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हरिद्वार में भगदड़

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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युग ऋषि पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की जन्मशताब्दी समारोह के अवसर पर लोगों की भीड़ के कारण हुए हादसे में २२ लोगों के मारे जाने के बाद हमें इस बात पर फिर से विचार करने की ज़रुरत है कि इस तरह के बड़े आयोजन करने के लिए संस्थाएं व्यवस्था तो कर सकती हैं पर बहुत से ऐसे लोग जो केवल धर्म लाभ के लिए ऐसी जगहों पर जाते हैं और उन्हें इस तरह की संस्थाओं से कुछ भी मतलब नहीं होता है और वे इनकी गतिविधियों से पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं जिनके कारण ही कई बार ऐसी अव्यवस्था फैल जाया करती है. इस बारे में अभी तक शांति कुञ्ज हरिद्वार के अनुशासन की सभी जगह तारीफ़ होती थी कि इनके कार्यकर्ता कितने भी बड़े आयोजन को बिना किसी अव्यवस्था के संपन्न कराने की क्षमता रखते हैं पर इस बार कहीं से कुछ कमी अवश्य रह गयी जिस कारण से ऐसी दुर्घटना हो गयी. इस बात पर अब शांतिकुंज में अवश्य ही मंथन किया जायेगा कि आख़िर किस स्तर पर कौन सी कमी रह गयी जिसने यह सब करा दिया.
इस बारे में जहाँ तक संभव होता है हर आयोजक अपनी तरफ़ से पूरी तैयारी करता है पर इस बार लगता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा अवश्य हुआ है जो शांतिकुंज के नियमों के अनुसार नहीं था और जिसने इतनी बड़ी घटना को जन्म दिया. देश में किसी को भी कितना भी बड़ा आयोजन करने की पूरी छूट है पर इस बारे में अब एक संशोधन की आवश्यकता है कि ऐसे किसी भी आयोजन में जाने वाले सभी लोगों के लिए प्रशिक्षण की कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उन्हें आपदा नियंत्रण की पूरी ट्रेनिंग भी दी जाये जिससे ऐसी किसी भी अव्यवस्था के फ़ैलने पर इससे निपटने के लिए हर व्यक्ति के पास कुछ सोच हो और वे ऐसी किसी भी घटना की तीव्रता को कम कर सकें. साथ ही क्षेत्र के अनुसार हर स्तर पर सुरक्षा अधिकारी भी नियुक्त किये जाएँ और हर आने वाले श्रद्धालु को यह बता दिया जाये कि उसे हर हाल में अपने इस प्रमुख की बात माननी है क्योंकि इससे पूरी व्यवस्था सुचारू ढंग से चल पायेगी और कोई दुर्घटना भी नहीं हो सकेगी. किसी भी छोटे अस्थायी नगर में रहने वालों को नियमित तौर पर आपदा प्रबंधन से जुड़ी बातों को पूरे आयोजन के समय रोज़ ही बताया जाये जिससे वे इन बातों को भूल न जाएँ.
साथ ही बहुत बड़े आयोजनों में सभी को इस बात के निर्देश भी होने चाहिए कि वे समय और क्षेत्र के अनुसार हवन आदि कर्म कर सकें क्योंकि अगर यज्ञशाला में एक साथ सभी तरफ़ के लोग जाने लगेंगें तो वहां की व्यवस्था चरमरा जाएगी भले ही वह कितने ही बड़े स्तर पर की गयी हो. ऐसी जगह पर अगर संभव हो तो सारी व्यवस्था केंद्रीयकृत करने के बाद इसे छोटे छोटे समूहों में बाँट दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे जहां श्रद्धालुओं को अधिक चलना नहीं पड़ेगा और वे अपने अस्थायी नगर में ही हवन पूजन आदि कर्म भी कर सकेंगें. आज सूचना प्रौद्योगिकी के युग में सभी नगरों में मल्टीमीडिया का प्रयोग करके सारी सूचनाएँ और कार्यक्रम लोगों तक पहुंचाए जाने चाहिए क्योंकि जिस तरह से शांतिकुंज का प्रभाव बढ़ रहा है उससे आने वाले समय में ऐसे किसी भी आयोजन में और अधिक लोग आ सकते हैं जिससे व्यवस्था करने में समस्या भी आ सकती है. आज समय है कि इस दुर्घटना के कारणों पर विचार करके उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए. यहाँ पर बात केवल शांतिकुंज की नहीं है बल्कि ऐसी स्थिति किसी भी आयोजक के सामने किसी भी स्तर के आयोजन में आ सकती है.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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