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बाढ़ और तैयारी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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प्राकृतिक रूप से समृद्ध हमारे देश में आज भी हम इन संसाधनों की शक्ति का सही उपयोग करना नहीं सीख पाए हैं जिसके कारण प्रति वर्ष देश में हजारों करोड़ रूपये का नुकसान होता है और साथ ही काफी जन हानि भी सहनी पड़ती है. यह भी सही है कि नदियों की तराई में रहने वालों को इन नदियों से पूरे वर्ष बहुत लाभ मिलता है बस इसी कारण ये लोग अपने इन इलाकों को छोड़ भी नहीं पाते हैं और साथ ही सरकार के पास भी कोई ऐसी दृष्टि नहीं है जो इन लोगों को यहाँ बसने के सही तौर तरीके बताने का काम कर सके. इन लोगों के लिए ऐसे स्थानों में सामुदायिक रेडियो की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे आवश्यकता होने पर इन लोगों को सूचित किया जा सके. साथ ही आपदा प्रबंधन इन इलाकों में एक अभियान के तहत चलाया जाना चाहिए क्योंकि जब तक बाहर से कोई मदद आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

अटल बिहारी की सरकार के समय नदियों को जोड़ने की बहुत बड़ी महत्वाकांक्षी योजना बनायीं गयी थी और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी विचार किया गया था. देश के सामने बहुत बड़ी समस्या यह है कि पहले तो हम सोचना ही नहीं चाहते और जब कभी सोचने की तरफ जाते भी हैं तो हमारी सोच इतनी बड़ी होती है कि उसको धरातल पर उतारने के लिए हमारे पास धन ही नहीं होता है. यदि इस समस्या का कोई आसान हल देखना है तो इस को छोटे स्तर पर लागू करने का प्रयास करना चाहिए जिससे इस योजना के माध्यम से होने वाले लाभ हानि का सही आंकलन किया जा सके ? पर किसी भी काम को करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार करने का हमारे पास समय ही नहीं होता है ? हम तो आँखे मूँद कर काम करने में ही विश्वास करने वाला समूह बन चुके हैं ?

पर्यावरण को देखते हुए हमें सबसे पहले जो काम करना है वह मृत हो चुकी नदियों को फिर से जीवित करने का काम होना चाहिए क्योंकि इन नदियों का जो क्षेत्र पहले पानी बहने के लिए सुरक्षित होता था आज वह हमारे लिए खेत का काम कर रहा है और हम अपने लालच में नदी में ही खेती करने को तैयार बैठे हैं. ख़त्म होती नदियों से सबसे बड़ी समस्या भूजल की भी आ रही है. आज जब नदियाँ ही मर चुकी हैं तो उनके पानी रोकने और भूगर्भ तक पानी पहुँचाने के काम को हम एक दूर की कौड़ी ही मान सकते हैं. हिमालय से निकलने वाली नदियों से हर वर्ष होने वाली तबाही किसी से भी छिपी नहीं है फिर भी इनको कृत्रिम तरीके से रोकने का काम किया जाता है बिना किसी सही योजना के केवल राजनैतिक लाभ लेने केलिए कहीं भी बाँध बनाये जाते हैं जिनमें नदी के प्राकृतिक स्वभाव और बहाव का कोई ध्यान रखा ही नहीं जाता है जिसका नतीज़ा हर वर्ष टूटने वाले तट बंधों के रूप में हमारे सामने आता है ?

नदियों के इस कोप को तब तक कोई नहीं रोक सकता अहि जब तक इनकी सहायक छोटी नदियों पर ध्यान नहीं दिया जायेगा जो कि आज के समय में लगभग समाप्त हो चुकी हैं ? बड़ी नदियों से आज इस क़दर तबाही सिर्फ इसलिए ही होती है क्योंकि हमने उनकी सहायक नदियों का क़त्ल कर दिया है जो पहले पानी की बहुत बड़ी मात्रा को चुपचाप अलग अलग दिशाओं से बहाकर फिर से मुख्य नदी में डाल दिया करती थीं जिससे सबसे बड़ा लाभ यह होता था कि मुख्य नदियाँ तो अपने प्रवाह में रहती थीं और उनकी सहायक नदियों से एक बहुत बड़े भूभाग में भूगर्भ की रिचार्जिंग हो जाया करती थी जो उस क्षेत्र में पूरे वर्ष जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने का काम किया करती थी. अब भी समय है कि हम इन बातों पर ध्यान रखें तभी आगे आने वाली बाढ़ों से मुक्ति पा सकेंगें. और सबसे आवश्यक बात कि हमें अपने पर्यावरण का ध्यान रखना सीखना ही होगा क्योंकि सरकारें हमें केवल मुआवजा दे सकती हैं हमारी जिंदगी के वो खूबसूरत लम्हे कभी वापस नहीं कर सकती जो हमारे अपनी जड़ों से जुड़े रहने पर हमारे साथ रहा करते हैं.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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