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सुधार समितियां और जनता

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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जिस तरह से लोकपाल विधेयक के लिए मसौदा तैयार करने वाली बात चीत पूरी तरह से गतिरोध का शिकार होती नज़र आई उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में देश में किसी भी बड़े मसौदे को बनाने के लिए कुछ और प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए. केवल १० लोग जिस तरह से अपनी बातों को एक दूसरे पक्ष मनवाने में लगे हुए हैं और उसमें भी उन्हें कोई खास कामयाब मिलती नहीं दिखाई दे रही है. लोकपाल विधेयक के बारे में पूरे देश में एक अजीब सी हलचल है और अभी भी कुछ मुद्दों पर सहमति बनने के आसार भी नहीं दिखाई दे रहे हैं. पर सरकार ने जिस तरह से काले धन के बारे में जनता की राय जानने के लिए एक पोर्टल बनाने की घोषणा की है उससे यही लगता है कि अब सरकार को भी यह लगने लगा है कि ऐसे मामलों में जनता की राय भी ली जानी चाहिए. काले धन पर किस तरह के कानून बनाये जाएँ और देश की जनता क्या चाहती है इसके लिए सरकार की तरफ से एक ई मेल प्रस्तावित किया गया है जिस पर कोई भी अपने विचार भेज सकता है. इसके लिए आवश्यक तकनीकी कदम उठाने के बाद सरकार जनता से खुले आम विचार मांगने की सोच रही है.

यह सही है कि कोई भी मसौदा अंत में कुछ लोग मिलकर ही बनायेगें पर हो सकता है देश की जनता के पास कुछ ऐसे विचार भी हों जिनको कोई पूछता नहीं है और जिनके सामने आने से कोई भी विधेयक बहुत अच्छा बन सकता है तो फिर जनता को पीछे छोड़ने की ज़रुरत क्या है ? सांसद और विधायक बन जाने के बाद नेताओं में जिस तरह का अहम् आम तौर पर आ जाता है कई बार वह भी जनता से उनके जुड़ाव को कम कर देता है. इस देश में ऐसे नेता भी हैं जिनके पास एक सीट से लगातार जीतने का रिकार्ड भी है. जब जनता से सरकार और विधायिका का जुड़ाव अच्छे से होता है तो उससे पूरे देश का ही भला होता है पर आज के समय में केवल चुनाव के समय ही नेताओं को जनता की याद आती है और पूरे पांच साल वे जनता को डिब्बे में बंद कर देते हैं ? अब ऐसा नहीं चलने वाला है हर स्तर से नयी सोच अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि केवल कहने से इस देश का बहुत नुकसान हो चुका है और इससे अधिक नुकसान झेलने की स्थिति में न तो देश है और न ही जनता ?

सरकार देश में बहुत तरह के संचार के माध्यमों को लाइसेंस देती है और जिसमें उनको देश के लिए कुछ भी करने के लिए आवश्यकता पड़ने पर इन संचार माध्यमों का उपयोग करने की सोच भी विकसित होनी चाहिए साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि देश हित में जनता से जुड़े किसी भी मुद्दे पर दिया गया किसी भी तरह का विज्ञापन सभी को छापना और प्रसारित करना होगा. किसी भी बिल पर जनता को जागरूक करने और उसकी राय जानने के लिए रेडियो, टीवी और अख़बारों में विज्ञापन दिए जाने चाहिए और साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि ये विज्ञपन केवल देश के हित वाले ही हों किसी भी सरकार की उपलब्धियों के प्रचार प्रसार के लिए इस सुविधा का उपयोग किया जाना चाहिए. चुनाव के समय केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन ही नहीं बल्कि सभी निजी चैनेलों को भी इसे दिखाना आवश्यक कर दिया जाना चाहिए. आख़िर देश के बारे में सोचने के समय ये लोग पीछे कैसे हट सकते हैं. अब समय आ गया है कि इस तरह की सभी बातों पर गहन विचार किया जाए और भविष्य में किसी भी तरह के विधेयक या अन्य किसी भी मुद्दे पर सरकार को अपनी राय भेजने या सरकार द्वारा जनता की राय जानने की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए. ऐसे मामले के लिए भेजे गए किसी भी पत्र को एक विशेष संख्या देकर गंतव्य तक नि:शुल्क पहुँचाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए. जिसमें डाक विभाग और सभी निजी कूरियर सेवाओं को शामिल को शामिल किया जाना चाहिए.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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