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सहयोग की मिसाल

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में ग्रामीणों ने आपसी सहयोग और चंदे से एक ऐसा काम पूरा कर लिया जिसकी वहां पर बहुत दिनों से आवश्यकता थी और सरकार तथा जनप्रतिनिधियों से निरंतर मांग करते रहने के बाद भी यह काम पूरा नहीं हो पा रहा था. सिख बहुल इलाके नरसुना और आस पास के लोगों स्थानीय गुरूद्वारे की पहल पर आपसी चंदे से ३० मीटर लम्बा पुल बनाने में सफलता प्राप्त की जिसके निर्माण में लगभग १.५ करोड़ रूपये खर्च हुए हैं. यह विकास के लम्बे चौड़े दावे करने वाली सरकारों और राजनैतिक दलों के गाल पर बहुत बड़ा तमाचा है जिन्हें लगता है कि जब तक लोग आकर विकास की भीख नहीं मांगेंगे तब तक उन्हें विकास की कोई भी बड़ी योजना नहीं दी जाएगी. अगर जनता चाहे तो देश से सरकारें उखाड़ सकती है तो फिर इस तरह के कार्य करने के लिए बस संकल्प ही लेने की आवश्यकता हिती है और बाक़ी सारा काम बहुत आसान हो जाता है.

आज भी देश में विकास के मायने आवश्यकता के स्थान पर चापलूसी से जुड़े हुए हैं और इनसे देश के जिस हिस्सों में विकास की वास्तविक आवश्यकता है वहां पर कभी भी विकास नहीं हो पाता है और अन्य स्थान जहाँ से बड़े और प्रभावशाली नेता होते हैं वहां पर बिना बात के विकास पर पैसे लुटाये जाते हैं. क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश जैसे नदियों से संपन्न प्रदेश में आज भी उतने पुल नहीं बन पाए हैं जिनकी वास्तव में आवश्यकता है ? आज भी प्रदेश की सरकार और नौकरशाही के पास शायद ही ऐसा कोई सर्वेक्षण हो उन बातों का ज़िक्र हो जिसमें तत्काल विकास से जुड़ी समस्या पर ध्यान देने की ज़रुरत हो ? हर सरकार केवल चंद बड़े शहरों में ही अपने राजस्व को झोंकना चाहती हैं और साथ ही यह भी प्रदर्शित करना चाहती है कि उन्हें जैसे विकास के नए आयाम स्थापित कर दिए हों ? भले ही प्रदेश के गाँव किसी भी तरह की विपरीत परिस्थिति में जी रहे हो पर सरकार अपनी प्राथमिकता के क्षेत्र के आगे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होती है.

अब भी समय है कि प्रदेश में विकास खंड स्तर पर ऐसी सभी मांगों और आवश्यकताओं की अविलम्ब एक सूची बनायीं जाए जिससे सरकार को कम से कम यह तो पता चल सके कि वास्तव में प्रदेश की आवश्यकता है क्या ? इसके बाद यह ध्यान देना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में मनेरगा में जो भी काम हुआ है उसके चलते अब क्षेत्र में वास्तव में और कितना काम होना बाक़ी है जिससे इस धन का कहीं अन्य स्थान पर इसी योजना के तहत उपयोग किया जा सके. किसी भी विकास खंड में पूर्ण रूप से संतृप्त गाँवों के लोगों को एक विशेष कार्य योजना के तहत उन गाँवों में लगाया जाना चाहिए जहाँ पर इस तरह की कोई भी आवश्यकता बनी हुई हैं. इससे धीरे-धीरे मजदूरी के पैसे तो निकलते रहेंगें और साथ कि सरकार भी कम खर्चे में ऐसे छोटे पुल और पुलियों का निर्माण करने में सक्षम हो सकेगी अभी जिसके लिए उसके पास पैसे नहीं होते हैं. आज बड़ी आवश्यकता उपलब्ध संसाधनों को सही दिशा में मोड़ने और उपयोग में लाने की आवश्यकता है पर मूर्तियों को अपने स्वाभिमान के पैमाने से तौलने वाली सरकार शायद यह कभी नहीं समझ पायेगी कि स्वाभिमान के साथ वास्तविक विकास ही किसी भी सरकार को दोबारा सत्ता की चाभी सौंपता है.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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