Menu
blogid : 488 postid : 813

साईकिल पर यूपी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
  • 2165 Posts
  • 790 Comments

मिनी आम चुनाव माने जा रहे ५ राज्यों के चुनावों में जहाँ समाजवादी पार्टी और अकालियों को छोड़कर दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का जैसा प्रदर्शन रहा उससे यही कयास कगाये जाने शुरू हो चुके हैं कि २०१४ के आम चुनावों तक बहुत कुछ बदलाव भी हो सकते हैं. जैसे २००७ में मायावती के प्रदर्शन को बहुत बड़े सामाजिक परिवर्तन और सोशल इंजीनियरिंग का ख़िताब दिया गया था कुछ लोग इस बार सपा के प्रदर्शन को भी वैसा ही कुछ कहने का प्रयास कर रहे हैं. यह सही है कि उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा के पास ही आज की तारीख़ में पार्टी नाम की कोई चीज़ बची हुई है और भाजपा कांग्रेस केवल स्थानीय समीकरणों के कारण ही कुछ सीटें जीत जाने में सफल होते जा रहे हैं. इस बार समजवादी पार्टी का जैसा प्रदर्शन रहा है उसे देखकर कोई भी यह कह सकता है कि यह उसकी सधी हुई चुनावी रणनीतियों और बिना सनसनी फैलाये प्रचार चलाने का ही नतीजा है क्योंकि सपा जितना अधिक मुखर होकर वार करती उसे उतना ही नुकसान होता. चुनाव के दौरान अखिलेश के कुछ क़दमों ने भी पार्टी की पुराणी छवि को तोड़ने का विश्वास दिलाया जिसका भी बहुत लाभ सपा को मिला. प्रदेश के ज़िला रोजगार कार्यालयों में बढ़ती भीड़ तो यह संकेत पहले से ही कर चुकी थी कि सपा ने युवाओं के मन में अपनी पैठ बना ली है.

इन चुनावों में बसपा के ख़िलाफ़ जनता में आक्रोश तो था ही पर साथ ही आख़िरी तक जनता का रुख स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि बसपा को हराने के लिए वह किस पार्टी के साथ जाना पसंद करने वाली है. इस चुनाव को अगर कांग्रेस और भाजपा ने इतनी मुस्तैदी और संजीदगी से न लड़ा होता तो शायद सपा ४०३ में से ३२५ सीटें भी जीत सकती थी क्योंकि जहाँ पर अन्य पार्टियों के उमीदवार कमज़ोर थे वहां पर सपा के पक्ष में लहर चली और जहाँ वे मज़बूत थे वहां पर यह आक्रोश वाला वोट उनके खातों में जुड़ गया. इन चुनावों से एक और सन्देश स्पष्ट होकर सामने आया है कि पूर्ण बहुमत का लाभ केवल तानाशाही के साथ नहीं उठाया जा सकता है. बसपा का वोट बैंक आसानी से टूटने वाला नहीं है पर जो लोग पिछले बार मायावती के साथ उनके सख्त प्रशासनिक रवैय्ये के कारण हो लिये थे उन्हें मायावती ने बहुत निराश किया. उनके वे तेवर पूरे ५ वर्षों तक पता नहीं कहाँ गायब रहे जिनके लिए जनता उन्हें वोट दे चुकी थी. केवल कुछ कारणों से सत्ता पाए नेताओं को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सर पर बैठने वाली यही जनता समय आने पर उन्हें धूल चटाने में में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है.

अब बात समाजवादी पार्टी के सामने आने वाली चुनौतियों की की जाये तो अखिलेश के होते हुए आशा की जा सकती है कि इस बार प्रदेश विकास की गति को पकड़ने में सफल हो सकेगा. अखिलेश ने जिस तरह से पूरे प्रदेश को पास से देखा और जनता की समस्याओं को जानने और समझने का प्रयास किया उसका लाभ भी सरकार को मिलने वाला है. आज प्रदेश/देश की आवश्यकता ऐसा नेतृत्व है जो आने वाले समय के लिए तैयार हो और समय आने पर नीतियों को बदलने की हिम्मत भी रखता हो. आज सपा के नवनिर्वाचित विधानमंडल दल की बैठक में क्या सपा अखिलेश को प्रदेश का अगला सीएम बनाने की हिम्मत दिखा पायेगी यह तो शाम तक ही स्पष्ट हो पायेगा पर यह सही समय है कि अखिलेश को उनके द्वारा अर्जित की गयी सफलता को सहेजने का अवसर दिया जाये क्योंकि बिना उनके जिस युवा वर्ग ने उनके नाम और नीतियों पर पार्टी को भारी संख्या में मत दिया है उसको भी यह लगे कि उसकी आकांक्षाओं की पूर्ति हो गयी है. नेताजी ने बहुत दिनों तक यह पद देख लिए है अब यह बिलकुल सही समय है कि वे पार्टी के युवा नेतृत्व को आगे बढाने के काम को तेज़ी से शुरू करें और स्वयं उनके लिए नीतियों के निर्धारण आदि का काम करें. खाँटी समाजवादी मुलायम से इस तरह के फैसले लेने की उम्मीद तो रखी ही जा सकती है क्योंकि जब सत्ता के लिए संघर्ष होने की सम्भावना न के बराबर हो तभी उसे परिवर्तन की चाभी सौंप देना ही उचित होता है.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh