधा असर आम लोगों द्वारा चुकाए गए कर पर अनावश्यक दबाव पड़ने से होता है क्योंकि जो धनराशि किसी विकास के काम पर खर्च की जा सकती है वह इस तरह के राजनैतिक विद्वेषों में खर्च हो जाया करती है. यह सही है कि पाठ्यक्रमों में सही इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि आज जो बच्चे किसी एक प्रान्त में पढ़ रहे हैं कल को वे अपनी उच्च शिक्षा के लिए किसी दूसरे प्रान्त में जा सकते हैं और उस स्थिति में उनके लिए इतिहास का यह बिगड़ा हुआ स्वरुप बहुत दिक्कतें खड़ी कर सकता है ? देश में राज्य सरकारों को यह छूट कतई नहीं दी जा सकती है कि वे अपने मनमर्जी से कुछ भी पढ़ाने लगें क्योंकि यह देश की भावी पीढ़ी से जुड़ी बात है और इस तरह की ग़लत जानकारी कभी उनके लिए प्रतिस्पर्धा में घातक भी साबित हो सकती है. इतिहास हमेशा एक जैसा रहने वाला है और इसमें परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए पर राज्य सरकारों को महपुरुषों को शामिल करने में छूट दी जा सकती है जिससे वे स्थानीय जानकारी को साझा कर सकें.

पाठ्यक्रम में इस तरह का बदलाव भी किया जा सकता है कि प्राथमिक स्तर पर राज्य से जुड़े इतिहास पर ध्यान दिया जाये और उसके बाद एक केंद्रीकृत पाठ्यक्रम ही पूरे देश में पढ़ाया जाये जिससे बच्चों को पढ़ने में एक जैसा लगे और उनकी जानकारी भी सही हो. इस मसले पर भी राजनैतिक दल कुछ न कुछ बवाल अवश्य करने वाले हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि हर राज्य में केन्द्रीय बोर्ड के कितने ही विद्यालय खुले होते हैं और वे किसी राज्य द्वारा निर्धारित कुछ भी नहीं पढ़ते हैं क्योंकि उनका एक अलग पाठ्यक्रम होता है. जब राज्यों को उन विद्यालयों में इस तरह की पढाई करवाने में कोई आपत्ति नहीं है तो वे अपने द्वारा शासित विद्यालयों में क्यों इस तरह के खिलवाड़ करते रहते हैं जो बच्चों का कहीं से भी हित नहीं कर सकते हैं ? क्या देश में इतिहास भी इस तरह से पढ़ाया जायेगा कि हर राज्य का इतिहास के प्रति नज़रिया ही अलग हो जाये ? भारत के लिए जो इतिहास अभी तक रहा है वह रहेगा और किसी के कुछ करने से इतिहास तो नहीं बदलने वाला है पर बच्चों में इस बात को लेकर भ्रांतियां अवश्य फैलने वाली हैं. राजनीति करने के लिए बहुत सारे अवसर आते रहते हैं इसलिए देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की इस गन्दी राजनीति पर तुरंत ही अंकुश लगाया जाना चाहिए क्योंकि अब देश में बच्चे सही इतिहास पढ़ने के स्थान पर कई तरह का इतिहास क्यों पढ़ें ?

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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