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अयोध्या की राह

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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केवल अयोध्या से वास्ता रखने वाले हर व्यक्ति के मन में आज एक सवाल उठ रहा है कि जिस तरह से अयोध्या के स्थानीय निवासियों ने अब कुछ ठोस शांति प्रस्ताव पर विचार विमर्श करना शुरू किया है वह किस हद तक जा सकता है ? मुक़दमे में एक पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने अब इस बात की मांग की है कि इस बात चीत में पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम, योग गुरु स्वामी रामदेव जैसे लोग और देवबंद जैसी संस्थाओं की मदद ली जानी चाहिए क्योंकि अब कोई भी पहल पूरे देश के लिए मिसाल बन सकती है तो आज के माहौल में इससे पीछे क्यों हटा जाये ? इस तरह के किसी भी विवाद का कोई हल तभी निकल सकता है जब सभी पक्ष एक राय होकर किसी निष्पक्ष राह वाले लोगों पर भरोसा कर सकें. इस मामले में आज सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले में किसी भी राजनैतिक दल से सम्बंधित किसी भी व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए वैसे भी धर्म आस्था का मामला है और आज देश के नेताओं के सामने आस्था का ही संकट है ?

देश के धार्मिक लोग भी इन नेताओं से भय खाते हैं कि पता नहीं कहाँ पर ये अपना मुंह खोलकर किस बनी हुई बात को बिगाड़ कर रख दें. दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता कर रहे महंत ज्ञान दास ने अयोध्या जाने वाले भाजपा नेताओं से भेंट न करके एक अच्छी पहल की है. उन्होंने कहा कि जब हाशिम अंसारी और अन्य पक्ष इस बात पर राज़ी हैं कि इस बात चीत को किसी भी तरह की राजनीति से दूर रखा जाये तो कहीं से भी किसी को सद्भाव की यह डोर तोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए. देश में आज बहुत कुछ ऐसा चल रहा है जिससे अयोध्या मामला या तो पूरी तरह से सुलझ सकता है या फिर ये एक बार फिर से नेताओं के चंगुल में जाकर सामाजिक ताने-बाने को झकझोरने का काम करने वाला है ?

अब समय आ गया है कि एक बार अयोध्या के लोगों को पूरे मन से प्रयास करके कोई समझौते तक पहुँचने तो देना चाहिए ? अभी से ही कुछ लोग मुक़दमे की बातें कर रहे हैं ? यह सही है कि किसी भी समझौते के लिए सभी पक्षों को राज़ी करवा पाना बहुत ही कठिन होने वाला है फिर भी अगर अयोध्या यह झगड़ा हमेशा के लिए समाप्त करना चाहती है तो आख़िर किसी भी बाहर वाले को यह हक़ किसने दे दिया है कि वह अपने मन से कुछ भी कहता रहे ? एक बार अयोध्या के लोगों की भी तो सुनी जानी चाहिए क्योंकि हर बार किसी भी तनाव के समय उनका ही निकलना दूभर हो जाता है और उनके सामने ही रोज़ी रोटी का संकट आ जाता है ? अब इस संकट से जिसे दो चार होना पड़ता है वह ही कुछ सही सोच और समझ सकता है. दूर बैठकर केवल अपने लाभ के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल करने वाले लोगों को यह कभी भी रास नहीं आएगा और न ही वे कभी यह करना भी चाहेंगें.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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