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कोई

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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किसी ने शाख़ और टहनी को फिर दुरुस्त किया !

ज़मीं पे आज फिर बिखरा है आशियाँ कोई !!

किसी ने सोच समझ बोल कर रिश्ते बदले !

भरे बाज़ार में फिर दिख गया तनहा कोई !!

किसी की आरज़ू और किस की ख़ता के चलते !

बिना गुनाह कहीं बन रहा मुजरिम कोई !!

किसी के हुस्न और किस की अदाओं के सदके !

दिल से मजबूर हुआ दूर दीवाना कोई !!

किसी की प्यास पे हावी हुआ जुनूँ इतना !

भरी बरसात में भी रह गया प्यासा कोई !!

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