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अधिकार, मत, सुधार, समाज

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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भारत के नेता और कुछ सुर्ख़ियों में बने रहने की चाहत रखने वाले कुछ लोग पता नहीं कब क्या कर दें इसका अंदाज़ा ख़ुद उन्हें भी नहीं होता है पर जब इस तरह की बातों को बिना वजह तूल दिया जाता है तो ऐसे विवादस्पद बयान देने वाले लोगों पर स्वतः ही पूरे समाज का ध्यान चला जाता है. भारत में हर व्यक्ति को हर तरह की आज़ादी है पर उसका जितना दुरूपयोग हम भारतीय करते हैं वैसा कहीं और देखने को भी नहीं मिलेगा. ताज़ा मुद्दे में सुब्रह्मण्यम स्वामी के एक लेख को लेकर बवाल मच रहा है और इस मामले को इतनी गंभीरता दी जा रही है जैसे स्वामी के हाथ में सब कुछ हो और वे जो कुछ भी कह देंगें वह पत्थर की लकीर है. भारत में हर तरह की संवैधानिक व्यवस्था है और किसी एक के चाहने से भी यहाँ कुछ इतनी आसानी से बदलने वाला नहीं है क्योंकि कोई बड़ा संशोधन केवल देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था संसद की मर्ज़ी के बिना नहीं किया जा सकता है फिर इस तरह के किसी सस्ती लोकप्रियता पाने के किसी भी बयान को इतना तूल देने का क्या मतलब बनता है ?
अब क्या स्वामी के कहने भर से देश के अल्पसंख्यकों से मताधिकार छीना जा सकता है ? स्वामी जैसे लोग चाहे कुछ भी कहते रहें पर जिस देश में विदेशों से आकर शरण मांगने वालों को भी पूरा सम्मान दिया जाता है वहां पर अपने ही लोगों से यह अधिकार कैसे छीना जा सकता है ? स्वामी ने ऐसा लेख जाकर लिखा जिससे उन्हें यह पता चल सके कि इस तरह से अगर भविष्य में बयान बाज़ी भी की जाये तो इसका क्या असर होने वाला है ? देश सभी का है और जो देश से प्यार करते हैं वे इसके लिए स्वयं ही सही ढंग से सोच और समझ सकते हैं पर आज जिस तरह से एक स्वामी के बयान पर अल्पसंख्यक आयोग पूर्ण बैठक करने जा रहा है उसका कोई औचित्य नहीं समझ आता है क्योंकि इससे तो स्वामी जैसे लोग अपने मकसद में सफल हो जायेंगें और वे समाज को धर्म के आधार पर बांटने का खेल आने वाले समय में खुलकर खेल सकेंगें ? ऐसा करके इस तरह का कोई व्यक्ति केवल अपने लिए कुछ वोटों का जुगाड़ ही कर सकता है. अब अगर देश की संवैधानिक संस्थाएं ही इस तरह से काम करने लगेंगीं तो फिर आगे क्या होगा ?
यहाँ पर इस बात पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है कि आख़िर स्वामी जैसे लोग ऐसा बोलकर कुछ सहानुभूति कैसे पा जाया करते हैं ? इसके पीछे वे तर्क देते हैं कि जब भारत में रहने वाले मुसलमान पाक के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं तो फिर उनको भारत में रहने का क्या अधिकार है ? यह सही है कि आज भी भारत के हर हिस्से मन कुछ मुसलमानों के मन में पाक के प्रति प्रेम भाव रहता है जबकि सभी को पता है कि वह हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है ? भारत-पाक के बीच में क्रिकेट मैच होने पर कुछ इस तरह के तत्व खुलेआम पाक के समर्थन में खड़े हो जाते हैं तो उनको लेकर पूरे समाज पर ऊँगली उठाई जाने लगती है. क्या कभी अल्पसंख्यक आयोग ने इस बात पर गौर किया कि अल्पसंख्यक आख़िर किस तरह से रहें जिससे बहुसंख्यकों के मन में उनके प्रति कोई भी शक न जन्म ले ? आख़िर क्यों अल्पसंख्यक आयोग केवल बुराई की बातों पर ही सक्रिय होता है वह क्यों नहीं इस बात पर भी ध्यान देता है कि देश के बहुसंख्यकों का दिल कैसे जीता जाए ? आज आवश्यकता इस बात की अधिक है कि सामाजिक ताने बाने की समरसता पर सच्चे मन से ध्यान दिया जाये. किसी स्वामी को जेल भेजकर इस तरह की शंकाओं को नहीं रोका जा सकता ही और अब किसी भी शंका को जन्म से पहले ही मारने की ज़िम्मेदारी भी अल्पसंख्यकों को ही उठानी होगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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