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अन्ना और सरकार

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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आज देश में जिस तरह का माहौल बन रहा है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्ना और सरकार दोनों पक्षों ने इस मामले में जिस तरह का अड़ियल रुख अपना लिया है वह किसी भी तरह से देश के हित में नहीं है. यह सही है देश की जनता भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहती है और सरकार भी कई बार इस मसले पर सख्त बिल की बात कर चुकी है पर अचानक ही दोनों पक्षों की बात बनते बनते बिगड़ गयी और देश को जो कुछ मिल सकता था उसमें बहुत देर हो गयी. यह सही है की अन्ना को अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए पर साथ ही यह भी सही है की जो उन्हें चाहिए वह सरकार अपने दम पर नहीं दे सकती है. इसी क्रम को आगे बढ़ने के लिए देश में पहली बार सरकार ने किसी ड्राफ्ट को बनाने के लिए जनता के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक संयुक्त समिति बनायीं थी. यह अपना काम भी ठीक तरह से कर रही थी और कई मामलों पर सहमति भी बन चुकी थी जबकि कई मामलों पर मतभेद भी जारी थे. इस पूरे मसले में नया मोड़ तब सामने आ गया जब सरकार ने योग के नाम पर प्रदर्शन और अनशन कर रहे बाबा रामदेव को बलपूर्वक दिल्ली से बाहर कर दिया.

इस तरह के बड़े परिवर्तन अचानक ही नहीं हो जाया करते हैं आज जो स्थिति है उसमें सभी पक्षों को संयम से काम लेना चाहिए. अन्ना की शांतिप्रियता पर किसी को संदेह नहीं है पर जब हजारों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है तो कौन सभी की ज़िम्मेदारी ले सकता है ? सरकार के सामने कानून व्यवस्था की समस्या है तो अन्ना को एक अच्छे लोकपाल की ज़रुरत….. पर दोनों ही बातें देश के लिए ज़रूरी हैं. आज इस बात की अधिक आवश्यकता है की देश को एक मज़बूत लोकपाल मिले पर साथ ही इस तरह के अनावश्यक विवादों से भी बचा जाये क्योंकि अगर देश में किसी भी तरह का किसी का भी नुकसान होता है तो वह हमारा ही होगा. अब भी समय है की इस तरह के बड़े काम को केवल समय सीमा में न बाँधा जाये यदि सरकार की मंशा अच्छी है तो उसे भी अपनी तरफ से अच्छे संकेत देने चाहिए साथ ही अन्ना को भी यह समझना होगा की लोकतंत्र में यह सारी जटिल प्रक्रिया है और इसका बिना कोई भी सरकार कुछ भी नहीं कर सकती है. इस लोकपाल को मज़बूत बनाने के लिए आम जनता की राय भी लेनी चाहिए जिससे सभी की राय जानी जा सके.

अब भी समय है की सरकार को इस मामले में पहल करनी ही चाहिए एक बात यह समझ में नहीं आती है की इस मसले पर संप्रग की सरकार कुछ करना चाहती है तो बाकि दल केवल मज़बूत लोकपाल की बातें ही क्यों करते हैं क्यों नहीं वे इस पूरी प्रक्रिया में शामिल होते हैं ? हर छोटी बड़ी बात के लिए संसदीय समिति की मांग करने वाले विपक्ष को क्या लोकपाल इतना आवश्यक नहीं लगता की इसके लिए भी वे कुछ मांग सकें ? अच्छा हो की इस मसले पर किसी भी तरह की हड़बड़ी से बचा जाये और इस पर विचार करने के लिए एक संसदीय समिति भी बनाई जाए जिससे देश के सभी राजनैतिक दल क्या कहते हैं यह भी जनता के सामने आ सके. साथ ही सभी राज्यों की विधान सभाओं में भी इस तरह की समितियां बनाई जाएँ जो पूरी तरह से विचार करके अपनी राय भी संसदीय समिति तक भेजें. टीम अन्ना को भी अब यह समझना चाहिए की वे जिस हक़ के लिए लड़ रहे हैं उसे पाने में अब कोई उन्हें नहीं रोक सकता है पर इस तरह के बड़े निर्णय आसानी से नहीं हुआ करते और जब बात भ्रष्ट राजनेताओं को भी कानून में लाने की हो तो डगर और भी कठिन हो जाती है. अब सरकार को अन्ना के साथ अनावश्यक सख्ती से बचना चाहिए साथ ही अन्ना को भी इस गतिरोध को तोड़ने के लिए कुछ नर्म तेवर दिखाने होंगें.
नेटवर्क के कारण पता नहीं क्यों “की” ही लिख पा रहे हैं जिससे भाषागत त्रुटियाँ आ रही हैं लेख में…आशा है की यह आप लोग इस गलती को समझ सकेंगें…
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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