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कश्मीर पर देश

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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सोमवार को कश्मीर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के सामने देश की बात कश्मीरियों के सामने रखने और कश्मीर की सही तस्वीर देश के सामने लाने की बहुत बड़ी चुनौती है. जिस तरह से सर्वदलीय बैठक में सभी राजनैतिक दलों ने अपने निजी स्वार्थों को दरकिनार करते हुए कश्मीर के बारे में विचार किया था अगर वे अपनी उसी भावना पर बने रहेंगें तो कश्मीर के साथ देश में भी विकास का पहिया तेज़ी से दौड़ने लगेगा. नि:संदेह सर्वदलीय बैठक में पी डी पी नेता महबूबा सईद ने बहुत अच्छी भावना का प्रदर्शन किया था पर उनके एक समाचार पत्र को दिए गए साक्षात्कार में ऐसा लगा की जैसे वे कश्मीर में कर्फ्यू के लिए भारत और सुरक्षा बालों को ही दोषी मानती हैं. उन्होंने यह कहा कि कर्फ्यू के कारण वहां पर भुखमरी जैसे हालत हो गए हैं यह बिलकुल सही है पर आखिर उन्होंने उस वज़ह के बारे में सोचना भी नहीं चाहा जिसके कारण आज कश्मीर घाटी में कर्फ्यू आम हो गया है ?

ज़रा गौर करें कि किस तरह से सुनियोजित तरीके से केवल आम जनों की सुरक्षा में लगे हुए बलों पर पत्थर फेंकने की घटनाएँ अचानक ही बढ़ गयी थीं ? क्यों नहीं कोई यह कहना और देखना चाहता कि इस अराजकता की शुरुआत किसी सिरफिरे ने की थी और अब जब सारा मामला वहां के नेताओं के हाथ से निकल गया है तो वे कुछ का कुछ कहने के लिए मजबूर हैं. आज आम कश्मीरी जिनमे सभी शामिल हैं किसी की नहीं सुनना चाहते हैं ? क्यों ? शायद इसलिए कि लोगों को विकास की झूठी तस्वीरें दिखने वाले यह भूल गए कि कभी न कबही सच तो सबके सामने आएगा ही ? आज अगर कश्मीर में कर्फ्यू का महल है तो उसके लिए वहां की कांता ही ज़िम्मेदार है. यह भी सही है कि अशांत क्षेत्र में काम करते समय सुरखा बलों के जवानों पर बहुत दबाव रहता है और कई बार इस सबमें निर्दोष लोग भी मारे जाते हैं. अब इसको इस तरह से नहीं कहा जा सकता कि जवान वहाँपर लोगों का जीना हराम किये हुए हैं क्योंकि यह तस्वीर का सही रुख नहीं हो सकता है ?

कश्मीर में शांति के लिए जो सबसे ज़रूरी है वह कोई क्यों नहीं करना चाहता है ? एक समय पाक सीमा पर जब रोज़ ही गोलीबारी होती थी तो रमज़ान के महीने भर के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने एक तरफ़ा संघर्ष विराम की पहल की थी ? आज सरकार अपनी तरफ से केवल दो दिन तक संघर्ष विराम की अपील कर सकती है और स्थिति की सारी ज़िम्मेदारी कश्मीरी अलगाव वादियों पर डाल सकती है. अगर इस दौरान कश्मीरी जनता पुलिस पर हमले करना बंद कर दे और शांति पूर्वक रहे तो इस तरह से पहले दिन का और फिर रात का कर्फ्यू पूरी तरह से हटाया जा सकता है. लेकिन जम्मू कश्मीर सरकार को वहां की जनता को और दिल्ली की सरकार को पूरे देश को जवाब देना होता है इसलिए ये केवल इस अंदेशे से ही कुछ नहीं करना चाहती हैं कि अगर इस दौरान कुछ बड़ी गड़बड़ हो गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगें ?

प्रतिनिधिमंडल कुछ कर पाए या न कर पाए पर उसे वहांके नागरिकों को यह समझाने काप्रयास तो करना ही होगा कि अगर वे एक दो दिन शांति बनाये रखें और सुरक्षा बलों पर हमले बंद कर दें तो केंद्र की तरफ से राज्य सरकार को कुछ निर्देश दिए जा सकते हैं ? पर आज समस्या यह है कि इन सब बातों की ज़िम्मेदारी आखिर कश्मीर में कौन लेगा ?

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