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मोटर वाहन अधिनियम और सुरक्षा

***.......सीधी खरी बात.......***
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केंद्र सरकार ने जिस तरह से मोटर वाहन अधिनियम के राज्यसभा में पेश किये जाने के समय जिन संशोधनों की बात कही है वे बहुत अच्छे हैं पर जिस तरह से हमारे देश में नागरिक अपनी सुविधा के अनुसार नियमों में कुछ घूस देकर ढील पा लेने को अपना अधिकार समझते हैं उससे भी बहुत समस्या खड़ी होती रहती है. आज भी जिस तरह के जुर्माने और सज़ा का प्रावधान है उससे भी सड़क पर होने वाली बेतहाशा दुर्घटनाएं रोकी जा सकती है पर उसके लिए जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है वह कहीं भी दिखाई नहीं देती है जिससे सभी को यह लगता है कि देश के कानून में ही कोई कमी है और बिना उसको कड़ा बनाये इस दिशा में कुछ भी नहीं किया जा सकता है ? यह सही है कि दंड के नाम पर स्थितियों को काफी हद तक सुधारा जा सकता है पर जिस तरह से इस दिशा में काम किया जाता है उससे सारी उम्मीदें ही धुंधली पड़ने लगती हैं. धरातल पर इस कानून का उतारने का ज़िम्मा पहले से ही भ्रष्ट घोषित पुलिस को ही मिला हुआ है और जब पहले से ही मौजूद कानून को सही ढंग से लागू करवा पाने में पुलिस के पास संसाधनों और इच्छा शक्ति की कमी है उस स्थिति में नए कानूनों के लिए संसाधन कहाँ से जुटाए जायेंगें ?

यह सही है कि जिन लोगों की जानें इस तरह से लापरवाही के कारण चली जाती हैं उनकी भरपाई कोई भी नहीं कर सकता है और उसको रोकने के लिए सड़क पर वाहन लेकर चलने वालों के लिए कुछ सख्ती अवश्य ही होनी चाहिए जिससे किसी दंड के भय से वे इस तरह की स्थितियां उत्पन्न ही न होने दें. इस तरह की स्थितियों को पनपने से पहले की स्थितियों पर विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि जिन स्थानों से वाहन चालकों को लाइसेंस दिए जाते हैं सबसे पहले वहां पर नियमों की अनदेखी बंद होनी चाहिए क्योंकि जब अप्रशिक्षित लोगों को वाहन चलने का अधिकार मिल जाता है तो उसके कारण भी बहुत बड़ी संख्या में दुर्घटनाएं होती हैं. साथ ही देश में अच्छी होती सड़कों और तेज़ गति के वाहन आने से भी गति पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है जिसके कारण भी बहुत सारी दुर्घटनाएं होती रहती हैं. अब प्राथमिक शिक्षा से लेकर हर स्तर पर सड़क सुरक्षा को पाठ्यक्रम में लागू करवाना ही होगा क्योंकि यही बच्चे जो आज इन नियमों को जानेंगें कल वे ही सडकों पर वाहन चलते समय इनका अच्छे से ध्यान रख पाने की स्थिति में होंगें. ऐसा नहीं है कि आज सभी लोग कानून को तोड़ते है पर सभी उसका पालन करते हों ऐसा भी नहीं है.

जिस तरह से नए अधिनियम में भारी आर्थिक दंड का प्रावधान किया जा रहा है उसका अनुपालन करने में बहुत सारी व्यावहारिक कठिनाइयाँ आने वाली हैं क्योंकि जो पुलिस आज 50 रूपये लेकर चालान नहीं काटती है कल वो ५०० रूपये मांगने लगेगी जिससे ज़मीनी स्तर पर स्थिति में सुधार होने के स्थान पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. कोई भी व्यक्ति इस स्थिति से बचने के लिए कानून को तोड़ने के बाद घूस देकर अपने काम चलाता रहेगा. जब इन उल्लंघनों के बारे में कोई लिखा पढ़ी ही नहीं होगी तो पहली और दूसरी बार नियम तोड़ने की बात ही नहीं बचेगी ? एक बात तो अवश्य ही होनी चाहिए जिससे सड़क पर वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए क्योंकि ध्यान बँटने से सबसे अधिक दुर्घटनाएं होने लगी हैं. अब देश को हर जगह नए कानूनों के स्थान पर मौजूद कानूनों को सख्ती से लागू करवाने का समय आ गया है. पूरे देश में अब समय है कि यातायात पुलिस को पुलिस से अलग कर दिया जाये जिससे उनका नियंत्रण स्थितियों पर अच्छे से रह सके. अग्निशमन की तरह यातायात पुलिस का अलग से ही कैडर बना दिया जाना चाहिए और उसे केवल बड़े शहरों तक ही न रखा जाये जिससे इस तरह की स्थितियों पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सके और सामान्य पुलिस ड्यूटी से इनको अलग रखा जा सके.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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