Menu
blogid : 488 postid : 695

श्रीनगर और दिल्ली का फ़र्क

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
  • 2165 Posts
  • 790 Comments

नयी दिल्ली में आयोजित लीडर समिट में बोलते हुए पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती ने जिस तरह से अपने विचार रखे उससे यही लगता है कि नेता आज भी देश समाज और जनता से आगे बढ़कर केवल वोटों के बारे में ही सोचना चाहते हैं. इस आयोजन में जहाँ पर बड़े बड़े नेता अपने विचारों एक दूसरे को अवगत कर रहे हैं और देश के बारे में कुछ गंभीर चिंतन कर रहे हैं उसमें कुछ सार्थक तलाशने की कोशिश होनी चाहिए. कश्मीर से जुड़ा हर मसला अचानक ही राजनीति का केंद्र बन जाया करता है और अब उमर अब्दुल्लाह के सैन्य विशेषाधिकार कानून को लेकर उठाये मसले पर बोलकर महबूबा ने इस बात को साबित भी कर दिया है. फ़र्क इस बार सिर्फ इतना है कि अब महबूबा के मुंह से सुरक्षा बलों और सेना के लिए प्रशंसा के दो बोल भी निकल पाए हैं जिनका अभी तक उनकी बातों में अभाव रहा करता था. देश और समाज की स्थिति किसी व्यक्ति के लाभ हानि से नहीं वरन धरातल की वास्तविकताओं से पता चलती है और इस बारे में किसी को भी बोलने का हक़ नहीं दिया जा सकता है क्योंकि जब सेना अकेले ही पाक से भेजे गए आतंकियों से लड़ रही थी तो ये नेता उसी सेना के सुरक्षा घेरे में थे वरना आज ऐसी बातें करने के लिए ये जीवित ही नहीं होते.

अच्छा ही हुआ कि महबूबा ने इस बात को सार्वजनिक तौर पर मान लिया कि सेना ने जम्मू कश्मीर में प्रशंसनीय काम किया है क्योंकि सेना ने वहां जो कुछ भी किया है उसे किसी महबूबा के प्रमाण की कभी भी आवश्यकता नहीं रही पर यह देखना था कि कश्मीर के हितों की बात करने वाले लोग आख़िर कब इस सच्चाई को दिल से स्वीकार कर पाते हैं. पूरे देश से गए सैनिकों ने १९४७ से आज तक कश्मीर के लिए अपने प्राणों की बलि देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और जब इस बात को समझने के बदले में वहां पर सेना को आततायी घोषित करने की होड़ नेताओं में लग जाती है तो उससे आख़िर में कश्मीर का ही नुकसान होता हैं. सेना ने कश्मीर में जो कर दिया है वह रूस और अमेरिका दुनिया के किसी हिस्से में नहीं कर पाए हैं. किसी भी अशांत क्षेत्र में किसी भी सेना को शांति लाने में इतनी बड़ी कामयाबी कहीं मिली हो ऐसा नहीं दिखाई देता और आम कश्मीरी भी यह जानता है कि सेना ने उनकी जान बचायी है पर आतंकियों के डर के कारण कोई भी सच को कहना और सुनना नहीं चाहता है.

अच्छा होगा कि इस मसले पर सभी सच को स्वीकार कर लें और जहाँ पर विशेषज्ञों की राय की ज़रुरत है वहां पर उन्हें ही सब कुछ करने की छूट दी जानी चाहिए किसी को भी कुछ भी बोलकर माहौल को बिगाड़ने का काम करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है. अच्छा है कि महबूबा ने सुरक्षा बलों के मान पर भी सोचा कि उन्हें यह न लगे कि कश्मीर से उन्हें निकला जा रहा है पर यह सोच क्या उनके कश्मीर घाटी जाने तक बनी रह पायेगी इसमें संदेह है. अगर वे राज्य के लिए इतनी ही चिंतित हैं तो उन्हें अभी इस कानून के बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहिए और जनता क्या चाहती है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए आने वाले चुनाव तक प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने दिल्ली में जो कुछ भी कहा है अगर वे उसी बात पर घाटी में भी कायम रहती हैं तो यह कश्मीर के लिए एक सुखद बदलाव होगा. घाटी में बदलाव ज़मीनी स्तर पर दिखना चाहिए न कि केवल बातों में जिससे वहां पर नागरिक प्रशासन के सहयोग के लिए सेना की आवश्यकता ही न रह जाये और यह काम वहां की जनता और नेता ही कर सकते हैं सेना ने अपना काम कर दिया है अब यह कश्मीरियों पर है कि वे अपना भविष्य सुधारना चाहते हैं या फिर से बर्बादी की राह पर चलना चाहते हैं.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh