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राइट टू रिकाल राइट टू रिजेक्ट

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी ने अन्ना द्वारा सुझाये गए चुनाव से सम्बंधित “राइट टू रिकाल” और “राइट टू रिजेक्ट” को सिरे से रिजेक्ट कर दिया है उनका कहना है कि भारत जैसे देश में यह बड़ी समस्याएं पैदा करने वाला हो सकता है. यह सही है कि नेताओं ने चुनाव जीतने के बाद जिस तरह से जनता को भूलने की परंपरा सी बना रखी है उसे देखते हुए अगर किन्हीं नेताओं को जनता वापस बुलाना चाहे तो यह प्रस्ताव काफी अच्छा लगता है पर जिस तरह से इतने बड़े देश में चुनाव करना बहुत कठिन चुनौती होती है वैसे ही इन निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की प्रक्रिया और भी जटिल होने वाली है. इतने बड़े लोकसभा या विधान सभा क्षेत्र में आख़िर कौन सी प्रक्रिया अपनाकर इन नेताओं को वापस बुलाया जायेगा और किस प्रक्रिया के तहत इनको रिजेक्ट किया जायेगा यह नीति बनाना ही बहुत मुश्किल होगा. इसके स्थान अपर चुनाव सुधारों की बातों पर अगर अधिक ध्यान दिया जाये तो स्थिति को आसानी से बदला जा सकता है.
यह सही है कि अन्ना जो कुछ भी चाहते हैं उसका कारण ये भ्रष्ट नेता ही हैं क्योंकि अगर इन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह ठीक ढंग से किया होता तो कोई भी इस तरह की कोई भी मांग सामने नहीं रखता पर जब देश की विधायिका आज अपनी ही कसौटी पर अनुत्तीर्ण हो गयी है तो इसका दोष किसी दूसरे को कैसे दिया जा सकता है ? देश की जनता देश के विकास में अब किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करना चाहती है और उसे यह भी पसंद नहीं है कि नेता इन ग़लतियों के लिए उल्टे-सीधे बहाने बनाकर अपना काम निकालते रहें. अब जनता के जाग जाने से एक बात तो होने वाली ही है कि नेताओं को ज़िम्मेदारी से काम करना ही पड़ेगा क्योंकि अब लापरवाह लोगों के लिए चुनाव में खड़े हो कर जीतना मुश्किल होने वाला है. चुनाव सुधारों के बारे में क़ुरैशी ने जिस तरह से अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की पक्की व्यवस्था करने की बात कही है वह अधिक व्यावहारिक है क्योंकि उससे राजनीति में आने वाले लोगों की स्थिति में परिवर्तन होने से स्थिति बदलनी शुरू हो जाएगी.
आज देश को व्यापक चुनाव सुधारों की बहुत आवश्यकता है जो कि देश के राजनैतिक तंत्र में व्याप्त गंदगी को दूर कर सकती है अब हमें ही यह तय करना है कि राजनीति में अपराधी न आने पायें और देश की जिन नीति निर्धारण समितियों की बातें की जाती हैं उनमें अपराधियों को रखने की परंपरा भी रोकी जाये. यह सही है वोटों के तिकड़म से कोई संसद या विधान सभा तक पहुंचा सकता है इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपने आप में बहुत कुशल हो गया है ? स्थानीय कारणों से कई बार १५ % वोट पाने वाले भी संसद या विधान सभा तक पहुंच जाया करते हैं जिससे जनता का सही प्रतिनिधित्व ही नहीं हो पाता है. अब समय है कि देश में सबसे बड़े चुनकर आने वाले दल को बहुमत के स्थान पर अल्पमत में ही सरकार चलाने की आज़ादी होनी चाहिए और साथ ही उस पर यह बंधन भी नहीं होना चाहिए कि वह किसी खास दल से ही लोगों को मंत्रिपद दिया जायेगा. प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्री को इस बात की पूरी छूट होनी चाहिए कि वे अपने मन के लोगों को पूरे भारत से लेकर अपने मंत्रिमंडल का गठन कर सकें जिससे देश में रोज़ फैलने वाली अस्थिरता से भी मुक्ति मिल सके.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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