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मेरे साथ तो गंगा दूसरे के साथ तो नाला…

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में राजनीति में कितना कीचड़ हो चुका है इस बात का अब अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि अब यहाँ पर मुद्दे बड़े नहीं रह गए हैं उनेक स्थान पर केवल कुछ सीट जिताऊ नेता ही ज्यादा काम के साबित होने लगे हैं. वैसे ऐसा पूरे देश में होता है पर जब राजनीति के नाम पर शुचिता की धज्जियाँ उड़ाने वाले उ०प्र० की बात हो रही हो तो कुछ न कुछ तो अलग से होना ही है ? उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा में चुनाव के पहले इस तरह की अजीब सी पर नेताओं को रास आने वाली गतिविधियाँ अचानक ही बढ़ जाया करती हैं ताज़ा मामले में बसपा से निकले गए नेताओं को भाजपा द्वारा अपनाये जाने से जहाँ एक तरफ भाजपा की बहुत किरकिरी हुई है वहीं दूसरी तरफ़ अन्य दलों को भाजपा पर निशाना साधने का मौका भी मिल गया है. अभी पिछले साल ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी ने जिस तरह से कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए पूरे देश की ख़ाक छानी अब उसका वे क्या उत्तर देंगें क्योंकि कुशवाहा ने माया के कहने से या अपने आप ही जो कुछ भी किया उसे इस दम पर सही गलत नहीं कहा जा सकता की अब कुशवाहा किस दल के साथ हैं ?
अभी तक संसद और अन्ना के आन्दोलन में भाजपा जिस सुर में बात कर रही थी अब उसका पर्दाफाश तो हो ही चुका है क्योंकि अब भाजपा का दोहरा चरित्र सामने आ गया है ? कुशवाहा अपने समाज में बहुत इज्ज़त से देखे जाते हैं पर इसका मतलब यह नहीं माना जाना चाहिए कि कोई भी समाज अपने बेईमान नेता को भी उतना ही सम्मान देना चाहेगा ? किसी भी समाज पर इस तरह की तोहमत लगाने का हक़ किसी राजनैतिक दल को किसने दिया है ? इस मामले में सीबीआई अपना काम करने में लगी हुई है और इस पर विभिन्न तरह के राजनैतिक दुरूपयोग के आरोप लगाने वले दल क्या कुशवाहा के साथ अन्य लोगों के घरों और दफ्तरों में मारे गए छापे को भी इसका दुरूपयोग ही बतायेंगें ? कुशवाहा के भाजपा में जाने से सीबीआई के लिए भी समस्या खड़ी हो गयी है क्योंकि बसपा से निकाले जाने के बाद उनके ख़िलाफ़ कुछ भी कदम उठाने से एजेंसी को भेदभाव के आरोप नहीं झेलने पड़ते पर अब जब कुशवाहा भाजपा में हैं तो सीबीआई पर फिर से दबाव आ गया है ? ऐसे में जांच कितनी निष्पक्ष हो पायेगी यह तो समय ही बताएगा पर अब भाजपा को कुशवाहा को टिकट नहीं देकर अपनी तरफ़ से शुचिता तो दिखने का प्रयास करना ही चाहिए.
इस मसले कि केवल भ्रष्टाचार की नज़रों से देखे जाने की दृष्टि अभी भी देश में विकसित नहीं हो पाई है क्योंकि सभी को केवल तात्कालिक लाभ ही दिखाई देने लगे हैं और कोई भी दल चुनाव में कुछ वोट बटोरने वाले खिलाड़ियों की तलाश में जाल बिछाकर बैठना चाहते हैं ? अब देश की जनता में इतनी समझ आ चुकी है कि लोकपाल विधेयक बनाने और भ्रष्टाचारियों को साथ में लेने से क्या होने वाला है ? उत्तर प्रदेश में आज भी जो कुछ हो रहा है उसका अन्ना के आन्दोलन से क्या लेना है ? कोई भी दल आज तक यह निश्चय नहीं कर पाया है कि आवश्यकता पड़ने पर किसी भी हालत में अपराधियों और दागियों को टिकट नहीं देगा क्योंकि उसे केवल कुछ सीटें चाहिए जो चुनाव के बाद बनने वाले किसी भी माहौल में उनके दल को सहारा दे सकें ? अभी तक जो कुछ भी चल रहा है उसमें लोकतंत्र और शुचिता की हार हो रही है और कलमाड़ी, राजा आदि पर आरोप लगाने वाले किस तरह से अपने को कुछ अलग कैसे कह सकते हैं ? अब देश की जनता को यह फैसला करने का समय आ गया कि नेताओं के इस तरह के दोहरे चरित्र के बारे में कुछ सोच लें क्योंकि अब मेरे साथ गंगा और दूसरे के साथ नाला वाली कहानी ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है….
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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