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रेलवे दलाल और तकनीकी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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रेलवे द्वारा किये जाने वाले हर उपाय को बेकार साबित करने में लगे टिकटों की कालाबाजारी करने वाले लोगों के हाथ एक और ब्रह्मास्त्र लग गया है. जिस तरह से रेलवे इनको तत्काल सेवा की बुकिंग से दूर रखने के लिए रोज़ ही नयी कवायद में लगी रहती है और उसके बाद भी इन पर रोक नहीं लगायी जा पाती है वह आम रेल यात्रियों के लिए बहुत चिंताजनक है. हाल ही में कुछ लोगों के पास से पकड़े गए कमांडो और सॉफ्टवैली नामक सॉफ्टवेयर की स्पीड आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर से कई गुना ज्यादा है जहाँ रेलवे की वेबसाइट से एक टिकट बुक करने में ३ मिनट का समय लगता है वहीं इस तरह के सॉफ्टवेयर के उपयोग से केवल १४ सेकंड में ही टिकट बुक हो जाते हैं जिससे आम रेल यात्री के लिए तत्काल में टिकट पाना बहुत कठिन हो जाता है और जिस मतलब से यह तत्काल सेवा शुरू की गयी है उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता है. रेलवे ओ सरकारी विभाग के चोले को उतार कर एक संस्था की तरह काम करना सीखना ही होगा क्योंकि इस तरह से महत्वपूर्ण मामलों में फैसले तुरंत लेने की आवश्यकता होती है.

आम तौर पर ८ बजे बुकिंग खुलने के बाद ही आईआरसीटीसी की साईट पर पूरा ब्यौरा भरना होता है और तभी जाकर टिकट बुक हो पाता है पर इस तरह के सॉफ्टवेयर से पहले से ही सारी जानकारी भरकर तैयार रखी जाती है और बुकिंग खुलने के साथ मात्र १४ सेकंड में ही टिकट बुक हो जाता है. अब जहाँ आधिकारिक तौर पर टिकट बुक करने में ३ मिनट लगते हैं वहीं इस तरह से इतने कम समय में बुक होने वाले टिकट के सामने कोई और कैसे टिकट पा सकता है ? पश्चिमी क्षेत्र में इस तरह की शिकायत मिलने पर रेलवे ने पुलिस को सूचित किया तो एक व्यक्ति को पकड़ा गया पर वहीं अभी तक यह सॉफ्टवेयर बनाने वाले तक पुलिस नहीं पहुँच पायी है. इस की उपयोगिता को देखते हुए इसकी कीमत १० हज़ार रूपये तक निर्धारित की गयी है और इस के माध्यम से होने वाली अतिरिक्त आय से ये दलाल अपना काम चलाने में लगे हुए हैं. जब इस तरह से आम यात्रियों के लिए टिकट उपलब्ध ही नहीं हैं तो वह किस तरह से यात्रा कर सकता है.

देश की तकनीकि का डंका पूरी दुनिया में बजता है पर ऐसा क्या है कि हम अपने लिए ही अच्छे सॉफ्टवयेर की व्यवस्था नहींकर पाते हैं ? हो सकता है कि इस पूरे मामले में कहीं न कहीं से रेलवे के ही कुछ लोग भी शामिल हों और जिनके कारन ही इस तरह के बड़े प्रशासनिक फैसले लेने में अघोषित रूप लगी रहती हो ? अब भी समय है क्योंकि जिस तरह से पूरी व्यवस्था के लाभ कुछ लोग उठाने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं तो उस स्थिति में बहुत ही कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है. क्या कारण है कि अन्य लोगों के टिकट तो इस तरह से बुक हो जाते हैं और आम रेल यात्री इस तरह से टिकट नहीं बुक कर पाता है ? किसी अच्छे तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता से अब रेलवे को इस पूरी व्यवस्था को बदलने के लिए काम करना ही होगा क्योंकि इस तरह से खुलेआम कालाबाजारी को बढ़ावा किस तरह से दिया जा सकता है ? तत्काल कोटे में भी रेलवे कुछ हिस्सा नेट से बाकि हिस्सा केवल रेलवे खिड़की से ही बुक करने कि व्यवस्था कर सकती है जिससे इस पूरे खेल में दलालों की हिस्सेदारी कुछ हद तक कम ही हो जाएगी. रेलवे को अपने ख़ुफ़िया तंत्र के माध्यम से यह भी देखने चाहिए कि आख़िर किन आई पी पतों से इस तरह से जल्दी ही टिकट बुक किये जा रहे हिं जिससे इस पर लगाम लग सके.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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