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देश कल जिस तरह से सांस रोककर उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के फैसले की प्रतीक्षा कर रहा था उससे सभी के मन में यह आशंका थी की कहीं फैसला आने के बाद सामजिक ताने बाने में कोई कमजोरी न आ जाये ? इस मसले की मुख्य स्थली अयोध्या के लोगों ने जिस तरह से संयम और सद्भाव का परिचय दिया उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब पूरे देश को अयोध्या से सीखने की ज़रुरत है. मुक़दमें के मुख्य पैरोकारों की आपसी सहयोग और सद्भाव की मिसाल पूरे देश के लिए प्रेरणा होनी चाहिए. जिस तरह से मुख्य पैरोकार मो० हाशिम अंसारी ने यह कहा कि वे फैसले से संतुष्ट हैं और अब चाहते हैं कि यह मामला यहीं पर समाप्त हो जाये वह कहना भी कठिन था और सोचना भी पर हाशिम अंसारी ने यह कहने का जीवत दिखाया.
जिन विपरीत परिस्थितयों में तीनों न्यायमूर्तियों को अपना फैसला सुनाना था वह भी बहुत कठिन थीं फिर भी उन्होंने जिस तरह से मूर्तियों वाले हिस्से को एक मत से हिन्दू पक्ष को सौंपने और पूरे विवादित परिसर के तीन हिस्से करने की बात कही उससे यही लगता है कि साक्ष्यों को देखते हुए उन्होंने सामाजिक सद्भाव और इस फैसले के दूरगामी परिणामों पर भी गहन विचार किया था. कहने वाले इस फैसले की अपनी तरह से व्याख्या कर सकते हैं पर कहीं से भी इस फैसले को न्याय विरुद्ध नहीं कहा जा सकता है. साथ ही कोर्ट का यह फैसला सबसे महत्वपूर्ण है कि अगले ३ महीनों के लिए यथा स्थिति बनाये रखी जाये. इस तरह के इस आदेश से लोगों के मन में जो कुछ भी भ्रम की स्थिति थी कि फैसला आने के तुरंत बाद क्या होगा ? कहीं जीतने वाला पक्ष वहां पर कुछ करने तो नहीं लगेगा ? कहीं यह स्थल फिर से पूरे देश के लिए एक विवाद का विषय तो नहीं बन जायेगा ?
अदालत के फैसले से सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ज़फ़रयाब जीलानी ने भी आंशिक रूप से संतुष्टि दिखाई और यह कहा कि वे अगली अदालत में इस फैसले को चुनौती देंगें. हिन्दू महासभा ने भी अगली अदालत में जाने की बात कही है. फिलहाल इस तरह से फैसले के आने के बाद जिस तरह की सनसनी की बात कही जा रही थी वह फैसले के इस रूप में आने के बाद अपने आप ही काफी हद तक कम हो गयी है. वैसे भी १९९२ के बाद पैदा हुई पीढ़ी इस समय अपने लक्ष्य पर निशाना लगाकर अपना भविष्य संवारने में लगी हुई है आज उसके लिए मंदिर और मस्जिद का मुद्दा उतना बड़ा नहीं रह गया है. इस मसले में इस बार शांति रहने का सबसे बड़ा कारण यह भी रहा कि किसी भी तरह के किसी भी नेता ने कोई फालतू बात नहीं की जिससे वे हमेशा लोगों को भड़काने का काम किया करते थे. आज भी यह मुद्दा यदि केवल अयोध्या वालों पर ही छोड़ दिया जाये तो इसका बहुत अच्छा और सर्वमान्य हल निकलने में अयोध्यावासी सक्षम हैं पर नेताओं को अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए यह मामला केवल अयोध्या पर छोड़ना कैसे रास आ सकता है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…
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