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इस वर्ष हज यात्रा के लिए सरकार द्वारा पूरा कार्यक्रम घोषित कर दिया गया है पर अंतर मंत्रालयी विचार विमर्श के दौरान हज के लिए दी जनि वाली सब्सिडी को गैर इस्लामिक और शरिया के खिलाफ़ बताते हुए इसे ख़त्म करने की मांग की थी. मंत्रालय का तर्क था की हज के लिए दी जाने वाली कोई भी सहायता शरिया के खिलाफ़ है ? वैसे देखा जाये तो इस तरह की किसी भी सहायता के लिए शरिया इजाज़त नहीं देता पर अभी तक इस तरह के गैर इस्लामिक काम में किसी ने भी आपत्ति नहीं की थी. अभी तक जो भी आपत्ति होती थी वह कुछ हिन्दू संगठनों की तरफ से होती थी और वह भी केवल आंकड़ों के लिहाज़ से यह बातें करते थे उनकी भी इसे ख़त्म करवाने में कोई खास दिलचस्पी कभी नहीं रही.
इस मामले में सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि आख़िर अब आज़ादी के इतने वर्षों के बाद अल्पसंख्यक मंत्रालय को कैसे यह याद आ गया की इतने दिनों से यह गैर इस्लामिक काम कैसे हो रहा है ? इस मामले पर अभी तक किसी ने भी किसी बड़े उलेमा से फतवा नहीं माँगा ? वैसे इस तरह के किसी मामले में सरकार ने आज़ादी के बाद किन परिस्थितयों में सब्सिडी देने का फैसला किया था यह बताने के लिए अब कोई भी उपलब्ध नहीं है ? हो सकता है कि उस समय देश में मुसलमानों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए ऐसे निर्णय लिए गए हों ? फिर अब जब इस मामले में खुद अल्पसंख्यक मंत्रालय पुनर्विचार करना चाहता है तो सरकार को सभी पक्षों और देश के प्रमुख शिया सुन्नी उलेमाओं से मिलकर प्रमुख इस्लामी केन्द्रों से विचार करके ही इस पर कोई फैसला लेना चाहिए. इस मामले में किसी भी तरह की राजनीति को कहीं पर भी जगह नहीं मिलनी चाहिए और जब तक इस मामले पर विद्वान उलेमाओं की राय नहीं मिल जाती है तब तक इसी तरह से यह सब्सिडी जारी भी रहनी चाहिए.
हो सकता है कि अभी राजनैतिक कारणों से यह संभव नहीं हो पाए पर जब यह आम मुसलमानों से जुड़ा हुआ मामला है तो इस पर पूरे देश के मुसलमानों की राय भी ली जानी चाहिए अगर वे इस सब्सिडी को जारी रखना चाहते हैं तो इस पर किसी भी तरह की कोई राजनीति भी नहीं होनी चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…
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