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दिल्ली के एक अदालत ने दहेज़ लेने देने के एक आरोप में बहुत ही अच्छा निर्णय देकर लोगों को दहेज़ कानून के एक और पहलू से अवगत कर दिया है. पूरा मामला दिल्ली का है जहाँ जस्टिस अजित भरिहोक की अदालत ने लड़की के परिवार पर दहेज़ देने का आरोप लगाने वाले लड़के पक्ष की दलील को यह कह कर खारिज कर दिया है कि मजबूरी में दिया गया दहेज़ दहेज़ नहीं माना जा सकता है और इस तरह के किसी भी मामले में पीड़ित को धारा ७(३) के तहत सुरक्षा भी दी गयी है. दहेज़ कानून की धारा ३ में दहेज़ लेने और देने के लिए उकसाने और देने को अपराध माना गया पर यदि दहेज़ किसी भी मजबूरी में दिया गया है तो पीड़ितों की रक्षा करने का भी इंतजाम इस कानून में है.
मामला दिल्ली का है जहाँ पर लड़की द्वारा दहेज़ मांगने का आरोप लगाने पर लड़के वालों ने उल्टा ही लड़की वालों पर दहेज़ देने का आरोप लगा दिया. वे जानते थे कि कानून में दहेज़ लेने और देने दोनों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और वे इस धारा का लाभ उठाकर लड़की पक्ष को परेशान करना चाहते थे.दहेज़ कानून में जहाँ दहेज़ को लेने देने को अपराध माना गया है वहीँ पीड़ितों की पूरी सुरक्षा की भी व्यवस्था है. देश में किस तरह से अच्छे कानून में कमियां ढूंढकर किस तरह से लोग अपराध करने के बाद भी किस बेशर्मी से पीड़ितों को फ़साने का काम करते हैं यह इस केस से पूरी तरह से समझा जा सकता है. जिस तरह से लोग इन कानूनों की खामियों से लाभ उठाने की कोशिश करते हैं तो हमारे विद्वान जज भी इस तरह की सभी बातों को पूरी तरह से समझने के बाद कानून सम्मत निर्णय देने में पीछे नहीं रहते हैं.
कानूनों का होना अलग बात है पर किसी भी कानून से इस तरह से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कुछ ज़ुर्माना भी लगाया जाना चाहिए जिससे लोग कानून को समाज का रखवाला माने न कि अपना रखवाला ? फिलहाल इस तरह के अन्य मामलों में लोगों को परेशान करने वालों के खिलाफ़ एक माहौल तो बनेगा और लोग कहीं भी उल्टा केस दर्ज करवाने से पहले सौ बार सोचेंगें और कोर्ट का कीमती समय भी बच सकेगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…
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