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गुजरात और मुसलमान

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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पता नहीं क्यों देश में कुछ ऐसा क्यों होता जा रहा है कि हर बार केवल जाति,धर्म,संप्रदाय और समूह के रूप में ही लोगों की पहचान की जाने लगी है ? कश्मीर घाटी से गुजरात में अहमदाबाद के कालूपुर रेलवे स्टशन के निकट रह रहे कश्मीरी मुसलमानों के एक समूह की उपस्थिति ने ख़बरिया लोगों को ख़बर लिखने का एक और अवसर दिया है. बारामुला से आये हुए इन ५० लोगों के सामने घाटी में रोज़गार और पहचान का संकट था तो अन्य जगहों पर भी वे सर्दी के कारण नहीं रुक सके. अब जब वे अहमदाबाद में रह रहे हैं तो इससे किसी को भले ही कोई फर्क न पड़ता हो पर हर बात को राजनैतिक चश्में से देखने वाले ज़रूर ही इसका प्रचार करना चाहेंगें. जो कुछ कश्मीर में १९८९ से हुआ उसके बाद वहां की पूरी आबादी ही शंकाओं के घेरे में जीने को मजबूर हो चुकी है और जब से वहां के हालात कुछ सुधरे हैं तब से लोगों की जिंदगी भले ही कुछ अच्छी हो गयी हो पर आज भी काम की समस्या के कारण वहां के निवासी पलायन करने को मजबूर हैं. क्या कारण है कि आतंकवाद के घटने के बाद भी वहां की सरकार लोगों की अपेक्षाओं के अनुसार सुविधाएँ जुटा पाने में असफल होती जा रही है आज इस पर विचार किये जाने की आवश्यकता है.

मोदी का नाम जैसे मुसलमानों के लिए एक दु:स्वप्न बनाया जा चुका है और कोई भी मोदी के आज के गुजरात के बारे में न तो जानना चाहता है और न ही उसके बारे में बात करना चाहता है ? २००२ की बातों को पीछे छोड़कर धरातल की बातों पर ध्यान देने के कारण ही आज मोदी की स्वीकार्यता पूरे गुजरात में बढ़ चुकी है, नौकरशाही पर तगड़ी पकड़ होने के कारण भी पूरे देश और दुनिया भर के उद्योगपति गुजरात जाना चाहते हैं. गुजरात के पास भौगोलिक रूप से जो बढ़त थी मोदी ने उसे भी सही ढंग से भुनाने का प्रयास भी किया. ऐसे में अगर मुसलमानों का एक समूह अपने बेहतर भविष्य के लिए गुजरात जाता है तो इसे सामान्य रूप में लिया जाना चहिये. इन कश्मीरी मुसलमानों ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि उन्हें गुजरात में कोई दिक्कत नहीं है जैसा उन्होंने सुन रखा था पर वे यह बात सबके सामने इसलिए नहीं कहना चाहते हैं क्योंकि इससे कश्मीर में बैठे उनके परिवार वाले और आतंकियों की नज़रों में वे आ जायेंगें ? क्यों आख़िर देश के मुसलमान कब तक इन झूठे डरों के घेरे में अपने को क़ैद रखेंगें जबकि पूरे देश में उनके लिए भी वही अवसर हैं जो अन्य लोगों के लिए हैं. कश्मीर के आतंक और कश्मीरी मुसलमानों को संदेह की दृष्टि पूरे देश में देखे जाने से इन लोगों को काम के अवसर तो उतने नहीं मिल रहे जितने आसानी से मिल सकते थे. जब आतंकी पूरे देश की नज़रों में हर कश्मीरी को संदेह के घेरे में लाना चाहते थे तब वहां के आम लोगों ने कुछ नहीं किया तो अब ऐसी असहज स्थिति का सामना तो उन्हें करना ही होगा.

क्या कारण है कि कश्मीर में उतनी रफ़्तार से उद्योग धंधे नहीं लग पा रहे हैं जिनके लिए उसका हक़ बनता है ? इसके लिए सबसे पहले तो वहां की नीतियों में शंका की प्रवृत्ति को दूर करना होगा और सरकार को इस बात की गारंटी देनी होगी कि किसी भी परिस्थिति में औद्योगिक इकाइयों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जायेगा ? क्या इस बात का कोई जवाब है कि कश्मीर के किसी भी हिस्से में कोई राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय कम्पनी अगर आती है तो वहां के नेता धरा ३७० का रोना नहीं रोने लगेंगें ? अब अगर कश्मीर को पूरी दुनिया के साथ आगे बढ़ना है तो उसे इस तरह की शंकाओं से खुद को बाहर निकालना होगा और जिन उद्योगों के लिए घाटी का माहौल अनुकूल है उन्हें वहां पर लगाने के बारे में सोचना भी होगा. सरकार बिना किसी विवाद में पड़े विशेष औद्योगिक क्षेत्रों को चिन्हित का सकती है जहाँ पर सुरक्षा की दृष्टि से भी कोई समस्या न हो और विकास की गति को बढाया जा सके. हो सकता है कि आज आम कश्मीरी इस बात से भड़क जाये कि घाटी में किसी बाहरी व्यक्ति या समूह का कोई उद्योग न लगे पर एक दिन उसे यह सोचना ही होगा कि अब केवल सरकारी स्तर पर ऐसा कर पाना नामुमकिन है और पूरे देश के साथ विकास की गंगा में अब झेलम को भी शामिल करने का समय आ गया है तभी जाकर घाटी में सही मायनों में विकास की बयार महसूस की जा सकेगी और कोई भी दल दिलों की दूरियों को बढाने में सफल नहीं हो पायेगा…..

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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