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महिला दिवस ऐसा भी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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भारत की सरकारी क्षेत्र की विमानन कम्पनी एयर इंडिया ने इस वर्ष आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने का एक अनूठा प्रयास किया है. आज के दिन दिल्ली से टोरंटो जाने वाली उड़ान संख्या एआई-१८७ को पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित करने की घोषणा की है इस उड़ान के लिए पूरी ज़िम्मेदारी कंपनी ने अपनी महिला कर्मचारियों को दी है और इसके अलावा कई घरेलू उड़ानों को भी पूरी तरह से महिलाओं के ज़िम्मे कर दिया है. एयर इंडिया के पास १५७ महिला पायलटों के साथ लगभग ५३०० महिला कर्मचारी हैं और आज उनको गर्व का अनुभव दिलाने के लिए कम्पनी ने सभी महिलाओं को पूरी ज़िम्मेदारी से आगे आकर काम करने का अवसर दिया है. और ये सभी इस काम को अच्छी तरह से पूरा करने के लिए कमर कसकर आगे आ भी गयी हैं.

ऐसा नहीं है कि ये महिलाएं पहले से इस तरह की ज़िम्मेदारी नहीं उठा रही हैं पर आज के दिन इन सभी को कुछ और विशेष अनुभव करने के लिए एयर इंडिया का यह प्रयास वास्तव में सराहनीय है, जिस तत्परता के साथ ये महिला कर्मचारी पूरी व्यवस्था का अंग बनी हुई हैं और एक ज़माने में पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में भी अपने हाथ आज़मा रही हैं उसे देख कर यही कहा जा सकता है कि अगर इनको अवसर दिया जाए तो ये हर ज़िम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाने के लिए सक्षम हैं. अभी तक महिलाओं ने जिस तरह से आज हर क्षेत्र में सफलता पूर्वक अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं. बस केवल उन पर भरोसा करने और साथ ही अवसर देने की भी ज़रुरत है. यह काम केवल पुरुषों द्वारा ही किया जा सकता है क्योंकि उनको अपने बराबर वास्तव में जब तक नहीं माना जायेगा तब तक कुछ भी ठीक नहीं हो पायेगा.

देश ही नहीं पूरी दुनिया में आज भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाना बंद नहीं हुआ है ? इस बात के लिए कहीं न कहीं से पुरुष मानसिकता ही ज़िम्मेदार है ? कहने के लिए पुरुष महिलाओं को अपने बराबर कहने से नहीं चूकते हैं पर जैसे ही कहीं से पुरुषत्व पर बात आती है तो हर पुरुष में बिलकुल परिवर्तन हो जाता है. आज भी पुरुष मानसिकता महिलाओं की सफलता को बहुत आसानी से नहीं पचा पाती है जिससे बहुत सारी समस्याएं और मतभेद उत्पन्न होते हैं. अगर बात केवल मतभेदों तक ही हो तो कोई बात नहीं पर हर तरह की बात को आख़िर में महिलाओं को ही झेलना होता है ? क्यों ? आख़िर कब तक महिलाओं की हर स्तर पर अग्नि परीक्षा ली जाती रहेगी ? केवल ८ मार्च को ही मना लेने से सारी बात सुधरने वाली नहीं है इस विचार को अगर पूरे वर्ष तक बनाये रखा जाये तभी महिलाओं के प्रति सच्चा समर्थन दिखाया जा सकता है. यह ज़िम्मेदारी आज पुरुषों पर है कि वे महिलाओं को क्या देना चाहते हैं सम्मान की जिंदगी या फिर झूठे अहम् और मानसिकता से घिरी हुई सोच……

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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