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“४९ ओ” की वास्तविकता

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के संविधान ने मतदाताओं को “४९ ओ” के अंतर्गत किसी भी प्रत्याशी को न चुन कर उन्हें नकारने का अधिकार दे रखा है कल यूपी के प्रथम चरण के मतदान में जब सीतापुर जनपद की लहरपुर विधानसभा १४८ की १८ संख्या सूची के १०१६ पर पंजीकृत मतदाता के रूप में जब मैंने कल इस अधिकार का उपयोग करने का प्रयास किया तो पीठासीन अधिकारी द्वारा दिया उत्तर अप्रत्याशित था. उन्होंने मुझे सलाह दी कि क्यों चक्करों में पड़ रहे हो अपना वोट डाल दो और हमें भी अपना काम करने दो. सबसे पहले उन्होंने इस नियम से ही अनभिज्ञता दिखाई और मुझसे पूछा कि वोट डालना हो तो ईवीएम को ऑन करूँ ? मेरे द्वारा मना करने पर उन्होंने कहा कि वे ईवीएम का प्लग निकल कर इस वोट को समाप्त कर देंगें और मुझे ईवीएम प्रयोग करने वाली पुस्तिका भी दिखाई. इसके बाद उन्होंने अन्य लोगों के वोट डलवाने शुरू कर दिए मेरे द्वारा अड़े रहने पर उन्होंने कहा कि उनके पास इस सम्बन्ध में उचित प्रपत्र नहीं है जिन पर यह काम किया जा सकता है. क्या चुनाव आयोग जिस काम को करने में अपना पूरा जोर लगा देता है उसके द्वारा पीठासीन अधिकारी के रूप में काम करने वाले राज्य कर्मचारी इतने अनजान हैं कि वे बिना पूरे प्रपत्रों के ही मतदान केंद्र तक आ गए ? या फिर सीतापुर जिले के निर्वाचन कार्यालय ने इन अधिकारियों को इस बारे में कोई ट्रेनिंग ही नहीं दी थी ? क्या वास्तव में इसके लिए किसी प्रपत्र की आवश्यकता होती है ? आयोग के नियम के अनुसार मतदाता रजिस्टर पर मतदाता से यह लिखवा लिया जाना चाहिए कि वह किसी को भी वोट नहीं देना चाहता है जबकि मेरे मामले में पीठासीन अधिकारी ने इस बात से भी इनकार कर दिया और कहा कि उस रजिस्टर पर वे कुछ भी नहीं लिखवाएंगें ? साथ ही उन्होंने अपने किसी भी उच्चाधिकारी से बात करने से भी मना कर दिया.

क्या इस तरह की स्थिति में मतदाता के पास कोई विकल्प रह जाता है कि वह अपने मन का काम कर सके या फिर उस जानबूझकर इस स्थिति को पैदा करने वाले या वास्तव में अनभिज्ञ पीठासीन अधिकारी को अपने मनमानी करने दे ? क्या ऐसी किसी भी स्थिति की शिकायत मौके पर करने की कोई कोई व्यवस्था है ? और है तो मतदाता को इस स्थिति के बारे में कोई कागज़ी सबूत मिल सकता है या नहीं ? मुझे नहीं पता कि मेरे वोट का क्या हुआ क्योंकि जिस तरह से पीठासीन अधिकारी मेरी इस मांग से विचलित थे तो मुझे नहीं लगता कि उन्होंने मेरे वोट को मतदान से मना करने वाली श्रेणी में रखा होगा ? जब मैंने मतदान रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर दिए मेरी ऊँगली पर इंक लगायी जा चुकी तो फिर क्या मैं मतदान करने से मना नहीं कर सकता हूँ ? चुनाव आयोग इस बारे में स्पष्ट हैं कि इस स्थिति में मतदाता से रजिस्टर पर यह लिखवा लिया जाना चाहिए कि वह किसी को भी वोट नहीं देना चाहता है पर चुनाव का सञ्चालन करने वाले इन अधिकारियों को इस बात का पता नहीं होता है ? क्या मेरा वोट वास्तव में नहीं पड़ा या फिर मेरे वोट को संख्या पूरी करने के लिए किसी और से मशीन का बटन दबवा कर डलवा दिया गया ? मुझे इस बात का कतई अंदाज़ा नहीं था कि वहां पर ऐसा भी कुछ हो सकता है वर्ना मैं इस बारे में और अधिक तैयारी के साथ जाता और किसी भी स्थिति में अड़कर ४० ओ का प्रयोग करके ही मानता पर मैं जानबूझकर अपना मोबाइल भी घर पर ही छोड़ गया था क्योंकि मतदान केंद्र पर मुझे उसकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ने वाली थी ? मेरे मत देने या न देने के अधिकार का हनन हुआ है अगर मेरा वोट ४० ओ के तहत लिख लिया गया तो ठीक है वर्ना क्या मुझे अपने अधिकार से वंचित करने वाले अधिकारी के कृत्य को देखते हुए क्या निर्वाचन आयोग इस केंद्र पर पुनर्मतदान के आदेश जारी करेगा ? शायद नहीं क्योंकि उसके लिए एक बार चुनाव कराना ही कठिन काम होता है और केवल बड़ी गड़बड़ी के कारण ही आज तक पुनर्मतदान की बात की जाती है.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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