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गिलानी जवाब दो ?

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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कश्मीर में जारी अशांति के बाद जब सरकार ने सोमवार से घाटी के स्कूल कालेज खोलने का फैसला किया है तो हुर्रियत नेता का यह बयान कि अभी भी बच्चों को पढ़ने के लिए न भेजा जाये कश्मीर को पीछे धकेलने जैसा है. एक तरफ़ गिलानी ने ख़ुद ही यह कहा कि पढ़ना बहुत ज़रूरी है और दूसरी तरफ़ बच्चों को स्कूल भेजने से मना भी कर दिया. घाटी में जिस तरह का माहौल ये अलगाव वादी अचानक से बना देते हैं तो उस स्थिति में कौन अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना चाहेगा ? इस सबसे बड़ी बात यह है कि आखिर बच्चों को पढ़ने से रोक कर किसी को क्या मिलने वाला है ? जिस तरह से बच्चों की पढ़ाई छूट रही है उससे क्या वे कभी इस को पूरा कर पायेंगें ?

भारत में किसी को भी किसी भी काम के लिए रोका नहीं जाता है इस बात का ही ये अलगाव वादी फायदा उठाने से नहीं चूकते हैं ? कश्मीर विवाद पर बात चीत की जा सकती है पर बच्चों के भविष्य से इस तरह का खिलवाड़ करके हुर्रियत को क्या मिलने वाला है यह कोई नहीं जानता ? हाँ इतना ज़रूर है कि इससे हमेशा कश्मीर की आने वाली पीढ़ी आने वाली तेज़ रफ़्तार जिंदगी में खुद को ढाल पाने में असहज महसूस करती रहेगी ? आज भी यदि ये अलगाव वादी अपनी जिदें छोड़ दें और इस बात का भरोसा दें कि घाटी में विकास के नाम पर आने वाली किसी भी संस्था आदि का कोई विरोध नहीं किया जायेगा तो वहां पर बहुत सारे आधुनिक समझे जाने काम शुरू हो सकते हैं और जब वहां पर भी तकनीकी क्षेत्र में तरक्की होने लगेगी तो बच्चों की पढ़ाई भी उसी दिशा में शुरू हो सकेगी.

आज पूरे भारत का डंका सूचना और तकनीकी क्षेत्र में बज रहा है और इसमें कश्मीर घाटी का क्या योगदान है ? शायद बहुत कम… पर इसके लिए किसी न किसी को तो सोचना ही होगा ? विरोध और असहमति अपनी जगह है पर इससे क्या विकास की गाड़ी को रोका जाना चाहिए ? नहीं कभी नहीं ! अगर घाटी में उद्योग धंधे आयेंगें ही नहीं तो वहां की बेरोज़गारी को दूर करने का कौन सा उपाय अपनाया जायेगा ? विरोध करते रहें पर साथ में घाटी के भविष्य के साथ किसी भी तरह के खिलवाड़ को बंद किया जाना चाहिए ? जब शिक्षा के क्षेत्र में घाटी पिछड़ जाएगी तो फिर किस मुंह से इस बात की शिकायत करना उचित होगा कि वहां पर बहुत बेरोज़गारी है ? गिलानी जैसे चंद नेताओं के कारण ही तो आज घाटी पिछड़ी हुई है ? बिहार में अराजकता के बाद जिस तरह से विकास की गंगा बही वह घाटी में भी बह सकती है पर इसके लिए केवल और केवल घाटी के लोगों को गिलानी जैसे लोगों को सुनना बंद करना होगा वरना जब उनसे उनकी अगली पीढ़ी पूछेगी कि उन्होंने विकास के रास्ते में रोड़े क्यों अटकाए तो जवाब देने के लिए गिलानी शायद ही हों पर बच्चों के माँ बाप के पास देने के लिए कोई उत्तर नहीं होगा ?

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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